बैंटिक की शिक्षा नीति – लॉर्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले के विवरण पत्र में उल्लेखित किए गए उसके सभी विचारों का अनुमोदन किया। इस अनुमोदन के बाद 7 मार्च 1835 को एक नई विज्ञप्ति जारी की गई जिसमें उसने संस्कार की शिक्षा नीति को निम्न शब्दों में व्यक्त किया।
शिक्षा के लिए निर्धारित धन का सर्वोत्कृष्ट प्रयास केवल अंग्रेजी शिक्षा के लिए ही किया जा सकता है।
इसके द्वारा कंपनी की शिक्षा संबंधी नीति में अचानक परिवर्तन करके भारतीय शिक्षा को एक नया आकार दिया गया। यह उस दिशा के विषय में, जो सरकार सार्वजनिक शिक्षा की देना चाहती थी, निश्चित नीति की प्रथम सरकारी घोषणा थी। इस प्रकार लगभग 22 वर्षों से प्राच्य एवं पाश्चात्यवादियों का संघर्ष लॉर्ड विलियम बैंटिक की इस घोषणा से समाप्त हो गया, जिसमें उसने मैकाले द्वारा प्रस्तुत किए गए शिक्षा संबंधी प्रस्तावों पर यथेष्ट विचार-विमर्श वाद विवाद हुआ। अंत में मैकाले की विचारधारा को गवर्नर जनरल बैंटिक का समर्थन प्राप्त हुआ।




लॉर्ड विलियम बैंटिक की शिक्षा नीति
बैंटिक की शिक्षा नीति के मुख्य बिन्दु निम्न हैं-
- भारत में अंग्रेजी शासन यूरोपीय विज्ञान एवं साहित्य का प्रचार करेगा तथा शिक्षा के लिए स्वीकृत हुई धनराशि का प्रयोग इसी मद में किया जाएगा।
- पुरानी चले आ रहे विद्यालयों को बंद नहीं किया जाएगा तथा वर्तमान छात्रों तथा अध्यापकों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी रोकी जाएगी लेकिन नए छात्रों का उत्तरदायित्व ना तो सरकार लेगी न ही उन्हें छात्रवृत्तियां देनी स्वीकार करेंगी। अध्यापकों की नियुक्ति शासन द्वारा की जाएगी।
- प्राचीन भारतीय भाषाओं में मुद्रण व प्रकाशन में सरकार किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं करेगी और न ही उनका मुद्रण और प्रकाशन ही करेगी।
- इस प्रकार से बचे हुए धन से अंग्रेजी भाषा के माध्यम से यूरोपीय ज्ञान विज्ञान के प्रचार एवं प्रसार में इसका उपयोग किया जाएगा।
इसी के साथ सामान्य शिक्षा समिति को यह आदेश दिया गया कि माध्यम भाषा की रूपरेखा प्रस्तुत करें। हालांकि बैंटिक की इस घोषणा से प्रच्चवादियों को धक्का लगा परंतु शिक्षा नीति को एक स्पष्ट दिशा अवश्य प्राप्त हुई।