शिवरात्रि व्रत पूजन विधि क्या है? क्या न करें उस दिन?

शिवरात्रि का अर्थ वह रात्रि है, जिसका शिवतत्त्व के साथ घनिष्ठ संबंध है । भगवान् शिवजी की अतिप्रिय रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहा गया है। शिवार्चन एवं जागरण ही इस व्रत की विशेषता है। इसमें रात्रि भर जागरण एवं शिवाभिषेक का विधान है। श्री पार्वतीजी की जिज्ञासा पर भगवान् शिवजी ने बताया कि फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है। जो उस दिन उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्चन तथा पुष्पादि समर्पण से उतना नहीं प्रसन्न होता, जितना कि व्रतोपवास से।

दर्शन-पूजन करने पर वे तत्काल मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं। यह महाशिवरात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है। यह शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटानेवाली है एवं शिवलोक को देनेवाली है। शास्त्रोक्त विधि से, जो इसका जागरण सहित उपवास करेंगे, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। शिवरात्रि के समान पाप एवं भय को मिटानेवाला दूसरा व्रत नहीं है। इसके करने मात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है।

शिवरात्रि कब आती है?

शिवरात्रि फाल्गुन माह की चर्तुदशी के दिन आती है, यानी वर्ष का अंतिम मास फाल्गुन एवं अंतिम अँधेरी रात्रि चतुर्दशी। अब यह स्वयं जानने की बात है कि शिव संपूर्ण जगत् के काल स्वरूप हैं अर्थात् मृत्यु के देवता हैं। उनके द्वारा प्रलय होने पर ही संपूर्ण सृष्टि पुनः स्थापित होती है। इसी कारण उनका पर्व भी वर्ष के अंतिम मास व अंधकार की अंतिम रात को मनाया जाता है, यही शिव-लीला है।

शिवरात्रि

शिवरात्रि पूजन सामग्री

शुद्ध जल, गंगा जल, केसर, इत्र, चंदन, अक्षत (बिना टूटे हुए चावल), पुष्पहार, बिल्वपत्र, दूब, पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, चीनी मिले हुए) मौली (इसे कलावा व रंगीन धागा भी कहा जाता है, जिसे प्रायः पंडित आपके हाथ पर बाँधते हैं), यज्ञोपवीत, फल, मिठाई, अगरबत्ती, कपूर, कोरे पान (डंठल सहित), सुपारी, लौंग, इलायची, दक्षिणा, थाली, जलपात्र तथा अन्य पूजन सामग्री।

शिवरात्रि पूजा करने की विधि

  • प्रातःकाल निद्रा त्याग दें। अपना नित्य कर्म करके शिव मंदिर में पहुँचें। वहाँ विधिपूर्वक शिव पूजन करके नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि- “हे नीलकंठ! मैं चाहता हूँ कि आज शिवरात्रि का उपवास धारण करूँ। उसमें मेरी अभिलाषा को आप अतीव कृपा करके निर्विघ्न पूर्ण करो। काम, क्रोधादि, शत्रु मेरा कुछ बिगाड़ न कर सकें। मेरी भलीभाँति आप रक्षा करें।” यह बोलकर शिवजी के सामने प्रतिज्ञा संकल्प करें, उसके बाद रात होने पर सभी पूजन सामग्री अपने पास इकट्ठा करके उस शिव मंदिर में पहुँचें, जहाँ शिवलिंग शास्त्र सिद्ध हों, जिनकी प्राण- प्रतिष्ठा शास्त्रों द्वारा हो चुकी हो। वहाँ पहुँचकर शुद्ध स्थान पर सामग्री रखकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करके उत्तम आसन पर बैठकर शिव पूजन आरंभ करें। शिव भक्त रात्रि के चारों प्रहर में चार शिव पार्थिवलिंगों की रचना करके विधिपूर्वक वेद-मंत्रों के द्वारा पाँच वस्तुओंसे शिव पूजन करें। एक सौ आठ शिवमंत्र बोलकर जलधारा चढ़ाएँ।
  • जलधारा चढ़ाने से पहले शिव पर चढ़ाई वस्तुओं को नीचे उतारें। उसके बाद गुरु मंत्र अथवा शिवनाम मंत्र बोलकर काले तिलों से भगवान् शंकर को पूजकर भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम एवं ईशान इन आठ नामों को बोलते हुए कमल पुष्प तथा कनेर के फूल शिव पर चढ़ाएँ।
  • उसके बाद धूप, दीप, पके हुए उत्तम अन्न का नैवेद्य आदि निवेदन करें, फिर नमस्कार करें। ‘ॐ नमः शिवाय’ इस पंचाक्षर मंत्र का भी जप करें। जप हो जाने पर धेनुमुद्रा दिखाकर निर्मल जल द्वारा शिव तर्पण करें।
  • उसके बाद रात्रि समय में जितने ब्राह्मणों का संकल्प किया हो, उतने ब्राह्मण तथा यतिजनों को बुलाकर भक्तिपूर्वक उन्हें भोजन कराएँ, फिर शिव शंकर को नमस्कार करके हाथ में पुष्प लेकर नम्रता के साथ प्रार्थना करें- हे दयानिधान! मुझे आप अपनी भक्ति का वरदान दीजिए कि सर्वदा मैं आपकी भक्ति में तत्पर रहूँ।
महाशिवरात्रि

