नवरात्र व्रत पूजन विधि 14 नियम

नवरात्र व्रत – यों तो अगर भक्त अपने भगवान् को किसी भी रूप में याद करता है या पूजता है तो भगवान् उसकी पुकार अवश्य सुनते हैं, बस भक्त के दिल में श्रद्धा का होना आवश्यक होता है; लेकिन जहाँ बात पूजा करने की आती है तो उसमें श्रद्धा और पवित्रता के साथ-साथ पूजा सही प्रकार से तथा उचित विधि द्वारा की जाए, यह बहुत ही आवश्यक होता है।

नवरात्र व्रत पूजन विधि

नवरात्र व्रत पूजन वाले स्थान को गाय के गोबर से अच्छी तरह लीप लें। अगर पक्का फर्श है तो अच्छी तरह धोकर स्वच्छ कर लें। पूजन में सबसे पहले कलश स्थापित किया जाता है। कलश को गणेशजी का स्वरूप माना जाता है। सात प्रकार की मिट्टी, गंगाजल मिलाकर एक पीठ तैयार की जाती है। माँ की पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर अर्पित की जाती है। पाँच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है।

माँ भगवती

कलश में सात प्रकार के अनाज अथवा जौ बोए जाते हैं, जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है। इसके बाद सुंदर पाटे पर लाल वस्त्र बिछाकर माँ दुर्गा का आह्वान किया जाता है। देवी को स्नान आदि करवाकर लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं और फिर पूजा के दौरान पुष्प चढ़ाकर, तिलक लगाकर भोग के रूप में मिष्टान्न अर्पित करके माता की आरती उतारी जाती है। माँ की प्रतिमा के साथ महालक्ष्मी माता, गणेशजी तथा विजया नामक योगिनी की भी पूजा की जाती है।

कैसे करें नवरात्र व्रत पूजन?

माँ भगवती भावना और भक्ति की प्रेमी हैं तथा देवी का अर्चन सूक्ष्म भी है और विस्तृत भी। संकल्प उतना ही करना चाहिए, जितना आप कर सकें। प्रतिदिन यदि सात माला के जाप का संकल्प है, तो उतनी ही करनी होंगी। इसलिए संकल्प से पहले अपनी कार्य परिस्थितियों को भी देख लेना चाहिए। अगर संपूर्ण विधि-विधान से जाप किया जाए, तो दुर्गा सप्तशती के पाठ में चार घंटे लग ही जाते हैं। नवरात्र व्रत का विधि-विधान विस्तृत रूप से देखें-

  1. प्रतिपदा को देवी भगवती का ध्यान करते हुए कलश स्थापित करें। एक लोटे में गंगाजल, जौ, तिल, अक्षत डालें। लोटे पर स्वस्तिक (सतिया) बनाएँ। कलावा बाँधें। आम के 5, 7, 9 पत्ते लगाएँ और नारियल (जटाजूट) को चुनरी में या लाल कपड़े में बाँधकर स्थापित कर दें। कांड मंत्र पढ़ सकें, तो अच्छा है, अन्यथा ‘या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः’ पढ़ लें।
  2. आप दुर्गा चालीसा या देवी सूक्ष्म पढ़कर भी कलश स्थापित कर सकते हैं।
  3. कलश स्थापना से पहले गणेश जी, शंकर जी का विशेष स्तवन करें।
  4. कलशोस्थापना के बाद माँ की अखंड ज्योति जलाएँ।
  5. अखंड ज्योति अनिवार्य नहीं है। अगर आप जलाते रहे हों तो जलाएँ।
नवरात्र व्रत पूजन

नवरात्र व्रत पूजा के नियम और वर्जनाएँ

साधना देवी के किसी भी स्वरूप की पूजा की जाए, उसमें कुछ नियमों एवं वर्जनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है-

  1. पूजा-पाठ, साधना एवं उपासना के समय साज-शृंगार, शौक-मौज तथा कामुकता के विचारों से अलग रहना चाहिए।
  2. मंत्र जप प्रतिदिन नियमित संख्या में करना चाहिए। कभी ज्यादा या कभी कम मंत्र जप नहीं करना चाहिए।
  3. किसी भी पदार्थ का सेवन करने से पूर्व उसे अपने आराध्य देव को अर्पित करें। उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करें।
  4. मंत्र जप के समय शरीर के किसी भी अंग को नहीं हिलाएँ।
  5. दुर्गा की उपासना में मंत्र जप के लिए चंदन माला को श्रेष्ठ माना जाता है।
  6. माता लक्ष्मी की उपासना के लिए स्फटिक माला या कमलगट्टे की माला का उपयोग करना चाहिए।
  7. बैठने के लिए ऊन या कंबल के आसन का उपयोग करना चाहिए।
  8. काली की आराधना में काले रंग की वस्तुओं का विशेष महत्त्व होताहै। काले वस्त्र एवं काले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
  9. दुर्गा आराधना में अनेक पूजन वस्तुओं की आवश्यकता समय-समय पर होती है। उन्हें पूर्व में ही एकत्रित करके रख लेना चहिए।
  10. दुर्गा आराधना के समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
  11. आप किसी भी देवी की आराधना करते हों, पर नवरात्र व्रत अवश्य करना चाहिए।
  12. घर में शक्ति की तीन मूर्तियाँ वर्जित हैं, अर्थात् घर या पूजाघर में देवी की तीन मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिए।
  13. देवी के जिस स्वरूप की आराधना आप कर रहे हों, उनके स्वरूप का ध्यान मन-ही-मन करते रहना चाहिए।
  14. दुर्गा के पूजन के लिए पुष्प एवं पुष्पमाला, रोली, चंदन, नैवेद्य, फल, दूर्वा, तुलसीदल लेने चाहिए।
नवरात्र व्रत पूजन विधि

नवरात्र व्रत पूजन में किस दिन क्या चढ़ाएँ?

