व्रत एक साधना पथ है, इस पथ में कई प्रकार की बाधाएँ आती हैं, जैसे-अगर आप किसी व्रत का आरंभ करते हैं तो उस दिन आपको भूख-प्यास ज्यादा लगती है। किसी-न-किसी व्यक्ति से लड़ाई-झगड़ा हो जाता है, कभी आपका व्रत खंडित हो जाता है तो कभी कोई गलती हो जाती है। यह सब व्रत से संबंधित देवता करते हैं; क्योंकि व्रत एक साधना है और साधना में कोई-न-कोई विघ्न बाधाएँ तो आती ही हैं। परंतु धीरे-धीरे व्रत के द्वारा समस्त प्रकार के पाप, कष्ट आदि नष्ट हो जाते हैं, व्रत सार्थक एवं हितकारी हो जाता है।
व्रत करने की विधि
व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर अपने दैनिक कार्य शौच आदि से निवृत्त होकर सर्वप्रथम जिस देवता का व्रत हो, उस देवता की कथा या नमस्कार करके व्रत का आरंभ करना चाहिए। व्रत के दिन अन्न का त्याग किया जाता है। व्रत वाले दिन सायं को पूजा-पाठ आदि करके एक ही समय भोजन करना चाहिए। भोजन शुद्ध व सात्त्विक होना चाहिए, भोजन में नमक-मिर्च और मसाला नहीं होना चाहिए।
देशी घी, बूरा, चीनी आदि के साथ भोजन किया जा सकता है। भोजन त्यागने का नाम व्रत नहीं होता। व्रत के दिन असत्य भाषण, चोरी, अपवित्रता, हिंसा, मैथुन, जुआ, दिन में सोना, बार-बार फल आदि खाना, अधिक बोलना आदि का त्याग करना होता है। इस दिन अपने आपको भगवान् के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। मन में किसी प्रकार की कोई सांसारिक चिंता नहीं होनी चाहिए।


व्रत करने से सांसारिक और पारलौकिक अर्थात् दोनों लोकों का फल प्राप्त होता है। अगर हम सांसारिक दृष्टि से विचार करें तो सात दिनों में से केवल एक दिन भोजन न करें तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, चंचल मन की गति पर अंकुश लगता है। पारमार्थिक दृष्टि से आत्म-कल्याण की प्राप्ति होती है।
देवता के व्रत
जिस देवता से संबंधित व्रत करते हैं, वह देवता अपने से संबंधित वस्तुओं की प्राप्ति कराता है। अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि व्रत तो करना चाहिए, परंतु किस देवता का व्रत करना चाहिए, जिससे लाभ प्राप्त हो? कुछ लोग सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं तो कुछ लोग दैवी शक्ति के लिए व्रत करते हैं।
व्रत कई प्रकार के होते हैं। जीवन में व्रतों का बहुत महत्त्व है। भीष्म पितामह ने जीवन भर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया था, तो राजा हरिश्चंद्र ने झूठ न बोलने का व्रत लिया हुआ था। इसी प्रकार हमें भी व्रत करने चाहिए। व्रत का अर्थ एक दिन भूखा रहना नहीं होता। व्रत का अर्थ जीवन भर प्रतिज्ञा का पालन करना होता है। शास्त्रों के अनुसार तो व्रतों की समाप्ति का समय निश्चित किया हुआ है, परंतु जिस भी देवता का व्रत करना हो तो उसका व्रत तब तक करना चाहिए, जब तक संबंधित वस्तु की प्राप्ति न हो जाए।
- विष्णु भगवान् का व्रत
- शिवजी का व्रत
- हनुमानजी का व्रत
- गणेशजी व माँ दुर्गा का व्रत
- संतोषी व लक्ष्मी का व्रत
- काली व भैरव का व्रत
- सूर्य भगवान् का व्रत
विष्णु भगवान् का व्रत
विष्णु देव का व्रत गुरुवार के दिन होता है। इस व्रत में पीले रंग के कपड़े व पीले भोजन का विधान है। इस दिन हजामत, सिर के बाल व घर को नहीं धोना चाहिए। इस व्रत की शुरुआत भगवान् बृहस्पति की कथा पढ़कर ही करनी चाहिए। इस व्रत के करने से पुत्र की प्राप्ति होती है, घर में धन-संपत्ति की वर्षा होती है। कन्या के विवाह में हो रहा विलंब दूर होता है, निर्बल मस्तिष्क को बल मिलता है।

शिवजी का व्रत
शिवजी का व्रत सोमवार के दिन होता है। इस व्रत के करने से मन को शांति प्राप्त होती है, आँखों के रोग समाप्त होते हैं, स्वास्थ्य में वृद्धि होती है, मान-सम्मान प्राप्त होता है, विद्या बढ़ती है। इस व्रत के करने से लड़कियों को उत्तम पति की प्राप्ति होती है।
हनुमानजी का व्रत
हनुमानजी का दिन मंगलवार होता है। इस व्रत के नियम बहुत कठिन होते हैं। इस व्रत में विशेष रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। इस व्रत को करने से जातक का क्रोध शांत होता है, जातक बलवान बनता है, उसकी मंत्रणा शक्ति में वृद्धि होती है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है, उसके पुरुषार्थ में वृद्धि होती है। अगर कोई लड़का हनुमानजी का व्रत करता है तो उस पर हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उस पर विशेष कृपा करते हैं।
गणेशजी व माँ दुर्गा का व्रत
बुधवार का व्रत उपरोक्त दोनों देवताओं का होता है। इस व्रत के करने से व्यापार में वृद्धि होती है, यज्ञीय कार्यों में भी वृद्धि होती है, बुद्धि तेज हो जाती है। इस व्रत के साथ ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ भी करना चाहिए। सप्तशती पाठ के बिना यह व्रत अधूरा होता है। इस व्रत के करने से अल्पायु और गुर्दे की बीमारी भी ठीक हो जाती है।

संतोषी व लक्ष्मी का व्रत
शुक्रवार के दिन इन दोनों का व्रत होता है। इस व्रत के करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है, व्यक्ति के भोग-विलास के साधनों में वृद्धि होती है, घर में कलह समाप्त होती है। इस व्रत के द्वारा गुप्त रोगों का नाश भी होता है।
काली व भैरव का व्रत
इन दोनों देवताओं का दिन शनिवार होता है। इस व्रत के करने से विद्या में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, कोई दीर्घ रोग हो तो वह भी समाप्त हो जाता है, इस व्रत से धन व मान-सम्मान में वृद्धि होती है, टाँगों के रोग दूर होते हैं, जमीन की प्राप्ति होती है तथा रुका हुआ धन प्राप्त होता है।

सूर्य भगवान् का व्रत
रविवार का व्रत सूर्य देवता का होता है। इस व्रत के करने से व्यक्ति की आयु और बल में वृद्धि होती है, नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। एक लोटा जल सूर्य देव को अर्पण करने से जातक तेजस्वी होता है। सरकारी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है, धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। उसकी हड्डियाँ मजबूत होती हैं।