रामनवमी व्रत पूजन विधि महत्व

चेत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी व्रत होता है। यह व्रत मध्याह्न व्यापिनी दशमी विधि को करना चाहिए। ‘अगस्त्य संहिता’ में कहा गया है कि चैत्र शुक्ल नवमी पुनर्वसु नक्षत्र से संयुक्त हो तो महान् पुण्यदायी होती है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान् श्रीराम का अवतार हुआ। अतः जो व्यक्ति रामनवमी का व्रत करता है, उससे उसके जन्म के पाप भस्मीभूत हो जाते हैं। रामनवमी व्रत से भक्ति व मुक्ति दोनों की ही सिद्धि होती है।

रामनवमी व्रत कैसे करें?

रामनवमी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर की उत्तर दिशा या ईशान कोण में एक सुंदर मंडप बना लें। भगवान् श्रीराम परिवार अथवा रामदरबार की मूर्ति, प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। हनुमानजी को विराजमान करें। फिर इस मंडप में विराजमान सीता, राम, लक्ष्मण, हनुमानजी का विविध उपचारों (जल, पुष्प, गंगाजल, वस्त्र, अक्षत, कुमकुम) आदि से यथाशक्ति पूजन करें। रामनवमी व्रत में निम्न बातों का ध्यान रखें

  • श्रीरामजी की पूजा से पूर्व हनुमानजी की पूजा जरूर करें। हनुमानजी की पूजा के बिना श्रीराम को पूजा स्वीकार्य नहीं है। भगवान् उसे ग्रहण नहीं करते।
  • हनुमानजी को सिंदूर व चमेली के तेल चढ़ाएँ। चाँदी का वरक अथवा चमकीले पन्ने का वस्त्र उनको चढ़ता है, उसे जरूर चढ़ाएँ।
  • भगवान् राम को सीताफल अत्यंत प्रिय है। इसे प्रसाद स्वरूप चढ़ाएँ। मावे से बनी मिठाई भोग (नैवेद्य) में अर्पित करें।
  • भगवान् श्रीराम को रक्त कमल पसंद है। रक्त कमल के अभाव में रक्त पुष्प (लाल रंग के पुष्पों) से श्रीराम का पूजन करें।
  • जिन महिलाओं को सौभाग्य व सुंदर पति की कामना है, वे सीताजी का सौभाग्य द्रव्य (सिंदूर, चूड़ियाँ, आभूषण) आदि से पूजन करें व सौभाग्य की कामना करें।
  • तीर्थजल से अथवा गंगाजल से श्रीराम का अभिषेक करें। गंगाजल या अन्य किसी भी तीर्थजल से मूर्ति प्रतिमा या फ्रेम की हुई तसवीर को साफ करें तथा कुमकुम व चावल आदि चढ़ाएँ।

आमतौर पर यह भी देखा गया है व्रतवाले दिन लोग फलाहार भोजन से भी अधिक करते हैं। व्रत अपने ईष्ट आराध्य को प्रसन्न करने हेतु किया गया तप है। इसमें उपासक अपने शरीर को कष्ट देकर अपने आराध्य के प्रति भक्ति प्रदर्शित करता है, अतः फलाहार का ज्यादा सेवन करने से व्रत निष्फल हो जाता है।

रामनवमी व्रत का महत्व

जो एक बार प्रभु राम के सम्मुख हो जाता है, उसके करोड़ों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में ख्यातिप्राप्त राम का जन्म महोत्सव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यदि पुनर्वसु नक्षत्र से नवमी तिथि संयुक्त हो, तो संपूर्ण कामनाओं को देनेवाली होती है। यह रामनवमी व्रत करोडों सूर्य ग्रहों से अधिक फलदायक होती है।

बाबा तुलसीदास ने ‘श्री रामचरितमानस’ की रचना इसी दिन से अयोध्या में आरंभ की थी। यदि चैत्र शुक्ल नवमी तिथि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त होकर मध्याह्न व्यापिनी हो, तो वह महापुण्यप्रद होती है। चैत्र मास की नवमी तिथि में स्वयं हरि राम के रूप में उत्पन्न हुए। इस दिन प्रत्येक राम मंदिर में भक्तों द्वारा श्रीराम का गुणगान किया जाता है।

Mandir

कहते हैं, जहाँ पर राम जन्म महोत्सव का आयोजन किया जाता है, वहाँ सभी देव व तीर्थ अदृश्य रूप में उपस्थित रहते हैं, अतः सभी तीर्थों की यात्रा से प्राप्त होनेवाला पुण्य फल इस रामनवमी व्रत के दिन एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाता है। इसी कारण चैत्र शुक्ल नवमी को ‘रामनवमी’ कहा जाता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदान ने ‘रामचरितमानस’ की रचना का शुभारंभ किया था। इस दृष्टि से भी रामनवमी का महत्त्व है। अपने भक्तों के जन्म-जन्मों के पापों को नष्ट करनेवाले आनंदसागर, सुख के धाम, जो श्रीराम हैं, आज ही के दिन अवतरित हुए थे।

अगस्त्य संहिता के अनुसार चैत्र मास की नवमी के दिन स्वयं हरि ने रामावतार लिया। रामनवमी व्रत का पुण्य कोटि सूर्य ग्रहणों के समय दान देने के पुण्य से भी अधिक है। इस दिन आठों प्रहर भगवान् राम का स्मरण तथा जप करें। ‘रामचरितमानस’ का पाठ करें। भगवान् राम का सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि सहित पूजन करें। ब्राह्मणों को यथाशक्ति वस्त्र, भोजन, दक्षिणा दान दें। इस व्रत को करने से भगवान् राम की कृपा से जीवन में भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति होती है।

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