तेहत्तरवें संविधान संशोधन के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती राज में प्रारंभिक स्तर की संस्था ग्राम पंचायत सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। ग्राम पंचायत निर्वाचित प्रतिनिधयों की एक ऐसी संस्था है जिसे जनता के आमने-सामने हो कर जवाब देना पड़ता है। साथ ही अधिकांश कार्यकलापों के लिए निर्णय लेने से पहले जनता से उनकी सहमति लेनी होती है।
ग्राम पंचायत का स्वरूप
ग्राम पंचायत का क्षेत्र पंचायत राज अधिनियम, 2006 के प्रावधान के अनुसार लगभग 7,000 की जनसंख्या पर जिला दंडाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) द्वारा घोषित किया जाता है। ग्राम पंचायत में एक या एक से अधिक गांव (यहां गांव से तात्पर्य राजस्व गांव है) शामिल हो सकते हैं। ग्राम प्रधान या मुखिया संबंधित ग्राम पंचायत के सभी मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं। ग्राम पंचायत के अन्य प्रतिनिधि भी प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं।
लगभग पाँच सौ की आबादी पर एक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र (वार्ड) का गठन होता है। प्रत्येक वार्ड से एक ग्राम पंचायत सदस्य निर्वाचित होता है। सभी वार्ड सदस्य अपने बीच से ही एक उप मुखिया का बहुमत से चुनाव करते है। इस मतदान में मुखिया भी भाग लेते हैं। मुखिया, उपमुखिया और सभी वार्ड सदस्यों को मिलाकर ग्राम पंचायत का गठन होता है। ग्राम पंचायत का कार्यकाल प्रथम बैठक से पांच वर्ष तक का होता है।
ग्राम पंचायत की संरचना
- ग्राम पंचायत की संरचना में निर्वाचित मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचित सदस्य (वार्ड सदस्य) सम्मिलित होते हैं।
- शपथ ग्रहण – निर्वाचन में विजयी होने के बाद मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य (वार्ड सदस्य) को शपथ ग्रहण करना अनिवार्य है।
- स्थान का आरक्षण – प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत के सदस्यों (वार्ड सदस्य) के कुल स्थानों का 50 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित किए होते हैं। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुपात में होता है। पिछड़े वर्ग का आरक्षण अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण के बाद 20 प्रतिशत तक होता है। आरक्षित व अनारक्षित श्रेणी में 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होता है। आरक्षण का यही नियम मुखिया पद के लिए भी लागू होता है।
ग्राम पंचायत की अवधि
ग्राम पंचायत की अवधि अपनी प्रथम बैठक की तिथि से 5 वर्ष तक की होती है। ग्राम पंचायत सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण करने की तिथि से यानी पांच वर्ष पूरा होते हीं उसकी पदावधि समाप्त हो जाएगी।
मुखिया / वार्ड सदस्य के मृत्यु, त्याग-पत्र, अयोग्यता, पदच्युति अथवा अन्य कारणों से मुखिया का पद रिक्त हो जाने पर तुरंत ही उस पद पर राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन कराया जाता है। मुखिया एव उप मुखिया दोनों का स्थान रिक्त हो जाने पर कार्यपालक पदाधिकारी 15 दिनों के अंदर पंचायत सदस्यों की बैठक बुलाकर उप मुखिया का चुनाव कराता है। इसके लिए सदस्यों को कम से कम सात दिन पहले सूचना दी जाती है। ऐसी बैठक की अध्यक्षता कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा किया जाता है। पर उस चुनाव में कार्यपालक पदाधिकारी को मत देने का अधिकार नहीं है।
ग्राम पंचायत की बैठक
ग्राम पंचायत की बैठक दो माह में कम से कम एक बार ग्राम पंचायत के कार्यालय में आयोजित किया जाना अनिवार्य होता है। इसके लिए मुखिया जब भी उचित समझे तब सूचना देकर ग्राम पंचायत की बैठक आयोजित कर सकता है। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत के एक तिहाई सदस्यों के लिखित अनुरोध पर, अनुरोध प्राप्त होने की तिथि से 15 (पन्द्रह) दिनों के अन्दर विशेष बैठक आयोजित किया जाना आवश्यक होता है।
