कुंडली के अनुसार किस दिन कौन सा व्रत करें?

आत्मा को दुर्गुणों और अनेक प्रकार के दोषों से बचाना व गुणों का शरीर में वास अर्थात् निवास, उपवास होता है। उपवास को ही व्रत कहा जाता है, जैसे-शराब आदि नशीली चीजों का सेवन करने से मनुष्य का शरीर उसके वश से बाहर हो जाता है, यानी वह नशे का गुलाम हो जाता है, उसी प्रकार अन्न में भी नशा होता है।

पेट भर खाना खाने के बाद शरीर में आलस्य का अनुभव होना और पुरानी कहावत – रोटियाँ लगना, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि अन्न में नशा होता है। अन्न में एक प्रकार की शक्ति होती है, जो शरीर में पहुँचते ही दुगुनी हो जाती है। हमारे शास्त्रों ने इस शक्ति को आधिभौतिक शक्ति कहा है। इस शक्ति के द्वारा ही व्यक्ति का मन चंचल और बलवान होता है, जो अध्यात्म मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है।

शास्त्रों में कहा है- ‘विषया विनिवर्त्तन्ते निराहारस्य देहिन’ के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है, अर्थात् खाना खाने के बाद हमारी भोग-विलास की इच्छा बलवती हो जाती है, पेट में अन्न आने के बाद ही गाना सुनना, घूमना, हँसी-दिल्लगी आदि के खयाल हमारे जहन में आते रहते हैं, हमारा मन इधर-उधर की उड़ान भरता रहता है,

जबकि अगर किसी व्यक्ति को अन्न न दिया जाए, उसे भूखा रखा जाए तो उसके शरीर में शांति का वास हो जाता है, अर्थात् भूखे व्यक्ति की विषयों से रुचि हट जाती है। इसलिए शरीर को आध्यात्मिक बनाने व शरीर में गुणों का विकास करने और धर्म-पालन, मन को वश में करने के लिए उपवास किया जाता है, अर्थात् व्रत किया जाता है।

व्रत के दिन सायंकाल में एक ही समय भोजन किया जाता है, जो कि बहुत थोड़ी मात्रा में होता है। प्रातःकाल में दूध व फल आदि लिये जा सकते हैं।

रविवार व्रत-

रविवार का व्रत सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की हड्डी मजबूत होती है, क्योंकि सूर्य हड्डियों का कारक होता है, व्यक्ति के पेट से संबंधित सभी रोगों का विनाश होता है, नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। रविवार के व्रत के साथ-साथ एक लोटा स्वच्छ जल को देते समय गायत्री मंत्र के साथ कहना चाहिए कि-

तेज रूप रस धाम, तुम किरणमाल अभिराम। तमहरी भगवान् रवि तुमको नित्य प्रणाम।

ऐसा करने से व्यक्ति सूर्य की तरह चमकने लग जाता है, अगर व्यक्ति राजनीति क्षेत्र में है तो वह किसी विभाग का मंत्री बनता है, सरकारी नौकरी में है तो उच्च पद प्राप्त करता है, व्यवसाय में है तो लाभ होने के साथ-साथ उसका व्यवसाय चमकने लग जाता है।

अगर आप रविवार का व्रत करते हों, परंतु आपकी कुंडली में सूर्य नीच राशि, शत्रु राशि या कोई अन्य बुरा योग बना रहा हो तो ऐसे में आपको रविवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि रविवार के व्रत से सूर्य को बल मिलेगा, जिसके कारण आपकी कुंडली में बुरे योग, जो कि सूर्य के द्वारा बने हैं, को बल मिलेगा और आपके जीवन में हानि होगी।

अगर आपकी कुंडली में सूर्य छठे भाव का स्वामी होकर अष्टम भाव में विद्यमान हो और उस पर राहु, शनि आदि पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसे में रविवार के व्रत करने से आपको असाध्य बीमारियों से ग्रस्त होना पड़ सकता है।

यदि सूर्य द्वादश या द्वितीय भाव में शत्रु राशि का होकर स्थित हो तो ऐसे में भी रविवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि सूर्य आँखों का प्रतिनिधित्व करता है, अतः आँखों से संबंधित रोग देगा।

सोमवार व्रत

सोमवार का व्रत चंद्रमा को प्रभावित करता है, जिससे व्यक्ति को मिरगी, दमा, फेफड़ों आदि के रोगों से मुक्ति मिलती है। व्यक्ति की चंचलता दूर होती है, अगर कोई व्यक्ति शराब आदि नशीली चीजों का सेवन करता हो तो इस व्रत के करने से नशीली चीजों से मुक्ति पा जाता है। सोमवार का व्रत भगवान् शिव को भी अतिप्रिय है, इसलिए सोमवार के व्रत करनेवाले स्त्री-पुरुषों पर शिवजी की विशेष कृपा होती है। कुँवारी लड़कियाँ अगर 15 सोमवार के व्रत करें तो उन्हें मन के मुताबिक पति की प्राप्ति होती है।

सोमवार व्रत का देवता चंद्रमा होता है। यदि चंद्रमा तीसरे, छठे व आठवें भाव का स्वामी हो और चतुर्थ भाव व चतुर्थ भाव पर राहु, शनि आदि का पाप प्रभाव हो तो सोमवार का व्रत करने से व्यक्ति पागल तक हो सकता है।

