साईं बाबा व्रत कथा उद्यापन विधि आरती

साईं बाबा व्रत कोई भी व्यक्ति कर सकता है। इस व्रत को करने के नियम भी अत्यंत साधारण हैं। साईं बाबा अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं। उनकी कृपा से सभी की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। माँगने से पहले ही वे सबकुछ देते हैं। उनके स्मरण मात्र से जीवन में आ रही बाधाओं में कमी होती है। कहा भी जाता है कि शिर्डी वाले श्री साईं बाबा की महिमा का कोई ओर-छोर नहीं है। साईं बाबा पर पूरा विश्वास करने वालों को कभी निराशा का सामना नहीं करना पड़ता है।

  1. इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष और बच्चे कर सकते हैं।
  2. किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति इस व्रत को कर सकता है।
  3. यह व्रत बहुत ही चामत्कारिक है। 7 या 9 गुरुवार विधिपूर्वक इस व्रत को करने से निश्चित ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
  4. साईं बाबा व्रत किसी भी गुरुवार को साईं बाबा का नाम लेकर शुरू किया जा सकता है। जिस अभीष्ट कार्य के लिए व्रत किया जाए, उसकी धारणा सच्चे मन से करते हुए साईं व्रत को करना चाहिए।
  5. किसी आसन पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर साईं की सिद्ध प्रतिमा रखकर चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए और उन पर पीले फूल का हार चढ़ाना चाहिए। फिर अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़नी चाहिए और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिए। उसके बाद प्रसाद बाँटना चाहिए। प्रसाद में कोई भी फल या मिठाई बाँटी जा सकती है।
  6. साईं बाबा व्रत फलाहार लेकर, जैसे-दूध, चाय, फल, मिठाई अथवा एक समय भोजन करके भी किया जा सकता है।
  7. 7 या 9 गुरुवार को हो सके तो साईं बाबा के मंदिर जाकर उनके दर्शन भी अवश्य करें और नियम से उनकी आरती में भी शामिल हों; नहीं तो घर पर ही श्रद्धापूर्वक साईं बाबा की पूजा व आरती की जा सकती है।
  8. कहीं आवश्यक काम से बाहर जाना पड़ जाए, तो भी इस व्रत को किया जा सकता है।
  9. व्रत के समय स्त्रियों को मासिक धर्म की समस्या आ जाए अथवा किसी कारण से व्रत न हो पाए तो उस गुरुवार को 7 या 9 गुरुवार की गिनती में शामिल न किया जाए। उस गुरुवार के बदले अन्य गुरुवार को व्रत करके अपने व्रत पूरे करें, तत्पश्चात् उद्यापन करना न भूलें।
साईं बाबा व्रत कथा आरती

साईं बाबा व्रत कथा

एक शहर में कोकिला नाम की स्त्री और उसके पति महेशभाई रहते थे। दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था। दोनों में आपस में स्नेह और प्रेम था, पर महेशभाई में कभी-कभार झगड़ा करने की आदत थी। परंतु कोकिला अपने पति के क्रोध का बुरा न मानती थी। वह धार्मिक आस्था और विश्वासवाली महिला थी। उसके पति का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नहीं था।

इस कारण वह अपना अधिकतर समय अपने घर पर ही व्यतीत करता था। समय के साथ काम में कमी होने पर उसके स्वभाव में और अधिक चिड़चिड़ापन रहने लगा। एक दिन दोपहर के समय कोकिला के दरवाजे पर एक वृद्ध महाराज आए। उनके चेहरे पर गजब का तेज था। वृद्ध महाराज के भिक्षा माँगने पर उसने उन्हें दाल-चावल दिए और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया। बाबा के आशीर्वाद देने पर कोकिला के मन का दुःख उसकी आँखों से छलकने लगा।

इस पर बाबा ने कोकिला को श्री साईं व्रत के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को 9 गुरुवार तक एक समय भोजन करके करना है। पूर्ण विधि-विधान से पूजा करना और साईं बाबा पर अटूट श्रद्धा रखना। तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी। महाराज के बताए अनुसार कोकिला ने गुरुवार के दिन साईं बाबा का व्रत किया और नौवें गुरुवार को गरीबों को भोजन भी कराया। साथ ही साईं पुस्तकें भेंटस्वरूप दीं।

ऐसा करने से उसके घर के झगड़े दूर हो गए और उसके घर की सुख-शांति में वृद्धि हुई। इसके बाद दोनों का जीवन सुखमय हो गया। एक बार उसकी जेठानी ने बातों-बातों में उसे बताया कि उसके बच्चे पढ़ाई नहीं करते, यही कारण है कि परीक्षा में वे फेल हो जाते हैं। कोकिला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साईं बाबा के नौ व्रत का महत्त्व बताया। कोकिला बहन के बताए अनुसार जेठानी ने साईं बाबा व्रत का पालन किया। उसके थोड़े ही दिनों में उसके बच्चे पढ़ाई करने लगे और बहुत अच्छे अंकों से पास हुए।