शिव साधना के नियम

शिव की साधना के नियम अत्यंत सरल हैं, साधक भय-रहित होकर, उन्हें अपना इष्ट मानते हुए ‘पारदेश्वर शिवलिंग’ की पूजा, अर्चना, ध्यान करें।

  1. शिव के पूजन में साधक ललाट पर लाल चंदन का त्रिपुंडू और बाँहों पर भस्म अवश्य लगाएँ।
  2. शिव साधना में संस्कारित, शोधित रुद्राक्ष माला से ही मंत्र जप करना आवश्यक है।
  3. शिव पूजा में श्वेत पुष्प, धतूरे का पुष्प तथा औंधा अर्थात् उल्टा (तीन पत्तियों से युक्त) बिल्वपत्र और दुग्ध मिश्रित जलधारा अर्पित करनी चाहिए।
  4. शिव की स्तुतियाँ अभिषेक तो हजारों हैं, लेकिन पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप अवश्य ही करना चाहिए।

शिवरात्रि में शिव पूजन की मुख्य बातें

किसी भी देव पूजन में मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध तो होना ही पड़ता है, यदि संभव हो और कठिनाई न हो तो पूजा करनेवाले को सिले हुए वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। आसन शुद्ध होना चाहिए। पूजा के समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए। संकल्प किया जाना चाहिए। शिवपूजन के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए –

  1. भस्म, त्रिपुंड्र और रुद्राक्ष माला, ये शिव पूजन के लिए विशेष सामग्री हैं, जो पूजक के शरीर पर होनी चाहिए।
  2. भगवान् शंकर की पूजा में तिल का प्रयोग नहीं होना चाहिए और चंपा का पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए।
  3. शिव की पूजा में दूर्वा, तुलसीदल चढ़ाया जाता है, इसमें संदेह नहीं किया जाना चाहिए। अवश्य ही तुलसी की मंजरियों से पूजा अधिक श्रेष्ठ मानी जाती है।
  4. शंकरजी के लिए विशेष पत्र और पुष्प में बिल्वपत्र-प्रधान है, किंतु बिल्वपत्र में चक्र और बज्र नहीं होना चाहिए। बिल्वपत्र में कीड़ों के द्वारा बनाया हुआ, जो सफेद चिह्न होता है, उसे चक्र कहते हैं और बिल्वपत्र के डंठल की ओर जो थोड़ा सा मोटा भाग होता है, वह बज्र कहलाता है।
  5. आक का फूल और धतूरे का फूल भी शिव पूजा की विशेष सामग्री है, किंतु सर्वश्रेष्ठ पुष्प है नील कमल का। इसके अभाव में कोई भी कमल का फूल होना चाहिए।
  6. कुमुदिनी पुष्प अथवा कमलिनी पुष्प का प्रयोग भी शिव पूजा में होता है।
  7. भगवान् शंकर के पूजन के समय करताल नहीं बजाया जाता।
  8. शिव की परिक्रमा संपूर्ण नहीं की जाती। जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस नाली का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। वहाँ से प्रदक्षिणा उलटी की जाती है।
  9. शिवजी की पूजा में कुटज, नागकेसर, बंधूक, मालती, चंपा, चमेली, कुंद, जूही, मौलसिरी, रक्तजवा, मल्लिका, केतकी, केवड़ा आदि पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।
  10. दो शंख, दो चक्रशिला (गोमती चक्र), दो शिवलिंग, दो गणेश मूर्ति, दो सूर्य प्रतिमा और तीन दुर्गाजी की प्रतिमाओं का पूजन एक बार में नहीं करना चाहिए। इससे दुःख की प्राप्ति होती है।
  11. भगवान् शंकर की आधी बार, विष्णु की चार बार, दुर्गाजी की एक बार, सूर्य की सात बार तथा गणेशजी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।
  12. शिवजी को भाँग का भोग अवश्य लगाना चाहिए। लोगों की यह धारणा कि शिवजी को लगाया गया भोग भक्षण नहीं करना चाहिए, गलत है। केवल शिवलिंग को स्पर्श कराया गया भोग नहीं लेना चाहिए।
शंकर