ग्राम पंचायत की सामान्य और विशेष बैठक आयोजन की नोटिस में बैठक का स्थान, तिथि, समय तथा बैठक का कार्यावली (ऐजेण्डा) लिखा जाना जरूरी है। ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कार्यावली (ऐजेण्डा) मुखिया/उप- मुखिया की सहमति से पंचायत सचिव के द्वारा बनाई जाती है। हर बैठक की कार्रवाई के विवरण को उसके लिए उपलब्ध रजिस्टर में अंकित किया जाना जाता है और बैठक में भाग लेने वालों का हस्ताक्षर होना अनिवार्य होता है।
यह रजिस्टर आम जनता के निरीक्षण के लिए उपलब्ध होना चाहिए। सामान्य बैठक की सूचना बैठक के सात दिन पूर्व तथा विशेष बैठक की सूचना तीन दिन पूर्व देना अनिवार्य होता है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता करने का दायित्व मुखिया का है। मुखिया की अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता उपमुखिया करता है।
ग्राम पंचायत के कार्य
ग्राम पंचायतों का मुख्य कार्य ग्रामीण विकास में सहयोग करना तथा ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सभा में निर्णय की प्रक्रिया में आम आदमी को जोड़ना है। पंचायत राज अधिनियम, 2006 के अनुसार ग्राम पंचायतों को निम्न कार्य दिए गए हैं-
- संसाधनों के प्रबंधन व उत्पादन संबंधी कार्य,
- ग्रामीण व्यवस्था व निर्माण संबंधी कार्य,
- कृषि तथा कृषि विस्तार,
- सामाजिक और फार्म वनोद्योग, लघु वन उत्पाद, ईंधन और चारा
- पशुपालन, दुग्ध उद्योग और मुर्गी पालन
- मछली पालन
- खादी, ग्राम तथा कुटीर उद्योग
- ग्रामीण स्वच्छता एवं पर्यावरण
- ग्रामीण गृह निर्माण
- पेयजल व्यवस्था,
- सड़क, भवन, पुल, पुलिया, जलमार्ग,
- विद्युतीकरण एवं वितरण,
- गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत,
- जनवितरण प्रणाली
- सार्वजनिक संपत्ति का रख-रखाव
- बाजार तथा मेले
- ग्रामीण पुस्तकालय तथा वाचनालय
- खटालों, कांजी हाऊस तथा ठेला स्टैण्ड का निर्माण एवं रख-रखाव
- कसाईखानों का निर्माण एवं रख-रखाव, सार्वजनिक पार्क, खेलकूद का मैदान आदि का रख-रखाव,
- सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ेदान की व्यवस्था,
- झोपड़ियों एवं शेडों का निर्माण तथा नियंत्रण,
- मानवीय क्षमता वृद्धि संबंधी कार्य,
- सामान्य कार्य के अधीन योजना बनाना एवं बजट तैयार करना,
- अतिक्रमण हटाना तथा बाढ़-सुखाड़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय आम जन को सहायता प्रदान करना,
- गांव के अनिवार्य सांख्यिकी आंकड़ों को सुरक्षित रखना,
- धर्मशालाओं, छात्रावासों एवं अन्य वैसे ही संस्थानों का निर्माण एवं उसका रख-रखाव करना,
- शिक्षा, प्राथमिक व माधयमिक स्तर तक,
- वयस्क तथा अनौपचारिक शिक्षा,
- लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण,
- महिला एवं बाल विकास,
- गरीबी हटाना,
- कमजोर वर्गो विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा जनजाति का कल्याण,
- सामाजिक, सांस्कृतिक तथा खेलकूद को बढ़ावा देना,
- शारीरिक एवं मानसिक रूप से निरूषक्त व्यक्तियों के लिए सामाजिक कल्याण,
उपरोक्त कार्यों के अलावा समय-समय पर सरकार द्वारा सौंपे गए कार्यों का निपटारा पंचायत करती है।
ग्राम पंचायत की समितियां
ग्राम पंचायत के कार्य काफी विस्तृत हैं। इसलिए कार्यों की गुणवत्ता, उत्कृष्टता तथा समय पर निपटारा जरूरी है। इसलिए प्रत्येक ग्राम पंचायत स्थायी समितियों के माध्यम से कार्यों को करती है। इससे ग्राम पंचायत के कार्य का बंटवारा हो जाता है और कार्य की गुणवत्ता भी बनी रहेती है। इसके तहत स्थानीय स्तर पर कार्यों का वास्तविक एवं व्यवहारिक विकेन्द्रीकरण अपनायी गई है।
