प्रमाणन अर्थ परिभाषा 4 उद्देश्य महत्व

प्रमाणन का अर्थ हिसाब-किताब की पुस्तकों में की गयी प्रविष्टियों को अनुबंधों, रसीदों, भुगतान पुस्तिका के प्रति पत्रों या लिखित प्रमाण से पुष्टि करने से लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जाता है, कि इसमें बीजक पुस्तिका की प्रविष्टियों की जाँच, बीजकों से नकद प्राप्तियों की जाँच रसीद पुस्तिका से नकद भुगतान की जाँच, रुपया पाने वाले द्वारा दी गई रसीदों आदि से की जाती है।

प्रमाणन

इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी है-

प्रमाणन का आशय खाताबही की प्रविष्टियों की ऐसी जाँच करने से है जिससे अंकेक्षक का यह विश्वास हो जाये कि केवल प्रत्येक प्रविष्टि प्रमाणक के आधार पर की गई है बल्कि यह पुस्तकों में भी उचित प्रकार से लिखी गई है।

जोसेफ लंकास्टर

प्रमाणन का अर्थ लेखा पुस्तकों में की गई प्रविष्टियों की उन प्रपत्रों से जाँच करना है जिनके आधार पर इन्हें लिखा गया है।

डिक्सी

प्रमाणन का अर्थ प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखे गये लेखों की सत्यता की जाँच करने से है।

जे० आर० बाटलीवॉय

प्रमाणन के अर्थ केवल नकद प्राप्तियों के रोकड़ पुस्तक से जाँच करना ही नहीं वरन इसमें व्यापार के लेनदेनों को प्रपत्रों एवं पर्याप्त वैधता वाले अन्य प्रमाणों से परीक्षण करना भी सम्मिलित है। जिससे अंकेक्षक को यह विश्वास हो जाये कि लेनदेन ठीक है, पूर्ण रूप से अधिकृत है तथा पुस्तको में सही ढंग से लिखे गये हैं।

प्रमाणन से तात्पर्य प्रमाणकों के परीक्षण अथवा सत्यापन करने एवं खाताबही की प्रविष्टित को प्रमाणकों से मिलान करने से है जिससे उनके स्वामित्व एवं अधिकार की स्वीकृति संबंधित सा को देखा जा सकता है।

डब्ल्यू होम्स
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प्रमाणन के उद्देश्य

प्रमाणन के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं-

  1. लेखों का सत्यापन – प्रमाणन का प्रथम उद्देश्य लेखों की सत्यता का पता लगाना होता है। अर्थात् लेखा पुस्तकों में जो लेखे दिखाये गये हैं वे सत्य हैं या असत्य, इसका पता लगाना होता है। इससे इस बात की जानकारी हो जाती है।
  2. व्यवसाय से संबंधित लेखों का ज्ञान – प्रमाणन का दूसरा उद्देश्य यह देखना होता है कि व्यवसाय से संबंधित सभी लेखे किये गये हैं या यदि कोई लेखा नहीं किया गया है तो उसे लिखवाना भी उद्देश्य होता है।
  3. व्यवसाय से संबंध न रखने वाले लेखों का ज्ञान – प्रमाणन का तीसरा उद्देश्य ऐसे लेखों की जानकारी प्राप्त करना भी होता है जिनका संबंध व्यवसाय से नहीं होता है। यदि ऐसे लेखों को लिख दिया गया है। तो उसे हटाना भी होता है। इस संबंध में स्पाइसर एवं पैगलर ने विचार निम्नलिखित हैं। इसका एक प्रमुख उद्देश्य केवल यह जानना ही नहीं है कि व्यवसाय से मुद्रा क भुगतान वास्तव में कर दिया गया है अपितु इसका प्रमुख उद्देश्य यह जानना भी है कि ऐसा भुगतान व्यवसाय से संबंधित सौदे के संबंध में किया गया है, व्यवसाय से असंबंधित सौदे के संबंध में नहीं।
  4. लेखों का अधिकृत होना – प्रमाणन का चौथा उद्देश्य लेखों के अधिकृत होने की जानकारी प्राप्त करना। यदि किसी व्यवहार के संबंध में अंकेक्षक को संदेह है तो उत्तरदायी अधिकारी को यह साबित करना चाहिए कि व्यवसाय के संबंध में जो लेखे किये गये हैं तो पूर्ण रूप से अधिकृत हैं।

