समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध क्या है? अनेक अर्थशास्त्रियों ने समाजशास्त्र के सामान्य सिद्धान्तों को उपयोग में लाकर इस तथ्य को स्वीकार भी कर लिया है “अर्थशास्त्र जीवन की सामान्य दशाओं से सम्बन्धित उन आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन है जिनका उद्देश्य भौतिक सुख न होकर आर्थिक और सामाजिक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करना है। सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां सदैव ही एक-दूसरे से जुड़ी रही हैं। समाजशास्त्र के विकास के आरम्भिक काल में तो इसका अध्ययन तक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत ही होता था। बाद में समाजशास्त्र का अधिक विकास होने पर ही इसे स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया।

इसीलिए सम्भवतः अनेक महान अर्थशास्त्री प्रमुख समाजशास्त्री भी हुए हैं। इन्होंने केवल आर्थिक और सामाजिक सिद्धान्तों का ही प्रतिपादन नहीं किया बल्कि यह भी प्रमाणित कर दिया कि इन दोनों विज्ञानों में से किसी एक का भी पृथक् रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता। ऐसे विद्वानों में काम्ट, सिसमोंडी, रॉबर्ट ओवन, जे. एस. मिल, परेटो, वेबलिन, मार्क्स, मैक्स वेबर, रानाडे और महात्मा गांधी के नाम प्रमुख हैं। वास्तव में, आर्थिक जीवन की क्रान्ति सामाजिक क्रान्ति उत्पन्न करती है और सामाजिक क्रान्ति का परिणाम आर्थिक क्रान्ति के रूप में देखने को मिलता है।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध

लोवी (Lowie) का तो यहां तक कथन है कि “सामाजिक कारकों की अवहेलना करके अर्थशास्त्र को किसी प्रकार भी एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं कहा जा सकता।” इतना अवश्य है कि मैक्स वेबर और परेटो ने सामाजिक कारकों को प्रमुख स्थान दिया है और आर्थिक कारकों को गौण, जबकि मार्क्स, मिल तथा वेबलिन ने आर्थिक कारकों को ही सभी सामाजिक परिवर्तनों का आधारभूत कारण मान लिया है।

वास्तविकता यह है कि समाजशास्त्र आज अनेक ऐसी समस्याओं का अध्ययन करता है जो मूलतः आर्थिक होने के बाद भी अर्थशास्त्रियों द्वारा अपेक्षित हैं। इस आधार पर पार्सन्स और स्मेल्सर ने “अर्थशास्त्र को सामान्य सामाजशास्त्र का ही अंग होने का दावा कर दिया है।” यह कथन चाहे पूरी तरह सच न हो लेकिन हाल ही में स्मेल्सर ने ऐसी अनेक प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है जिनमें सामाजिक और आर्थिक कारक एक-दूसरे से बहुत मिले-जुले हैं। उदाहरण के लिए, संस्कृतीकरण, सात्मीकरण, नगरीकरण, औद्योगीकरण, गतिशीलता तथा वर्गवाद आदि इसी प्रकार की प्रक्रियाएं हैं।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि एक ओर समाज की सभी परम्पराएं, प्रथाएं, जनरीतियां, विश्वास और नैतिकताएं, आर्थिक सम्बन्धों की प्रकृति तथा आर्थिक व्यवस्था के रूप का निर्धारण करती हैं तथा दूसरी ओर, समाज की आर्थिक व्यवस्था सामाजिक संगठन, न्याय व्यवस्था और सामाजिक व्यवहारों की प्रकृति को प्रभावित करती है। शायद ही कोई समाज ऐसा मिले जहां आर्थिक दशाएं सामाजिक दशाओं को और सामाजिक दशाएं आर्थिक दशाओं को प्रभावित न करती हों।

कभी-कभी तो एक ही समस्या दोनों विज्ञानों की सामान्य समस्या प्रतीत होती है। श्रम की दशाएं, औद्योगिक विकास, श्रम-कल्याण, ग्रामीण पुनर्निर्माण तथा कितने ही इसी प्रकार के विषय हैं जिनके बारे में यह निर्णय करना बहुत कठिन है कि यह समाजशास्त्र की विषय-वस्तु है अथवा अर्थशास्त्र की। समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि अब बहुत-से समाजशास्त्रीय अध्ययन आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए होने लगे हैं।

