पर्यावरण परिवर्तन के कारण – मानव के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक गतियों के रूप विभिन्न वातावरण में विकसित हुए हैं। वातावरण की सीमा इन सभी पर लागू होती है। लेकिन समय के साथ-साथ मानवीय क्षमता-दक्षता के कारण उपलब्ध पारिस्थितिकी से वह संतुष्ट नहीं रहा। मानव ने देखा प्राकृतिक वातावरण में बहुत कुछ दे रहा है लेकिन सुविधाएं व साधन न होने के कारण हम उनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
इसलिए मानव नहरें खोदकर सिंचाई की व्यवस्था विकसित करके कृषि व्यापार में वृद्धि करने लगा। जिन भागों में खनिज दबे पड़े थे उन्हें निकाल कर विकसित करके कृषि व्यापार में वृद्धि करने लगा। जिन भागों में खनिज दबे पड़े थे उन्हें निकालकर उद्योगों का विकास किया। आज घने जंगलों को काट कर कृषि क्षेत्रों में बदल दिए हैं, बड़े बड़े उद्योगों मिले, फैक्ट्रियां, आवागमन के साधनों का जाल बिछा देने से कई क्षेत्र घनी आबादी के महानगरों में बदल गए हैं।

इस प्रकार के परिवर्तन में पारिस्थितिकी व्यवस्था को भी बदलने पर मजबूर किया यानी कि जंगल काटने से उस क्षेत्र के तापमान में वृद्धि हो गई है। पेड़ पौधे ना रहने से तमाम पशु पक्षी विलुप्त हो गए हैं। तापमान वृद्धि से वर्षा के औसत में भी कमी आई है। इस प्रकार धीरे-धीरे हरा भरा क्षेत्र कुछ ही वर्षों में वीरान व खाली-खाली सूखा रहने लगा। आप पर्यावरण परिवर्तन के कारण Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
पर्यावरण परिवर्तन के कारण
पर्यावरण परिवर्तन के उत्तरदाई कारणों का विवरण इस प्रकार है-
- तीव्र जनसंख्या वृद्धि
- कृषि विकास
- अशिक्षा, अज्ञानता व पर्यावरण बोध
- उच्च भौतिक जीवन स्तर
- औद्योगिकरण
- परिवहन विकास
- ताप विद्युत का उत्पादन
- नगरीकरण
तीव्र जनसंख्या वृद्धि
तीव्र जनसंख्या वृद्धि पर्यावरण परिवर्तन का प्रत्यक्ष व प्रमुख कारण है। अनुमान है कि लगभग 8000 ईसा पूर्व विश्व की जनसंख्या मात्र 5 मिलीयन थी। जो ईसा के जन्म काल में 20 मिलियन, 1650 ई• में 47 मिलियन और 1800 ई• में 91.9 मिलियन हो गई। 1900 ई• में औद्योगिक क्रांति के बाद 157.1 मिलीयन, 2000 ई• में लगभग 620 मिलियन हो गई। उक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि विश्व की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है इस बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि भूमि का अधिकाधिक विस्तार किया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन भी हो रहा है।

कृषि विकास
कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है। भारत के हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय भागों में वनों को साफ करके सेव की कृषि का विस्तार किया जा रहा है। इस प्रकार कृषि विकास द्वारा उत्तर पूर्ति की समस्या हल हो रही है। लेकिन उससे हो रही पर्यावरण की छत को पूरा नहीं किया जा रहा है।
अशिक्षा, अज्ञानता व पर्यावरण बोध
जिन देशों में शिक्षा का प्रचार प्रसार है वहां के लोग समाचार माध्यमों से पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों से अवगत होते रहते हैं। उदाहरण के लिए नागासाकी और हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट का कुपरिणाम शिक्षित समाज देख चुका है इसलिए आज अणुशक्ति परीक्षण का विरोध हो रहा है। इसी प्रकार डीडीटी जैसे कीटाणुनाशकों के प्रयोग पर विश्व के कई देशों ने प्रतिबंध लगा दिया है। आप पर्यावरण परिवर्तन के कारण Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
उच्च भौतिक जीवन स्तर
बीसवीं शताब्दी में मानव की भौतिक आवश्यकताएं इतनी अधिक बढ़ गई है कि उनकी पूर्ति के लिए संसाधनों का शोषण अधिक होने लगा है, जिससे पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है।