शिवरात्रि शिव पूजा साधना

साधक शिव साधना घर पर भी कर सकता है और मंदिर में त्रयोदशी को भी, जो प्रदोष कहलाती है, यह शिव प्रदोष व्रत है तथा प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी ‘मास शिवरात्रि’ कही जाती है। इन दिनों में शिव साधना प्रारंभ की जा सकती है, सोमवार भी शिव का दिन है। प्रातः स्नान कर अपने सामने दो ताम्र पात्र स्थापित करें। एक में शिव यंत्र तथा दूसरे में ‘स्वर्णग्रास युक्त पारदेश्वर शिवलिंग’ स्थापित करें।

शिवलिंगों में भी पारदेश्वर शिवलिंग सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जो कि पूर्ण सिद्ध संस्कारित हो। प्रातः शुद्ध वस्त्र धारण कर, सर्वप्रथम स्थान शुद्धि, आसन शुद्धि कर शिव का ध्यान करें, उसके पश्चात् आगे बताए गए शास्त्रोक्त पूजन विधान के अनुसार पूजन करें।

भगवान् शिव को करें प्रसन्न?

‘सत्यं शिवं सुंदरम्’ अर्थात् सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है। शिव से बड़ा कुछ भी दूजा नहीं है। सब शिव से ही उत्पन्न हैं और शिव में ही समाहित हैं। हर कल्याण शिव से ही सभंव है, शिव से अछूता कुछ भी नहीं है। शिव ही कर्ता हैं और शिव ही भर्ता हैं। भगवान् शिव की आराधना करके प्रत्येक मनोरथ पूरे किए जा सकते हैं। शिव की पूजा दो रूपों में की जाती है- एक साकार व दूसरा निराकार।

शिव भोले भंडारी हैं, जो चाहे सो माँग लो उनसे। शिव वे भगवान् हैं, जिनकी पूजा एक नहीं, अनेक मनोरथ पूर्ण करती है। भगवान् शिव को प्रसन्न करने और इच्छापूर्ति के लिए शिव पुराण की रुद्र संहिता के 14वें अध्याय में अन्न, फूल और जलधाराओं के महत्त्व को समझाया गया है।

  • जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान् शिव शंकर की पूजा करते हैं, उन्हें भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। सफेद अपामार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों से पूजा करने पर भी भोग और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग सुलभ होते हैं।
  • जो पुत्र की इच्छा रखता है, वह धतूरे के एक लाख फूलों से पूजा करे। यदि लाल डंठल वाले धतूरे से पूजन हो तो अति शुभ फलदायक होता है।
  • जो व्यक्ति चमेली से शिवजी की पूजा करते हैं, उन्हें वाहन सुख की प्राप्ति होती है।
  • जिन व्यक्तियों को पत्नी सुख प्राप्ति में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, उन्हें भगवान् शंकर का बेला के फूलों से पूजन करना चाहिए। भगवान् शिव की कृपा से शुभ लक्षणा पत्नी की प्राप्ति होती है।
  • जूही के फूलों से शिव शंकर का पूजन किया जाए, तो अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
  • हरसिंगार के फूलों से जो व्यक्ति शिव पूजन करे, उसको सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
  • जो व्यक्ति मूंग से पूजा करते हैं, उन्हें भगवान् शंकर सुख प्रदान करते हैं।
  • जो प्रियंगु (कॅगनी) द्वारा सर्व आराध्य परमात्मा भगवान् शिव शंकर का पूजन करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • तिलों के द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियाँ दिए जाने से बड़े- बड़े पापों का नाश होता है।
  • गेंहू से बने पकवान से भगवान् शंकर की पूजा उत्तम मानी गई है। इससे वंश की वृद्धि होती है।
  • शांति के लिए जलधारा शुभकारक कही गई है। शत रुद्रिय मंत्र से, रुद्री के 11 पाठों से, रुद्र मंत्रों के जप से, पुरुषसूक्त से, 6 ऋचाओं वाले रुद्र सूक्त से, महामृत्युंजय मंत्र से, गायत्री मंत्र से और शिव के शास्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणव और अंत में नाम पद जोड़कर बने मंत्रों के द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिए।
  • जब व्यक्ति का दुःख बढ़ जाए, घर में कलह रहने लगे, उस समय व्यक्ति को दूध की धारा शिवलिंग पर निरंतर चढ़ानी चाहिए।
  • शिवलिंग पर सहस्रनाम मंत्रों के साथ घी की धारा चढ़ाने से वंश की वृद्धि होती है।
  • सुगंधित तेल की धार शिवलिंग पर चढ़ाने से भोगों की वृद्धि होती है और शहद (मधु) से पूजा करने पर राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है।
  • शिवलिंग पर ईख के रस की धार चढ़ाई जाए, तो भी संपूर्ण आनंद की प्राप्ति होती है।
  • गंगाजल की धारा शिवलिंग पर चढ़ाना भोग-मोक्ष दोनों फलों को देनेवाला कहा गया है और जल की धारा भगवान् शिव शंकर को सर्वप्रिय है। जो भी जल आदि धाराएँ हैं, वे महामृत्युंजय मंत्र से चढ़ाई जानी चाहिए।
शिव शंकर

महाशिवरात्रि में क्या करें क्या न करें?

भगवान् शिव की पूजा करते समय निम्न बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना बहुत जरूरी है, अन्यथा पुण्य की जगह पाप लगता है और मनोरथ भी पूर्ण सिद्ध नहीं होते व पूजा करनेवाले व्यक्ति को दोष लगता है।

  • महाशिवरात्रि में क्या न करें – जो दोष न लगे
    • बासी पदार्थ, जैसे-जल, फूल, बेलपत्र, भाँग, धतूरा आदि को भोलेनाथ पर न चढ़ाएँ।
    • किसी भी पुष्प को चढ़ाते समय यह विशेष रूप से ध्यान रखें कि वह सूखा न हो, खंडित न हो व गंदे स्थान पर उगा हुआ न हो।
    • शंकर भगवान् पर कभी भी हल्दी, कुमकुम व सिंदूर का तिलक न लगाएँ।
    • भगवान् शिव की पूजा माता पार्वती के बिना न करें।
  • शिवरात्रि में क्या करें, जो पुण्य लगे
    • शिवजी की पूजा में गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य का प्रयोग जरूर करें।
    • गंगाजल व तुलसी पत्र भी भगवान् पर अवश्य चढ़ाएँ।
    • भोलेनाथ को ताजा चंदन घोटकर उससे तिलक लगाएँ।
    • भोलेनाथ का अभिषेक करते समय उन्हें गंगाजल, कच्चा दूध, दही, शहद, जल से स्नान कराएँ।
    • जितना हो उतना ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें।
    • शिव की पूजा माता पार्वती, उनके दोनों पुत्र – गणेश, कार्तिकेय व वाहन नंदी के साथ करने से वह अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। शिव परिवार इन सबके मिलने से ही पूर्ण होता है।

