उपवास आध्यात्मिक व मानसिक आरोग्य प्रदान करता है। क्या हैं उपवास के फायदे तथा इसको करने का सही तरीका आदि को जानने के लिए पढ़ें यह लेख। ‘उपवास’ शब्द हर धर्म, हर जाति के लिए जाना-पहचाना है। स्वास्थ्य पर पड़नेवाले इसके जादुई प्रभाव ने इसे इक्कीसवीं सदी में भी उपयोगी बनाया हुआ है। न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया भर में अलग-अलग रूपों और नामों के साथ व्रत-उपवास वगैरह का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।
उपवास के उद्देश्य
लेकिन मजेदार बात यह लगती है कि लोग व्रत-उपवास का वास्तविक रूप भूल चुके हैं और आजकल उपवास रखनेवाले लोग आम दिनों की अपेक्षा दोगुना खा लेते हैं। कुट्टू के आटे की पूड़ी-पकौड़ी, साबूदाने के पापड़, खीर, आलू के तरह-तरह के व्यंजन से भरी स्पेशल थालियाँ! वाकई यह समझना मुश्किल हो जाता है कि वास्तव में उपवास है क्या और इसे रखने का उद्देश्य क्या है?
- उपवास दुनिया की सबसे प्राचीन तथा प्राकृतिक रोग शमन पद्धति है। पुरानी व असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए उपवास अत्यंत लाभकारी है। जब कोई व्यक्ति उपवास शुरू करता है तो वह शरीर तथा मन की शुद्धीकरण प्रक्रिया को उत्प्रेरित करता है, जो कि शरीर की प्रत्येक कोशिका तथा ऊतकों तक पहुँचती है। इससे रोग प्रतिरोधक प्रणाली को और ताकत मिलती है।
- उपवास से ध्यान लगाने जैसा एहसास मिलता है। विचार सकारात्मक होते हैं, जिससे कि मन व तन के बीच एक सौहार्दपूर्ण संबंध कायम होता है, जिससे कि मन एकाग्र होने लगता है। उपवास के दौरान पूरी तरह अनाहार रहने पर मस्तिष्क को पूरा विश्राम मिलता है जिससे कि सहजता से गहरी नींद आती है।
- उपवास करना वैज्ञानिक दृष्टि से भी फायदेमंद है। उपवास करने से आप खुद को हल्का महसूस करने के साथ-साथ अपने को चुस्त-दुरुस्त व जोशीला पाते हैं। इसकी वजह वह ऊर्जा है, जो कि उपवास के दौरान आपको उत्साहित बनाए रखने में प्रयुक्त होती है। साथ ही शरीर से विषाक्त पदार्थों के उत्सर्जन तथा हार्मोन उत्पादन की क्षमता बढ़ने से मिलती है।
- उपवास उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है, जिससे कि आपकी उम्र उल्लेखनीय रूप से बढ़ सकती है। उपवास के दौरान उम्र पर अंकुश लगानेवाला हार्मोन अधिक सक्रियता के साथ उत्पन्न होता है, जिससे कि बी.एम.आर. धीमी हो जाती है और चेहरे पर कम उम्र जैसा दिखनेवाला ओज आने लगता है।
- अनाहार उपवासों में शरीर लंबे समय तक भोजन से वंचित रहता है। इस अवधि के दौरान शरीर में जमा चरबी ऊर्जा के रूप में काम में ली जाती है। उपवास के तुरंत बाद, शरीर की भारी आहारों के जरिए भरपाई करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। इसके बदले आसानी से पचनेवाले भोजन से उपवास को तोड़ा जाना चाहिए, जैसे- रसीले कोमल फल, साबूदाना, दूध आदि से।
तन और मन की शुद्धता से उपवास के उद्देश्य
दरअसल सभी धार्मिक बातों में कुछ-न-कुछ ऐसा तथ्य छिपा रहता है, जिसका वैज्ञानिक आधार होता है और जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्य जीवन के लिए फायदेमंद होता है। फायदेमंद बातें भी अनुशासन की वजह से लोग कम ही मानते हैं, अगर जब यही तथ्य ‘धर्म’ से जुड़कर सामने आते हैं तो किसी भी मनुष्य से इसका पालन कराना आसान हो जाता है। यही कारण है कि धर्म की परिभाषा में कहा जाता है कि ‘धर्म वही, जिसे धारण किया जा सके।’
सभी धर्मों में अलग-अलग मान्यताओं, विश्वासों और नामों के साथ उपवास का जो स्वरूप दिया गया है, वह वास्तव में यही है कि संयमित आहार से या निराहार रहने से शरीर को अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करना आता है। उपवास सिर्फ वजन ही संतुलित नहीं रखता, यह काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे भावों को भी नियंत्रित करता है। उपवास सही ढंग से रखने के दौरान शरीर के सभी विषाणु बाहर आ जाते हैं और शरीर अपनी उत्पादकता, आत्मबल और प्रतिरोधक क्षमता को नए सिरे से प्रभावी बनाता है।
उपवास से पाचन तंत्र पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए उपवास को सच्चे अर्थों में समझने के लिए इस बात को गहराईसे समझना जरूरी है कि उपवास रखने का अर्थ सिर्फ भूखा रहना या एक समय का भोजन कर लेना भर नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण पद्धति है और इसका सही लाभ तभी मिलेगा, जब इस पूरी पद्धति को पूरे समर्पण और सही ढंग के साथ अपनाया जाए। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण उपवास बीमारियों में भी आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाता है।
