निर्जला एकादशी व्रत नियम संदेश महत्व

निर्जला एकादशी व्रत – ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। अन्य माह की एकादशियों में फलाहार किया जाता है, परंतु इसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता। एक ओर ज्येष्ठ की भीषण गरमी और दूसरी ओर साधक द्वारा निर्जल व्रत रखना। पूरा एक दिन बिना पानी के रहना भारतीय उपासना पद्धति में कष्ट सहिष्णुता की पराकाष्ठा को ही दरशाती है। धर्म, आस्था व आत्मसंयम की साधना के इस अनूठे पर्व के बारे में विस्तार से जानें, इस लेख से।

भारतीय उपासना पद्धति में व्रत व उपवास का बहुत महत्त्व है। हमारे यहाँ प्रत्येक मास कोई-न-कोई बड़ा व्रत होता ही है। ऐसा ही एक महान् व पुण्यकारी व्रत है-निर्जला एकादशी। इस व्रत के करने से आरोग्य की वृद्धि तथा उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। महाभारत’ के अनुसार अधिमास सहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशियाँ न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का ही व्रत कर लेने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है।

निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी व्रत

निर्जला एकादशी के दिन पानी का वितरण देखकर आपके मन में एक प्रश्न अवश्य आता होगा कि जहाँ इस दिन के उपवास में पानी न पीने का व्रत होता है तो यह पानी वितरण करनेवाले कहीं लोगों का धर्म भ्रष्ट तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन इसका मूल आशय यह है कि व्रतधारी लोगों के लिए यह एक कठिन परीक्षा की ओर संकेत करता है कि चारों ओर आत्मतुष्टि के साधन रूप जल का वितरण देखते हुए भी उसकी ओर आपका मन न चला जाए।

अतः इस उपासना का सीधा संबंध एक ओर जहाँ पानी न पीने के व्रत की कठिन साधना है, वहीं आम जनता को पानी पिलाकर परोपकार की प्राचीन भारतीय परंपरा से भी है। यह व्रत आयु, आरोग्य और पापों का नाश करनेवाला माना गया है। वहीं इसके व्यावहारिक पक्ष पर विचार करें तो पाते हैं कि यह व्रत वास्तव में पानी की अहमियत को बताता है। जल पंच तत्त्वों में से एक माना गया है। चूँकि अकसर इनसान किसी विषय या वस्तु का महत्त्व उससे शरीर और मन में होनेवाले अनुभव के आधार पर ही समझता है। यही कारण है कि इस व्रत का विधान जल का महत्त्व बताने के लिए ही धर्म के माध्यम से परंपराओं में शामिल किया गया।

एकादशी व्रत

पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु – इन पाँच तत्त्वों से ही मानव देह निर्मित होती है। अतः पाँचों तत्त्वों को अपने अनुकूल बनाने की साधना अति प्राचीन काल से हमारे देश में चली आ रही है। अतः निर्जला एकादशी अन्नमय कोश की साधना से आगे जलमय कोश की साधना का पर्व है। पंचतत्त्वों की साधना को योग दर्शन में गंभीरता से बताया गया है। अतः साधक जब पाँचों तत्त्वों को अपने अनुकूल कर लेता है तो उसे न तो शारीरिक कष्ट होते हैं और न ही मानसिक पीड़ा। साथ ही साधना द्वारा कष्टों को सहन करने का अभ्यास हो जाने पर समाज में एक- दूसरे के प्रति सहयोग की भावना जागती है।

निर्जला एकादशी से जल का संदेश

यह व्रत आयु, आरोग्य और पापों का नाश करनेवाला माना गया है। वहीं इसके व्यावहारिक पक्ष पर विचार करें तो पाते हैं कि यह व्रत वास्तव में पानी की अहमियत को बताता है। जल पंच तत्त्वों में से एक माना गया है। चूँकि अकसर इनसान किसी विषय या वस्तु का महत्त्व उससे शरीर और मन में होनेवाले अनुभव के आधार पर ही समझता है। यही कारण है कि इस व्रत का विधान जल का महत्त्व बताने के लिए ही धर्म के माध्यम से परंपराओं में शामिल किया गया।

जब व्रती पूरे दिन जल ग्रहण नहीं करता है, तब जल की प्यास से खुद-ब-खुद उसे जल का महत्त्व महसूस हो जाता है। किंतु धर्म भाव के कारण वह दृढ़ता से व्रत संकल्प पूरा करता है। यह समय एक कठिन तप के समान होता है। वह भी गरमी के ऐसे मौसम में, जबकि पानी का अभाव होता है और जल के साथ ठंडक की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है। यह बातें भारतीय मनीषियों की दूरदर्शिता को उजागर करती हैं।

दरअसल, यह व्रत संदेश देता है कि हम जल का संरक्षण करें। हर व्यक्ति जल उपलब्ध होने पर यह बात भूल जाता है और जल की कमी होने पर हाहाकार मचता है। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि हम जल के साथ और जल हमारे साथ हमेशा रहे तो निर्जला एकादशी के व्रत की मूल भावना को अपनाकर जल का अपव्यय न करने का संकल्प जरूर लें। संकल्प ही व्रत का पर्याय होते हैं।

निर्जला एकादशी व्रत में दान का महत्व

निर्जला एकादशी के दिन भगवान् विष्णु की आराधना की जाती है। लोग ग्रीष्म ऋतु में पैदा होनेवाले फल, सब्जियाँ, पानी की सुराही, हाथ का पंखा आदि का दान करते हैं। इस उपासना में कौटिल्य अर्थशास्त्र के वस्तु-विनिमय सिद्धांत के भी दर्शन होते हैं, क्योंकि धन की अपेक्षा साधन या वस्तुओं को उपलब्ध कराकर समाज तुरंत लाभान्वित होता है। इसलिए इस व्रत के दिन प्राकृतिक वस्तुओं के दान का बड़ा महत्त्व बताया गया है। आर्थिक रूप से सामर्थ्यवान लोग प्राकृतिक वस्तुओं के साथ, धन, द्रव्य आदि का भी दान कर समाज को आत्मबल प्रदान करते हैं।

निर्जला एकादशी व्रत

प्राचीन काल में धर्मज्ञ राजा एवं सामर्थ्यवान लोग निर्जला एकादशी को जल एवं गौ-दान करना सौभाग्य की बात मानते थे। इसीलिए जल में वास करनेवाले भगवान् श्रीमन्नारायण विष्णु की पूजा के उपरांत दान- पुण्य के कार्य कर समाज सेवा की जाती रही है। आज भी अधिक नहीं तो थोड़ा ही सही, श्रद्धालु लोग इस परंपरा का अपनी सामर्थ्य के अनुसार निर्वाह करते हैं।

Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
×