अर्थशास्त्र आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है वहीं समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। दोनों विषय कुछ ऐसी समस्याओं का यह अध्ययन करते हैं जो एक दूसरे के विषय क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जैसे औद्योगीकरण, नगरीकरण, श्रम समस्याएं, निर्धनता, बेकारी, ग्रामीण समस्याएं आदि। समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध विशेष है।

उदाहरण के लिए, श्रम विभाजन, औद्योगिक संगठन, व्यावसायिक गतिशीलता आदि इसी प्रकार के विषय हैं। वेबर ने तो धार्मिक आचार (एक सामाजिक तथ्य) और पूंजीवाद (एक आर्थिक तथ्य) के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट करके समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र को एक-दूसरे के अत्यधिक निकट ला दिया है। इसी प्रकार मार्क्स की विवेचनाओं में सामाजिक और आर्थिक कारकों का एक सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। इस आधार पर बोटोमोर ने यह निष्कर्ष दिया है कि “अब अधिक समय तक समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के घनिष्ठ सम्बन्ध के बारे में कोई सन्देह नहीं रहेगा।

अनेक अर्थशास्त्रियों ने समाजशास्त्र के सामान्य सिद्धान्तों को उपयोग में लाकर इस तथ्य को स्वीकार भी कर लिया है। आज समाजशास्त्र में एक नयी शाखा का विकास हुआ है जिसे हम ‘आर्थिक जीवन का समाजशास्त्र’ (Sociology of Economic Life) कहते हैं। इससे भी समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध स्पष्ट हो जाता है।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अन्तर

यद्यपि इन दोनों विज्ञानों की प्रकृति को देखकर बहुधा इन्हें समान समझ लिया जाता है, लेकिन सभी विज्ञानों के समान इनके बीच भी कुछ मौलिक अन्तर पाये जाते हैं –

  1. समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन होने के कारण एक सामान्य विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है और इस प्रकार यह एक विशेष विज्ञान है।
  2. चाहे सैद्धान्तिक रूप से न सही, लेकिन व्यावहारिक रूप से अर्थशास्त्र एक ‘आर्थिक मनुष्य’ की धारणा पर आधारित है, जबकि समाजशास्त्र में ऐसी कोई पूर्व-धारणा नहीं पायी जाती। इस प्रकार अर्थशास्त्र की प्रकृति व्यक्तिवादी और समाजशास्त्र की प्रकृति समूहवादी (collectivistic) है।
  3. इन दोनों में भिन्न-भिन्न पद्धतियों का प्रयोग होता है। अर्थशास्त्र निगमन (deductive) तथा आगमन (inductive) पद्धति द्वारा अध्ययन कार्य करता है, जबकि समाजशास्त्र में तुलनात्मक तथा प्रकार्यात्मक पद्धति द्वारा किये जाने वाले अध्ययनों को विशेष महत्व दिया जाता है।
  4. समाजशास्त्र के सभी नियम सर्वव्यापी और स्वतन्त्र हैं। ये घटनाओं को उनके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि अर्थशास्त्र के नियम ‘अन्य वातों के समान रहने पर’ (other things being equal) वाक्यांश द्वारा बंधे रहते हैं तथा प्रत्येक घटना का कारण आर्थिक क्रियाओं से जोड़ना चाहते हैं।
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध – FAQ

समाजशास्त्र की तुलना अर्थशास्त्र से कैसे की जाती है?

अर्थशास्त्र व्यक्तिगत प्राथमिकताओं या इच्छाओं के आधार पर मानव क्रिया पर केंद्रित है; समाजशास्त्र एक ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ में मानव क्रिया पर केंद्रित है।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध तथा अंतर क्या है?

अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन है। अर्थशास्त्र की तुलना में समाजशास्त्र का दायरा बहुत व्यापक है अर्थशास्त्र में समाजशास्त्र जितना विस्तृत क्षेत्र नहीं है।

अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो. सैम्यूलसन के अनुसार, अर्थशास्त्र कला समूह में प्राचीनतम तथा विज्ञान समूह में नवीनतम वस्तुतः सभी सामाजिक विज्ञानों की रानी है।

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