शिवरात्रि में प्रयोग होने वाले मंत्र व लाभ

भगवान् शिव प्रायः प्रत्येक मनोरथ को सिद्ध करनेवाले देवता हैं। यों तो ‘नमः शिवाय’ मंत्र के जाप से ही सारे विघ्न दूर होकर सुख, सफलता, शांति मिल जाती है, परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ विशेष मंत्र व पूजा लाभकारी होती है, जिनकी जानकारी निम्नलिखित है-

  • धन प्राप्ति व दरिद्रता दूर करने के लिए– इस कार्य की सिद्धि सफलता हेतु भगवान् शिव पर कच्चे दूध में काले तिल मिलाकर चढ़ाएँ और ‘इमा रुद्राय’ मंत्र का जाप करें। 11 बार ‘ॐ हौ जूं सः पालय पालय सः जूं हौ’ का मंत्र जपें व साथ ही 11 कमलगट्टे चढ़ाएँ।
  • बाधा दूर करने के लिए– किसी भी तरह की विघ्न-बाधा दूर करने के लिए गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान् शिव को स्नान कराएँ व सवा लाख बार निम्न मंत्र का जाप करें। ‘ॐ हौं जूं सः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगधिं पुष्टिवर्धनम। ऊर्ध्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।’
  • व्यापार या नौकरी में उन्नति व लाभ प्राप्ति हेतु– अगर व्यापार या नौकरी में आपकी पूरी मेहनत के बावजूद सफलता प्राप्त नहीं हो रही हो, बल्कि लाभ के स्थान पर हानि ही मिल रही हो तो गाय के शुद्ध देसी घी से भगवान् शिव को स्नान कराएँ और गाय के दूध में शहद मिलाकर शिवजी को भोग लगाएँ और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
  • उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु– उत्तम, स्वस्थ, दीर्घायु, बुद्धिमान संतान की प्राप्ति हेतु पीपल की लकड़ी से भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए हवन करें व निम्न मंत्र का जाप करें- ‘परिणो रुद्रस्य’
  • सौंदर्य व वैभव प्राप्ति हेतु– अगर सौंदर्य व वैभव प्राप्त करना चाहते हैं तो भगवान् भोलेनाथ को 11 बार जल व कच्चे दूध को मिलाकर स्नान कराएँ। गुलाब के 11 फूल चढ़ाएँ, चंदन का तिलक लगाएँ व ‘ॐ नमो भगवते रुद्राय’ मंत्र का जाप करें। इस विधि व मंत्र के साथ भगवान् शिव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्तित्व की आभा बढ़ती है व रूप, गुण, सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
  • रोग व कष्ट निवारण हेतु– मृत्युतुल्य रोगकारक कष्टों को दूर करने के लिए व रोगों से उत्पन्न शारीरिक कष्टों के निवारण हेतु महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से आशा से ज्यादा कष्टों का निवारण होता है। वैसे तो सभी दिन जाप करने से लाभ मिलता है, परंतु अगर महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंत्र का जाप किया जाए तो उसके परिणाम निराले व अत्यंत लाभकारी होते हैं। चूँकि ये एक पूर्ण सिद्ध मंत्र है, अतः इसका प्रभाव भी अचूक होता है।

इसके साथ-साथ भगवान् शिव की प्रसन्नता उन सभी को मिलती है, जो कि सदैव-

  • भगवान् गणेश व माता पार्वती का ध्यान करते हैं।
  • गाय की सेवा करते हैं। बिजार को लोई खिलाते हैं।
  • कोढ़ियों व अपाहिजों की सेवा करते हैं। उनको भोजन कराते हैं।
  • चंद्रमा की पूजा करते हैं, उन्हें मीठे जल से अर्घ्य देते हैं।
  • भगवान् राम, हनुमान, भैरवजी की पूजा सच्चे मन से करते हैं।

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