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कारखाना अधिनियम 1948 के अवयस्क के सेवायोजन सम्बन्धी प्रावधान

बच्चों का कारखानों में नियोजन सम्बन्धी प्रावधान कारखाना अधिनियम 1948 के लागू होने के पूर्व भारत में स्त्री एवं अवयस्क श्रमिकों का ही विभिन्न उद्योगों में शोषण किया जाता था। उस समय न तो इनके कार्य करने के घंटे निश्चित थे और न ही पारिश्रमिक उद्योगपति इनसे मन चाहे समय तक कार्य लिया करते थे

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कारखाना अधिनियम 1948 के प्रौण श्रमिकों के रोजगार सम्बन्धी प्रावधान

कारखाने में कार्यशील घंटों का अपना अलग ही महत्व है। किसी भी श्रमिक से (चाहे वह मानसिक श्रम करने वाला हो या शारीरिक) लगातार अधिक समय तक कार्य लेने से उसकी कार्य कुशलता में ही केवल कमी नहीं आती बल्कि उसका स्वास्थ्य भी निरन्तर गिरता जाता है जिससे वह अधिक समय तक कार्य करने योग्य

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कारखाना अधिनियम 1948 के श्रम कल्याण सम्बन्धी प्रावधान

श्रम कल्याण से आशय उन समस्त क्रियाकलापों से होता है जिनके द्वारा श्रमिकों का जीवन सुखमय हो जाता है और जिनसे उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है। श्रम कल्याण शब्द आवश्यक रूप से लचीला है। इसका अर्थ भी एक देश तथा दूसरे देश में विभिन्न सामाजिक प्रथाओं, शैक्षिक विकास और औद्योगीकरण के स्तर के

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कारखाना अधिनियम 1948 के सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान

कारखाना अधिनियम 1948 में दिए गये सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान निरपेक्ष एवं वाध्यकारी प्रकृति के है तथा प्रत्येक कारखाने का परिभोगी इनका पालन करेगा। यह निम्न है – 1. यन्त्रों की घेरावन्दी [धारा 21] – यंत्रों की घेराबन्दी का आशय उन्हें इस प्रकार से सुरक्षित रखना है जिससे कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों को किसी

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