प्रमाणन का महत्व

इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने प्रमाणन के महत्व को निम्न प्रकार प्रकट किया है-

यह कहना सत्य है कि प्रमाणन अंकेक्षण का सार है क्योंकि इसके माध्यम से ही अंकेक्षक व्यवहारों के लेखों की पूर्णता व प्रमाणिकता के लिए स्वयं को आश्वस्त कर सकता है।

प्रो० आर० बी० बोस

प्रमाणन अंकेक्षण का सार है एवं अंकेक्षण की पूरी सफलता इस बात पर आधारित है कि यह कार्य कितनी चुतराई एवं पूर्णता के साथ पूर्ण किया गया है।

एक अंकेक्षक जो अपने अंकेक्षण को गहन एवं कुशल प्रमाणन पर आधारित नहीं करता अंधा है। अधिकांश दशाओं में चातुर्य ढंग से किये गये कपटों को केवल इसके द्वारा ही पकड़ा जा सकता है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि अंकेक्षण की इस क्रिया को बहुत सावधानी एवं बुद्धिमत्तापूर्वक सम्पन्न किया जाये।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह अंकेक्षण की आधारशिला है जिस पर अंकेक्षण का संपूर्ण ढांचा निर्भर करता है। जिस इमारत की आधारशिला जितनी सुदृढ़ होगी, वह इमारत उतनी ही सुदृढ़ मानी जाती है। इसीलिये प्रमाणन को अंकेक्षण का आधार माना जाता है। प्रमाणन के अन्तर्गत सबसे पहले प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखी गयी प्रारम्भिक लेखों की प्रमाणिकता, शुद्धता एवं अशुद्धता की जाँच की जाती है। कागजी सबूतों, पुस्तकों की प्रविष्टियों की जांच इसलिये की जाती है ताकि निश्चित समय के भीतर सभी लेनदेनों की जाँच की जा सके।

ऐसे लेखों की जाँच करते समय अंकेक्षक को बड़ा सतर्क रहना चाहिए जिनका कोई प्रमाणन नहीं है। इसका कार्य समाप्त होने के बाद अंकेक्षक यह कह सकता है कि संस्था की पुस्तकें वास्तविक स्थिति को प्रकट करती हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि प्रमाणन अंकेक्षण का मेरुदण्ड है। इस बात से इसका महत्व स्पष्ट होता है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रीढ़ की हड्डी का महत्व है यदि रीढ़ की हड्डी टूट जाये या कमजोर हो जाये तो मनुष्य के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है, ठीक उसी प्रकार यदि प्रमाणन कमजोर है।

यह ठीक सिद्धान्तों पर आधारित नहीं है। ऐसी स्थिति में अंकेक्षण अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा। प्रमाणन के महत्व को देखते हुए कुछ विद्वानों ने इसे अंकेक्षण की आत्मा भी कहा है। व्यवसाय के लेनदेन में व्यवहार चाहे जितने कम क्यों न किये जायें, प्रमाणन बुद्धिमत्तापूर्ण होना चाहिए।

प्रमाणन के महत्व पर विचार करते हुए डिपौला ने लिखा है, यह अंकेक्षण प्रक्रिया का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है और अंकेक्षण की पूरी सफलता इसी बात पर आधारित है कि इसका कार्य कितनी चतुराई तथा पूर्णता के साथ किया गया है।
आरमिटेज बनाम विवेर एण्ड नॉट के विवाद में न्यायाधीश द्वारा अंकेक्षक पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने खुदरा रोकड़ तथा मजदूरी का प्रमाणन क्यों नहीं किया। अतः सही अंकेक्षण के लिए व्यवसाय के प्रत्येक लेन-देन का प्रमाणन आवश्यक है।

