जिला परिषद संरचना बैठक 11 कार्य

जिला परिषद पंचायती राज की सबसे ऊपरी संस्था है। जिला परिषद ग्राम पंचायतों एवं पंचायत समितियों का मूलतः नीति निर्धारण एवं मार्गदर्शन का काम करती है। जिला परिशद् की मुख्य धारा एवं उससे संबंधित प्रावधानों का विवरण इस प्रकार है-

जिला परिषद की संरचना

जिला परिषद् का भी ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की तरह ही अपना प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होता है। इसका गठन लगभग पचास हजार (50,000) की आबादी पर होता है। प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से जिला परिषद् सदस्य पद पर एक एक प्रतिनिधि निर्वाचित होता है। जिला परिषद के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से सीधे चुनकर आये सदस्यों के अलावा अन्य सदस्य भी होते हैं, जो इस प्रकार है-

  • जिले के सभी पंचायत समितियों के निर्वाचित प्रमुख।
  • लोकसभा और विधानसभा के वे सदस्य जिनका पूर्ण या आंशिक निर्वाचन क्षेत्र जिले के अन्तर्गत पड़ता हो।
  • राज्य सभा तथा विधान परिषद् के वे सभी सदस्य जिनका नाम जिला की मतदाता सूची में दर्ज हो।

ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की तरह ही जिला परिषद् का कार्यकाल भी इसकी पहली बैठक से पांच वर्ष का होता है।

  • जिला परिषद् की कार्यावधि – प्रत्येक जिला परिषद् की कार्यावधि उसकी पहली बैठक की निर्धारित तिथि से अगले पांच वर्षों तक की होगी, इससे अधिक की नहीं।
  • अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन – राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करते हैं।
  • शपथ ग्रहण – जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्यों एवं अध्यक्ष उपाध्यक्ष को जिला दंडाधिकारी द्वारा निर्धारित प्रथम बैठक में जिला दंडाधिकारी द्वारा शपथ ग्रहण/प्रतिज्ञा कराया जाता है।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को भत्ते – जिला परिषद् के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रत्येक सदस्य यथा विहित बैठक शुल्क और भत्ते पाने के हकदार होते है।

जिला परिषद की बैठक

जिला परिषद् की बैठक कम से कम तीन माह में एक बार होनी आवश्यक है। यह बैठक जिला मुख्यालय में या जिला में कहीं भी की जा सकती है। जिला मुख्यालय से बाहर जिस जगह बैठक होनी है, उसका निर्णय जिला परिषद् की बैठक में लेना होता है। निर्वाचन के बाद नवगठित जिला परिषद् की पहली बैठक जिला दण्डाधिकारी की अध्यक्षता में होती है। शेष सभी बैठकों की अध्यक्षता जिला परिषद् के अध्यक्ष या उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष करते हैं।

बैठक की तिथि का अनुमोदन जिला परिषद अध्यक्ष करता है और इसके बाद मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (डी.डी.सी.) बैठक की सूचना सभी सदस्यों को भेजता है। बैठक में कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों की उपस्थिति से उसका कोरम पूरा होता है। जिला परिषद् के समक्ष रखे जानेवाले सभी मामलों (विषय) पर निर्णय बहुमत से होगा। यदि किसी विषय पर मत भिन्नता हो या मतदान हो और बैठक में मतों के बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष अथवा अध्यक्षता कर रहे सदस्य का मत निर्णायक होता है। जिला परिषद् की कार्यवाही अंकित करने और कार्यवाही की पंजी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की होती है।

जिला परिषद् के कार्य

सरकार द्वारा समय-समय पर सत्रों के अधीन जिला परिषद् निम्न -लिखित कार्य करती है-

  1. कृषि
    • कृषि उत्पादन को बढ़ाने के साधनों को प्रोत्साहित करना तथा उन्नत कृषि पद्धतियों के प्रयोग को लोकप्रिय बनाना,
    • कृषि बीज फार्म तथा व्यवसायिक फार्म खोलना तथा उनका अनुरक्षण करना,
    • गोदाम की स्थापना एवं अनुरक्षण करना,
    • कृषि एवं बागवानी प्रसार प्रशिक्षण केन्द्रों का प्रबंधन,
    • कृषि मेला एवं प्रदर्शनी का आयोजन,
    • किसानों का प्रशिक्षण / भूमि सुधार एवं भू-संरक्षण।
  2. सिंचाई, भूतल जल संसाधन एवं जल संभर विकास
    • लघु सिंचाई कार्य एवं उद्धह सिंचाई का निर्माण,
    • मरम्मत एंव अनुरक्षण,
    • जिला परिषद् के नियंत्रण में सिंचाई स्कीमों के अधीन जल का समय पर और समान रूप से वितरण और उसके पूर्ण उपयोग की व्यवस्था करना,
    • भूतल जल संसाधनों का विकास,
    • कृषि एवं बागवानी प्रसार प्रशिक्षण केन्द्रों का प्रबंधन,
    • सामुदायिक पम्पसेट लगाना, और जल सांभर विकास कार्यक्रम।
  3. बागवानी
    • ग्रामीण पार्क एवं उद्यान,
    • फलों एवं सब्जियों की खेती,
    • फार्म।
  4. सांख्यिकी
    • पंचायत समिति और जिला परिषद् के क्रियाकलापों से संबंधित सांख्यिकीय आंकड़ों एवं अन्य सूचनाओं का प्रकाशन,
    • समन्वय एवं उपयोग तथा पंचायत समिति और जिला परिषद् को सुपुर्द परियोजनाओं और कार्यक्रमों का समय-समय पर पर्यवेक्षण एवं मूल्यांकन।
  5. ग्रामीण विद्युतीकरण।
  6. आवश्यक वस्तुओं का वितरण।
  7. भूमि संरक्षण
    • भूमि संरक्षण उपाय,
    • भूमि उद्धार और भूमि विकास संबंधी कार्य
  8. विपणन
    • विनयमित बाजारों और बाजार प्रागंणों का विकास,
    • कृषि उत्पादनों का वर्गीकरण, गुण नियंत्रण।
  1. सामाजिक वानिकी
    • वृक्षारोपाण के लिए अभियान चलाना,
    • वृक्षारोपण और उनका अनुरक्षण।
  2. पशुपालन एवं गौ विकास
    • पशु चिकित्सा अस्पतालों और औषधालयों की स्थापना,
    • चलन्त निदान और उपचार प्रयोगशालाओं की स्थापना,
    • गायों और सुअरों के प्रजनन प्रक्षेत्र की व्यवस्थ करना,
    • कुक्कुट फार्म, बत्तख फार्म और बकरी फार्म,
    • दुग्धशाला, कुक्कुट पालन और समुद्री उत्पाद के लिए सामान्य शीत गृह की सुविधा,
    • चारा विकास कार्यक्रम,
    • दुग्धशाला, कुक्कुट पालन एवं सुअर पालन को प्रोत्साहन,
    • महामारी तथा छूत रोगों की रोकथाम।
  3. मत्स्य पालन
    • मत्स्य बीज का उत्पादन एवं वितरण,
    • निजी और सामुदायिक तालाबों में मत्स्य पालन का विकास,
    • अन्तर्देशीय मत्स्य पालन का विकास,
    • मछली की रोग मुक्ति एवं सुखाना।
  4. ग्रामीण आवास
    • बेघर परिवारों की पहचान करना,
    • जिला में गृह निर्माण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन,
    • अल्प लागत के गृह निर्माण को लोकप्रिय बनाने का कार्य करना।
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