औद्योगिकरण
सर्वप्रथम 1860 में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के साथ औद्योगिकीकरण प्रारंभ हुआ। तत्पश्चात औद्योगिकीकरण की लहर संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पश्चिमी यूरोपीय देशों, जापान इत्यादि में पहुंचा। सन 1979 मैं संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों के एक दल ने अनमान लगाया कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दुगनी हो जाने से वायुमंडल का तापमान तीन सेल्सियस तक बढ़ सकता है। तापमान में इस वृद्धि से जलवायु संबंधी परिवर्तन हो सकते हैं। इससे वर्षा की मात्रा तापमान इसी प्रकार बढ़ता रहा तो हिमालय के 15,000 हिमनदों का अधिकांश भाग आने वाले 40 वर्षों में पिघल जाएगा।
गंगोत्री हिमनद का लगभग एक तिहाई भाग पिछले 50 वर्षों में पिघल चुका है। हिमालय के हिंदुओं के पिघलने से पहले तो यहां से निकलने वाली नदियों में बाढ़ में आएंगे और उसके बाद उनके जल में भारी कमी आ जाएगी। अनुमान है कि विश्व के हिमनद पिघलने से उनका जल समुद्र में जाएगा और समुद्र का जल 15 से 20 मीटर ऊंचा हो जाएगा। इससे अधिकांश तटीय भाग तथा सभी बंदरगाह नष्ट हो जाएंगे। आप पर्यावरण परिवर्तन के कारण Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
परिवहन विकास
औद्योगीकरण के कारण ही परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे रेलो मोटर गाड़ियों, वायुयान, स्कूटर, मोटरसाइकिलों आदि के चलाने के लिए कोयला, पेट्रोल तथा डीजल आदि जैव इंधनों का प्रयोग किया जाता है इनसे निकलने वाला धुआं वायु में नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन तथा अन्य कई प्रदूषणकारी तत्व छोड़ता है, इससे फेफड़े का कैंसर तथा रक्त प्रवाह में व्यवधान पैदा होने से अनेकों लोग मरते हैं।

ताप विद्युत का उत्पादन
विकसित एवं विकासशील देशों में विद्युत उत्पन्न करने के लिए ताप विद्युत गृह लगाए गए हैं, जिनमें बड़ी मात्रा में कोयला प्रयोग किया जाता है। भारत में कोरबा ताप विद्युत केंद्र पर कोयला जलाने के कारण इतनी राख जमा होती है कि इसे अब राख ग्रह के नाम से पुकारा जाता है। अनुमान है कि कोरबा के 40% निवासी दमा टीवी तथा सांस की बीमारियों से पीड़ित है।
नगरीकरण
औद्योगिकरण के कारण नगरीकरण में वृद्धि हो रही है। नगरों की ओर प्रवाह संयुक्त राज्य और सोवियत संघ में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में देखा जा सकता है। ग्रेट ब्रिटेन की लगभग आधी जनसंख्या 6 बड़े शहरों में केंद्रित है। नगरीकरण का पर्यावरण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। आप पर्यावरण परिवर्तन के कारण Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

मानव का पर्यावरण पर प्रभाव
मानव पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी क्रम को अत्यधिक प्रभावित कर रहा है। एक क्षेत्र के पारिस्थितिक क्रम के मुख्य तीन अंग हैं-
- प्राकृतिक वातावरण
- मानव विकास
- तकनीकी विकास
मानव पर्यावरण द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करता है इसके लिए वह बुद्धि, क्षमता, तकनीकी आदि का प्रयोग कर पर्यावरण के तत्वों को परिवर्तित एवं शोधित करता रहता है। धीरे-धीरे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने लगता है और मानव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। अतः स्पष्ट होता है कि जनसंख्या वृद्धि से जनसंख्या का दबाव जैसे-जैसे पर्यावरण पर अधिक होता जाता है यह पर्यावरण का अधिक शोषण करने लगता है। अतः जनसंख्या का पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी पर प्रभाव निम्न रूप में दिखाई देता है।
- वनोन्मूलन
- भूमि का अधिक उपयोग
- जीव जंतुओं का विनाश
- जल आपूर्ति में कमी
- पर्यावरण प्रदूषण – जलवायु ध्वनि एवं भूमि प्रदूषण में वृद्धि
- जलवायु में क्रमिक परिवर्तन
- संसाधनों के शोषण में वृद्धि

उपर्युक्त प्रभावों से जहां पारिस्थितिक तंत्र के सामान्य परिचालन में बाधा आती है वही मनुष्य अनेक आपदाओं जैसे सूखा, अकाल, बाढ़, मरुस्थलीकरण तथा अनेक जानलेवा बीमारियों का शिकार हो जाता है। वर्तमान में जनसंख्या की वृद्धि जिस गति से हो रही है यदि यह क्रम जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य के अस्तित्व का संकट हो जाएगा क्योंकि मानव वातावरण का सामंजस्य वह आधार है जिससे विश्व मानव का भविष्य सुरक्षित रह सकता है।