प्रमाणन करते समय ध्यान देने योग्य बातें

प्रमाणन की जाँच करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है।

  1. प्रमाणकों का स्वामी के नाम में होना – प्रमाणन की जाँच करते समय अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि प्रमाणक संस्था के स्वामी के नाम है या नहीं। यदि प्रमाणक में स्वामी का नाम नहीं है तो ऐसे प्रमाणक के आधार पर प्रमाणन नही करना चाहिए।
  2. प्रमाणकों की क्रम संख्या – प्रमाणकों में स्वामी का नाम देखने के बाद अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि प्रमाणकों पर क्रम संख्या पड़ी है या नहीं।
  3. प्रमाणकों की तिथि – प्रमाणकों की क्रम संख्या देखने के बाद यह देखना चाहिए कि जिस अवधि के लेखे तैयार किये गये हैं प्रमाणक उसी अवधि के हैं या नहीं। यदि कोई प्रमाणक संबंधित लेखा अवधि से पहले का है या बाद का है तो उसके आधार पर प्रमाणन नहीं करना चाहिए।
  4. प्रमाणकों का व्यवसाय से संबंध – प्रमाणकों की तिथि देखने के बाद अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि प्रमाणक व्यवसाय से संबंधित या नहीं। ऐसे प्रमाणकों के आधार पर अंकेक्षण नहीं करना चाहिए जिनका व्यापार से संबंध न हो।
  5. अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर – प्रमाणकों को व्यवसाय के संबंध में देखने के बाद अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि प्रमाणकों पर अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर हैं या नहीं। यदि किसी प्रमाणक पर अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है तो ऐसे प्रमाणकों को अंकेक्षण में शामिल नहीं करना चाहिए।
  6. रसीदी टिकट – अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि यदि कोई प्रमाणक 500 से ज्यादा का है तो उस पर रसीदी टिकट लगी है या नहीं है। अंकेक्षक को ऐसे प्रमाणकों का अंकेक्षण क्रिया में शामिल नहीं करना चाहिए, जिन पर रसीदी टिकट न लगे हों।
  7. अंकों तथा शब्दों में समान राशि – रसीदी टिकट देखने के बाद अंकेक्षक को अंकेक्षण करते समय यह भी देखना चाहिए कि प्रमाणकों पर लिखी गयी धनराशि अंकों तथा शब्दों में समान है या नहीं। यदि किसी प्रमाणक में लिखी गयी धनराशि के अंकों और शब्दों में कोई समानता नहीं है तो ऐसे प्रमाणकों को अंकेक्षण में शामिल नहीं करना चाहिए।
  8. रद्द किये हुए प्रमाणक – अंकेक्षक को यदि किसी प्रमाणक को रद्द कर दिया गया है, तो अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि प्रमाणक को अधिकृत अधिकारी द्वारा रद्द किया गया है या नहीं, उस पर संबंधित अधिकारी के हस्ताक्षर हैं या नहीं।
  9. स्वतंत्र जांच – अंकेक्षक को प्रमाणन करते समय संस्था के कर्मचारियों की सहायता नहीं लेनी चाहिए अर्थात् यह कार्य स्वयं स्वतन्त्र रूप से करना चाहिए।
  10. पुनरावृत्ति की जाँच – प्रमाणकों की जाँच करते समय इस बात की जाँच करना चाहिए कि कहीं ऐसे प्रमाणक प्रयोग में न लाये जा रहे हों जिनका उपयोग पहले कहीं एक बार हो चुका हो।
  11. विवरणों से तुलना – अंकेक्षण करते समय प्रमाणकों को विवरणों से मिला लेना चाहिए।
  12. विशेष चिन्हों का प्रयोग – जिन प्रमाणकों की जाँच कर ली जाये, उन पर विशेष चिन्ह अंकित कर देना चाहिए, जिससे पुनः न दिखाये जा सके।

प्रमाणक

ये सभी कागजी सबूत जो पुस्तकों के लिए उचित व्यवस्था के साथ रखे जाते हैं प्रमाणक कहलाते हैं। प्रमाणक एक व्यापक शब्द है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि किसी भी लेन-देन की पुष्टि करने वाला कोई भी कागजी साक्ष्य (जैसे रसीद बीजक, बिल, प्रसंविदा माँग-पत्र पुस्तक या पुस्तिका, आदेश की प्रतिलिपि, पत्र-प्रपत्र या अन्य कोई भी लिखित प्रमाण आदि) प्रमाणक कहलाता है। एक प्रविष्टि के लिए एक या अनेक प्रमाणक हो सकते हैं। पुस्तको में प्रविष्टियों के करने के लिए पर्याप्त एवं उचित प्रमाणकों का होना अत्यन्त आवश्यक है।

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