उपवास अर्थ महत्व प्रकार लाभ

उपवास शरीर शुद्धि का एकमात्र उपाय है। स्वास्थ्य और धर्म दोनों ही दृष्टि से उपवास का एक खास महत्त्व है। शरीर को स्वस्थ रखना भी एक बड़ा धर्म है। उपवास विषय-वासना से निवृत्ति का अचूक हथियार है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘चरक संहिता’ से लेकर आज के विभिन्न चिकित्सकीय शोधों ने भी उपवास के अनेक लाभ बताए हैं। प्रस्तुत लेख में उपवास के लाभदायक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। उपवास के उद्देश्य – क्या उपवास

शरीर में स्वतः अनेक प्रकार की ज्वलन क्रियाएँ होती रहती हैं। इससे जो ऊष्मा शरीर में रहती है, उसे ‘शरीर का तेज’ कहा जा सकता है। उपवास काल में इस तेज को बनाए रखने के लिए जो ज्वलन क्रिया होती है, उसमें शरीर के अंदर निहित चरबी 97 प्रतिशत, मांसपेशियाँ 30 प्रतिशत, शक्कर 75 प्रतिशत तथा रक्त 17 प्रतिशत जलते हैं। मस्तिष्क क्षमता में किसी प्रकार की कमी नहीं आती, वरन् बढ़ोतरी होती है। पाँच से सात दिन का साधारण उपवास समय-समय पर करते रहने से 75 प्रतिशत बीमारियों से बचा जा सकता है।

उपवास का महत्त्व

उपवास से न केवल शारीरिक विकृति दूर होती है, बल्कि इससे मन व आत्मा भी परिष्कृत होती है। उपवास से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है, जिससे शरीर में उपस्थित विषाक्त पदार्थों का निष्कासन आसानी से हो जाता है। हर सप्ताह उपवास रखने से कॉलेस्टेरॉल की मात्रा घटने लगती है, जो धमनियों के लिए लाभदायक है। कुछ लोग उपवास को भूखों मरने की सजा कहकर नकारते हैं; लेकिन उपवास और भूखे मरने में अंतर है। आज की दौड़ने-भागने वाली जिंदगी, व्यस्त दिनचर्या, औरों से आगे बढ़ने में लीन मानव के शरीर को अनेक रोगों ने अपना घर बना रखा है।

यद्यपि पहले की अपेक्षा चिकित्सा विज्ञान ने आज दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर ली है, किंतु फिर भी रोगों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। सच तो यह है कि बीमारियों का मानव शरीर पर हमला बोलने का मुख्य कारण उसका अनियमित खान-पान है। आज का बाजार फास्ट फूड से भरा हुआ है, जो न तो पौष्टिक होता है और न ही स्वास्थ्यवर्धक। उसके निरंतर सेवन से वह हर समय किसी-न-किसी गंभीर रोग से जकड़ा रहता है। आज के युग में रोगों से बचने एवं अपने खान-पान को नियमित एवं संतुलित रखने का सर्वोत्तम उपाय ‘उपवास’ है।

उपवास के प्रकार

  • प्रातःकालीन उपवास – इस उपवास में केवल सुबह का नाश्ता छोड़ना पड़ता है। दिन-रात में केवल दो बार ही भोजन की व्यवस्था होती है।
  • सायंकालीन उपवास – इस उपवास में रात का भोजन बंद कर देना होता है। पुराने रोगों में यह लाभकारी होता है। इस उपवास में सुपाच्य और प्राकृतिक भोजन किया जाता है।
  • रसोपवास – इस उपवास में ठोस आहार नहीं लिया जाता। फलों का रस, सूप आदि लिया जाता है। इसमें दूध भी वर्जित है, क्योंकि दूध ठोस खाद्य पदार्थ में माना गया है।
  • फलोपवास – इस उपवास में कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों, साग-सब्जी पर रहा जाता है। इस तरह के उपवास में बीच-बीच में एनिमा लेते रहना चाहिए। जो फल आपको पचे, उसी का सेवन करना चाहिए। दुग्धोपवास-इस उपवास में कुछ दिन तक चार-पाँच बार केवल दूध पीकर रहना होता है।
  • मठोपवास – पाचन शक्ति कमजोर होने पर मठोपवास करना चाहिए। मट्ठा घी रहित होना चाहिए। इससे एक दिन पहले पूर्णोपवास कर लिया जाए तो अच्छा रहता है।
  • पूर्णोपवास – विशुद्ध ताजे जल के अतिरिक्त किसी प्रकार की खाद्य वस्तु न ग्रहण करना ‘पूर्णोपवास’ कहलाता है।
  • साप्ताहिक उपवास – सप्ताह में एक दिन पूर्णोपवास नियमपूर्वक करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और रोग होने की संभावना कम होती है। ऑफिस में दिन भर बैठनेवालों को यह उपवास जरूर करना चाहिए।

उपवास से लाभ

धार्मिक दृष्टिकोण से लाभ : यदि पूर्ण विधि-विधान एवं निष्ठापूर्वक उपवास रखा जाए तो आरोग्यता तो बढ़ती ही है, आत्मबल व संकल्प शक्ति में भी वृद्धि होती है। मन में सात्त्विक एवं सकारात्मक विचार आते हैं। फलतः व्यक्ति अनेक मानसिक व्याधियों, जैसे-तनाव, अवसाद, हीनता आदि से मुक्त रहता है। सोचने-समझने की शक्ति व एकाग्रता बढ़ती है। इसके अलावा उपवास के दिन व्यक्ति प्रायः गंभीरतापूर्वक नियम-धर्म से चलता है। वह गाली-गलौज, क्रोध व मद्यपान आदि से दूर रहता है। कम बोलता है व हर समय ईश्वर-भक्ति में लगा रहता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लाभ : वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो उपवास रोगों के लिए महौषधि है। इससे पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है। फलतः भोजन का पाचन ढंग से हो जाता है। शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों का निष्कासन आसानी से हो जाता है। दुर्बलता, रक्ताल्पता, भूख न लगना, साँस फूलना, आमाशय का कैंसर आदि व्याधियाँ तो दूर होती ही हैं, विभिन्न उदर रोग, जैसे- कब्ज, आँत संग्रहणी, बवासीर आदि से भी मुक्ति मिलती है। हृदय की धमनियाँ लंबे समय तक स्वस्थ रहती हैं। उपवास से मोटापा भी नियंत्रण में रहता है।

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