नवरात्र व्रत के दौरान देवी दुर्गा को हर दिन अलग-अलग वस्तुएँ चढ़ाने का विधान है-

  1. प्रतिपदा – आँवला आदि का सुगंधित तेल।
  2. द्वितीया – बाल बाँधने या गूँथने के काम आनेवाला रेशमी सूत या फीता।
  3. तृतीया – सिंदूर या दर्पण।
  4. चतुर्थी – गाय का दूध, दही, घी व शहद से बना द्रव्य, तिलक या आँख में आँजने वाली वस्तु ।
  5. पंचमी– चंदन एवं आभूषण।
  6. षष्ठी– पुष्प एवं पुष्पमाला।
  7. सप्तमी– ग्रहमध्य पूजा।
  8. अष्टमी-उपवासपूर्वक पूजन।
  9. नवमी-महापूजा और कुमारी पूजा।

नवरात्र व्रत पूजन विधि विधान

नवरात्र पर रखे जानेवाले व्रतों का विधान पवित्रता से जुड़ा होता है, इसलिए इन दिनों में अपने आचरण को पवित्र रखें। कोई भी ऐसा आचरण न करें, जो आपकी पवित्रता को भंग करता हो। अपने मन में किसी के प्रति वैर भाव न लाएँ और न ही किसी का मन दुखाएँ। नवरात्र व्रत रखनेवाले साधक को तामसी भोजन का त्याग करना चाहिए। मांसाहार, शराब, प्याज, लहसुन आदि इन दिनों में पूर्णतः वर्जित होता है। ये चीजें व्रत के विधान को नष्ट कर देती हैं। नवरात्र में फलाहार या दूध का सेवन सर्वोत्तम माना गया है। साधक कुटू या सिंघाड़े के आटे का भोजन भी कर सकता है। नवरात्र व्रत के दौरान केवल यही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

दुर्गा

भोजन में मसालों का सेवन भी वर्जित माना गया है। इन दिनों में आप जो भोजन करें, उसमें सिर्फ सेंधा नमक ही प्रयोग करें। भोजन जितना हल्का होगा, उतना ही यह आपके मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालेगा। व्रत करनेवाले दंपती को इन दिनों एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। यदि हो सके तो पति-पत्नी अलग-अलग शय्या बिछाएँ।

नवरात्र व्रत रहते समय ध्यान देने योग्य बातें

व्रत वाले दिन सुबह उठते ही माँ दुर्गा की आराधना करें। इन दिनों ‘दुर्गा सप्तशती’ या चंडी का पाठ सबसे उत्तम माना जाता है। पाठ स्वच्छ आसन पर बैठकर करना चाहिए। ‘सप्तशती’ के पाठ के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। नवरात्र व्रत के दिनों में नारियल का विशेष विधान है। व्रत शुरू करने से पूर्व एक छोटे घड़े या लोटे पर नारियल रख लें। यह मनोकामना का प्रतीक है। अष्टमी या नवमी पूजन के बाद इस नारियल का प्रसाद बाँटना चाहिए।

नवरात्र के दिनों में अष्टमी या नवमी का व्रत माँ दुर्गा के साधकों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इन दिनों व्रत का विधि-विधान से समापन कर कन्याओं को पूजना चाहिए। माँ दुर्गा के रूपों के अनुरूप नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए। कन्याओं के पूजन के बाद ही व्रत खोलने का विधान है। व्रत रखनेवाले साधकों को माँ दुर्गा की आराधना व विशेष पूजन भी करना चाहिए। माँ दुर्गा की प्रतिमा को पवित्र सिंहासन पर विराजमान करें तथा लाल पुष्पों, रोली, मौली, धूप, दीपक, नारियल आदि से माँ की अर्चना करें।

नवरात्र व्रत के दिनों में अनेक स्थानों पर ब्राह्मण द्वारा भी विशेष पूजा करने का विधान है। व्रत के दौरान प्रातः या सायंकाल को ब्राह्मण द्वारा पूजा करवाई जा सकती है। व्रत के दौरान माँ दुर्गा के रूपों की अलग-अलग पूजा का विधान है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पाँचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन माँ गौरी तथा नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की उपासना करनी चाहिए।

माता

माँ शक्ति के नौ रूपों की पूजा करने से व्रत का विधान न केवल पूर्ण माना जाता है, बल्कि साधक की हर प्रकार की मनोकामनाएँ भी पूरी होती हैं। नवरात्र का व्रत रखनेवाले साधकों को ‘दुर्गा सप्तशती’ के साथ-साथ ‘दुर्गा कवच’ का पाठ जरूर करना चाहिए। दुर्गा कवच का पाठ प्रातः या सायंकाल दोनों समय किया जा सकता है।

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