सही कारण, सही निवारण जब भी उपवास रखें तो पूरे दिन ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीते रहें, क्योंकि निराहार रहते हुए, पिया गया पानी शरीर की आंतरिक सफाई कर सारे विषाणुओं को बाहर निकाल देता है। पूरे दिन कुछ ठोस आहार न लेकर केवल तरल पदार्थ लेना भी बहुत अधिक लाभदायक होता है, क्योंकि यह आंतरिक पोषण भी पहुँचाता रहता है। लेकिन ध्यान रहे कि इस समय चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक या किसी भी प्रकार का अल्कोहल लेने से बचें। कई लोग तरल पदार्थ के नाम पर इनका भी सेवन करते रहते हैं।
यदि निराहार रहना संभव न हो तो सप्ताह का कोई दिन चुनकर उस दिन केवल फल या केवल सब्जियों को अपने आहार में शामिल किया जा सकता है। मगर इसका मतलब फलों से भरी थाली या लगातार फल खाते रहना बिल्कुल नहीं है। यदि व्रत रखने का कारण धार्मिक है और उस दिन एक ही समय भोजन लेना चाहें तो प्रयास कीजिए कि तले-भुने पूड़ी-पकौड़ों की जगह उबला हुआ, बिना घी-तेल और मसालोंवाला आहार लें। इस दौरान पानी ज्यादा-से-ज्यादा लगातार पीते रहें। उपवास शरीर व मन को आराम देता है। जो शरीर प्रतिदिन भोजन पचाता है, उसे हफ्ते में एक दिन हल्का सुपाच्य भोजन देकर आँतों को विश्राम देना शरीर का उपवास व हफ्ते में एक दिन कुछ समय के लिए मौन व्रत धारण कर शांत रहना, मन का उपवास है।
उपवास से संबंधित पूछे गए प्रश्न
क्या हफ्ते में एक दिन उपवास रखना ठीक है?
जी हाँ, सात दिन में एक दिन शारीरिक व मानसिक उपवास रखना अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, क्योंकि उपवास रखने से रक्त शक्कर के स्तर में कमी आती है और इसके फलस्वरूप शरीर यकृत ग्लाइकोजेन में पाए जानेवाले जमा ग्लूकोज का इस्तेमाल करता है, जिससे बेसल मेटाबोलिक दर (बी.एम.आर.) घट जाती है। ऐसे में हारमोन उत्पादन की कार्यक्षमता बढ़ने लगती है, जिससे कि शरीर की वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है।
क्या उपवास से शीघ्रता से वजन घटाया जा सकता है?
वजन घटाने का कोई भी जल्द व आसान तरीका नहीं है। उपवास से सिर्फ अस्थायी रूप से वजन घटाया जा सकता है। लंबे उपवास के द्वारा शरीर में जमी चरबी का इस्तेमाल शरीर ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल करने लगता है। लेकिन जैसे ही आप उपवास तोड़ते हैं तथा सामान्य रूप से भोजन ग्रहण करने लगते हैं, चरबी फिर से शरीर में जमा होने लगती है, जिसके फलस्वरूप पहले से अधिक वजन बढ़ने लगता है। वजन घटाने का सही तरीका उचित खुराक और व्यायाम ही है।
क्या उपवास ब्लडप्रेशर व हृदय रोगी के लिए ठीक है?
जी हाँ, कुछ समय तक उपवास करने से ब्लडप्रेशर तथा कोलेस्टेरॉल के स्तर में कमी आती है। इससे उपापचय दर तथा शरीर की विभिन्न क्रियाएँ धीमी पड़ने लगती हैं तथा शरीर का रक्त शक्कर स्तर गिरने लगता है। शरीर की वसा ऊर्जा में परिवर्तित होने लगती है, जिसका इस्तेमाल शरीर अंगों के कार्य संचालन के लिए करता है, जिसके फलस्वरूप ब्लडप्रेशर स्तर में गिरावट आती है।
उपवास का सबसे अच्छा तरीका कौन सा है?
प्रतिदिन के कार्यक्रम को इस प्रकार संतुलित किया जाए कि शरीर को प्रतिदिन आराम मिलता रहे, उपवास का यही अच्छा तरीका है। शाम को करीब 6 या 7 बजे रात का भोजन कर लें और हल्का नाश्ता अवश्य ले लें, जिसमें अंकुरित फल, दूध, छाछ, भीगा हुआ दलिया आदि कुछ लें और उसके 5-6 घंटे पश्चात् दोपहर का हल्का सुपाच्य पौष्टिक भोजन ले लें। इसका मतलब है, सोने जाने से पहले कोई भोजन नहीं और न ही आधी रात को कुछ खाना-पीना। ऐसी स्थिति में आपके सोने के दौरान आपका पाचनतंत्र भोजन को पचाने के बजाय शरीर की स्वाभाविक रूप से सफाई करता रहेगा। यदि शरीर की अच्छी तरह सफाई करनी हो तो सायं का खाना बंद कर दें। उस जगह जूस का इस्तेमाल करें या नीबू पानी या नारियल पानी का इस्तेमाल करें। शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का तथा चुस्त-स्फूर्त रहने का यह एक अच्छा तथा पारंपरिक तरीका है। इस प्रक्रिया को सात दिन में एक बार करना ठीक है।