प्रत्येक ग्राम पंचायत द्वारा अपने कार्यों के प्रभावी निष्पादन के लिए निर्वाचित सदस्यों में से चुनाव के द्वारा 6 समितियों का गठन अनिवार्य रूप से किया जाता है, जो इस प्रकार हैं-योजना, समन्वय एवं वित्त समिति,
- योजना, समन्वय एवं वित्त समिति,
- उत्पादन समिति।
- सामाजिक न्याय समिति।
- शिक्षा समिति।
- लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति।
- लोक निर्माण समिति।
ग्राम पंचायत की संपत्ति और निधि
पंचायतों को संपत्ति अर्जित करने, धारण करने तथा राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से उसका निबटान करने की शक्ति प्राप्त है। पंचायतों को विभिन्न स्त्रोतों से जो धन प्राप्त होता है उसे पंचायत निधि में जमा किया जाता है। पंचायत द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर जो खर्च आता है, उसे इस निधि के इस्तेमाल से पूरा कर लिया जाता है। इस संबंध में ऐसे नियम हैं जो पंचायत निधि से धन प्राप्त करने या धन निकालने की क्रियाविधि को नियंत्रित करते हैं। इन नियमों का कड़ाई से पालन करना बेहद जरूरी है।
ग्राम पंचायत द्वारा करारोपण
ग्राम पंचायत को कर लगाने की शक्ति अधिनियम के प्रावधानों के तहत है। इसके अंतर्गत होल्डिंग कर, सम्पति कर (सभी प्रकार की आवासीय और वाणिज्यिक सम्पत्तियों पर कर) व्यवसायों, व्यापारों आदि पर लगाए जानेवाले कर, जलकर, प्रकाश शुल्क तथा स्वच्छता शुल्क आदि सम्मिलित हैं। परन्तु फीस/शुल्क सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
पंचायतों को वित्तीय सहायता
विभिन्न राज्यों के प्रावधानों के अन्तर्गत गठित राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई अनुशंसा (जिसे सरकार ने स्वीकृत कर अधिसूचित कर दिया हो) के आधार पर प्रत्येक पंचायत को राज्य कोश से सहायता अनुदान प्राप्त करने का अधिकार है।
ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद अपने-अपने क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के अन्तर्गत अधिनियमानुसार सरकार द्वारा निर्दिष्ट अधिकतम दर के तहत कर अथवा शुल्क लगा सकते हैं। राज्य वित्त आयोग की अनुशंसा पर ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद कर/फीस संग्रहण सरकार के निर्देशानुसार कर सकता है।
ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद क्रमानुसार ग्राम पंचायत के नाम से ग्राम पंचायत निधि, पंचायत समिति के नाम से पंचायत समिति निधि एवं परिषद के नाम से जिला परिषद निधि का गठन करते हैं, और जमा खाते में अपनी अपनी राशियां जमा व खर्च कर सकते हैं।
ग्राम पंचायत की जवाबदेही
पंचायतें स्थानीय क्षेत्रों की प्रतिनिधि सरकारें हैं। इन संस्थानों के निर्वाचित प्रतिनिधि, जिस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं, उन सभी के लिए वे स्वयं जवाबदेह भी हैं। इनकी जवाबदेही दो स्तरों पर होती है। पंचायतों को राज्य सरकार से निधियां मिलती हैं। अतः वह अपनी राज्य सरकार के प्रति जवाबदेह होती है।
पंचायतें लोकतांत्रिक संस्थान हैं। इसलिए इनकी मुख्य जिम्मेदारी उन लोगों के प्रति है जिन्होंनें इन्हें चुना है। इन दोनों स्तरों पर इनकी जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पंचायतों को अपनी गतिविधियों के संबंध में बेहद सजग रहना है।
ग्राम पंचायत के सदस्यों का त्याग-पत्र
ग्राम पंचायत का कोई भी सदस्य ग्राम पंचायत के मुखिया को स्वयं लिखकर अपनी सदस्यता से त्याग-पत्र दे सकता है। सदस्य त्याग-पत्र देने की तिथि से सात दिनों के अंदर अपना त्याग-पत्र स्वयं लिखकर वापस मुखिया से ले सकता है। यदि सदस्य सात दिनों के अंदर त्याग-पत्र वापस नहीं लेता है तो उसका पद त्याग-पत्र की तिथि से सात दिन की समाप्ति पर खाली माना जाता है।