साईं बाबा व्रत उद्यापन विधि

  • जब भी आपके व्रतों की गिनती पूरी हो जाए तो आखिरी गुरुवार को उद्यापन करना चाहिए। इसमें पाँच गरीब व्यक्तियों को भोजन अपनी सामर्थ्यानुसार कराएँ।
  • साईं बाबा की महिमा एवं व्रत का फैलाव करने के लिए अपने सगे- संबंधियों या पड़ोसियों को इस व्रत की 5, 11, 21 पुस्तकें भेंट करें।
  • साईं बाबा व्रत की जो भी पुस्तकें भक्तजनों को भेंट देनी हैं, उन्हें पूजा में रखें और बाद में इन्हें श्रद्धालुओं को भेंट करें, जिससे अन्य व्यक्तियों की भी मनोकामना पूर्ण हो।
  • विधि अनुसार साईं बाबा व्रत एवं उद्यापन करने से निश्चित ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। ऐसा साईं भक्तों का असीम विश्वास है।
सारंगी वाले साईं बाबा की पूजा

साईं बाबा व्रत की आरती

साईं बाबा की भक्ति में आरती का अनुपम स्थान है। शिर्डी में बाबा की लीला का पानी से दीप जलाने से ही प्रारंभ हुआ। जब गाँव के बनियों ने बाबा को तेल नहीं दिया तो बाबा ने पानी से ही दीपक जला दिया। यह दीपावली का दिन था। बाबा को दीप से बहुत लगाव था। वास्तव में वह संसार में अज्ञान, अंधकार, व्याधि आदि को मिटाने के लिए आए थे। द्वारकामाई में प्रकाश फैलाना बाबा के ज्योति दर्शन का एक अभिन्न अंग है। सबसे प्रारंभ में मध्याह्न आरती होती थी।

दोपहर की इस आरती का नियमित क्रम सन् 1909 में प्रारंभ हुआ। इसके बाद सन् 1910 से बाबा नियमित रूप से एकांतर रात्रि में चावड़ी में विश्राम करने लगे। बाबा के चावड़ी पहुँचने पर उनकी रोज आरती होने लगी। इसके बाद उनके चावड़ी से प्रातःकाल द्वारकामाई लौटने के समय प्रभात आरती होने लगी। प्रभात आरती को मराठी में ‘काकड़ आरती’ भी कहते हैं। वास्तव में वस्त्र को लकड़ी में लपेटकर उसमें अग्नि प्रज्वलित करने से जो प्रकाशमय वस्तु बनती है, उसे ‘काकड़’ कहते हैं। संध्याकालीन आरती की शुरुआत बहुत समय बाद से हुई। बाबा को आरती से इतना अधिक लगाव था कि आरती के बहुत से पद बाबा के समय में ही तैयार हो चुके थे।

काका साहेब ने आरती को तैयार करने में रचनात्मक सहयोग दिया। इसमें उपासनी महाराज ने भी अपनी गुरु भक्ति के प्रतीक के रूप में ‘साईं नाथ महिमा स्तोत्र’ की रचना की। आरती में तुकाराम, जानाबाई, एकनाथ, माहिनीराज, कृ.जा. भीष्म आदि के पदों को लिया गया। इसमें सनातन मार्ग की उपासना पद्धति के अनुरूप क्षमा, प्रार्थना आदि श्लोक को शामिल किया गया। आज भी बाबा के मंदिरों में आरती के समय ध्यान से देखने पर पता चलता है कि बाबा अत्यंत ही प्रसन्न भाव से भक्तों के निवेदन को स्वीकार करते हैं।

साईं बाबा व्रत

आरती में मराठी भाषा के अधिकांश पद हैं। संस्कृत के भी पद हैं। साईं बाबा व्रत की आरती में सनातन उपासना, भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग के दर्शन का अद्भुत समावेश है। चार आरतियों में प्रत्येक आरती का समय लगभग आधे घंटे का है। इसमें पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोलक, मृदंग, करताल आदि से ही अनुपम संगीतमय समा बंध जाता है। आरती में तुकाराम और जानाबाई आदि के पदों के माध्यम से साईंनाथ की आराधना पंढरपुर के पंढरीनाथ अर्थात् श्रीकृष्ण के रूप में की गई है। मराठी अंचल में पंढरीनाथ की उपासना सगुण भक्ति का उत्कृष्टतम रूप है। मराठी जनमानस ने बाबा में ही पंढरीनाथ का दर्शन किया।

  1. आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानंद सदा सुखकर की। जाकी कृपा विपुल सुखकारी। दुःख, शोक, संकट, भयहारी।
  2. शिर्डी में अवतार रचाया। चमत्कार से तत्त्व दिखाया।
  3. कितने भक्त चरण पर आए। वे सुख-शांति चिरंतन पाए।
  4. भाव धरे जो मन में जैसा। पावन अनुभव वो ही वैसा।
  5. गुरु की उदी लगावे तन को। समाधान लाभत उस मन को।
  6. साईं नाम सदा जो गावे। सो फल जग में शाश्वत पावे।
  7. गुरुवार करि पूजा सेवा। उस पर कृपा करत गुरुदेवा।
  8. राम, कृष्ण, हनुमान रूप में। दे दर्शन जानत जो मन में।
  9. विविध धर्म के सेवक आते। दर्शन कर इच्छित फल पाते।
  10. जै बोलो साईं बाबा की। जै बोलो अवधूत गुरु की।
  11. साईं दास आरती को गावे। घर में बसे सुख मंगल पावे।
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