चंद्रमा मन का कारक होता है। यदि चंद्रमा छठे भाव का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में स्थित हो तो सोमवार का व्रत नहीं करना चाहिए; क्योंकि सोमवार का व्रत करने से व्यक्ति को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। चंद्रमा यदि छठे भाव में स्थित हो तो भी सोमवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि चंद्रमा चोरी, सरकारी क्षेत्रों में लाभ की जगह हानि पहुँचाएगा।

मंगलवार व्रत

अगर किसी व्यक्ति का हिंसात्मक स्वभाव हो, ज्यादा गुस्सा आता हो तो वह मंगलवार का व्रत करे, इससे उसका मन शांत हो जाएगा। मंगलवार के व्रत से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। इस व्रत के करने से कोई भी ऊपरी भूत-प्रेत, आत्माएँ आदि बाधाएँ दूर हो जाती हैं, उसके सारे संकट कट जाते हैं। अगर कोई अविवाहित लड़का मंगलवार के व्रत करता है तो वह बुद्धिमान और बलवान हो जाता है।

कुछ लोगों का मानना है कि मंगलवार का व्रत स्त्रियों को नहीं करना चाहिए, यह बात पूरी तरह बेबुनियाद है, ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा। अगर लिखा है तो वह गलत है; क्योंकि हनुमानजी के हृदय में भी सीताजी प्रभु राम के साथ दिखाई गई थीं। मंगलवार का व्रत सभी व्रतों से मुश्किल होता है, क्योंकि हनुमानजी ब्रह्मचर्य है। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

वृष लग्न हो और मंगल की दृष्टि बुध और शुक्र पर पड़ती हो तो मंगलवार के व्रत करने से व्यक्ति की स्त्री की मृत्यु हो जाती है। कुंभ लग्न वालों को मंगलवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि कुंभ लग्नवालों के लिए शनि और मंगल यदि किसी भाव अथवा उसके स्वामी पर एक साथ दृष्टि डालते हैं तो व्यक्ति उस भाव से संबंधित वस्तुओं का नाश करता है, जैसे-यदि कुंभ लग्नवालों का मंगल और शनि पंचम भाव और पंचमेश पर दृष्टि डालें तो व्यक्ति की संतान उसे पीड़ा देती है, यदि दूसरा व दूसरे भाव के स्वामी पर दृष्टि डालें तो व्यक्ति जानबूझकर अपने धन का नाश करता है, सातवें भाव व भाव के स्वामी पर दृष्टि डालें तो व्यक्ति अपनी पत्नी का शत्रु हो जाता है।

इसी प्रकार मिथुन लग्नवालों को भी मंगलवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब मंगल दो बुरे भावों का स्वामी हो जाता है। यदि मंगल चंद्रमा और लग्न पर अपना प्रभाव डाल रहा हो और व्यक्ति मंगलवार का व्रत शुरू कर दे तो व्यक्ति क्रूर कर्म करनेवाला और हिंसाप्रिय हो जाता है।

बुधवार व्रत

बुधवार का व्रत भगवान् गणेश व दुर्गा को प्रिय होता है। भगवान् गणेश बुद्धि के दाता है, इस व्रत से बुद्धि का विकास होता है, दिमाग तेज चलता है, व्यवसाय में वृद्धि होती है और सफलता मिलती है। अल्पायु और गुर्दे के रोगों आदि में शांति प्राप्ति होती है। इस व्रत के साथ अगर दुर्गाजी की पूजा तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।

मेष लग्नवालों को बुधवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब बुध दो अशुभ भावों का स्वामी हो जाता है। इस लग्नवालों का बुध जिस भी स्थान पर बैठेगा, उस स्थान को रोगयुक्त कर देगा, जैसे – यदि बुध लग्न में हो तो सिर, शरीर आदि में दर्द रहने लगेगा आदि।

गुरुवार व्रत

गुरु एक शुभ ग्रह है, इस व्रत का प्रतिनिधित्व स्वयं भगवान् विष्णु करते हैं। इस व्रत का प्रारंभ सूर्य निकलने से पहले ही भगवान् बृहस्पति देव की कथा पढ़कर किया जाता है। इस व्रत में पीले कपड़े पहनने व पीला भोजन ही करना चाहिए। बृहस्पतिवार के व्रत से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है, निस्संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है, घर में सुख-शांति आती है। कन्या के विवाह में आ रही परेशानियाँ स्वतः नष्ट हो जाती हैं। इस व्रत के करने से पिता की आयु लंबी होती है, व्यक्ति राज्य में सम्मानित होता है।

गुरु यदि सप्तम भाव में नीच राशि का हो तो गुरुवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस व्रत को करने से व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हो सकती है या फिर उसका वियोग सहन करना पड़ सकता है। पंचम भाव में गुरु नीच राशि का हो और व्यक्ति गुरुवार का व्रत करना शुरू कर दे तो उसके पुत्र की अकाल मृत्यु हो सकती है, अतः इन स्थितियों में गुरुवार का व्रत नहीं करना चाहिए।

शुक्रवार व्रत

शुक्रवार के व्रत से शुक्र को बल मिलता है व संतोषी माँ प्रसन्न होती है। शुक्रवार के व्रत करने से व्यक्ति सौंदर्यवान हो जाता है, गुप्त रोगों का दमन होता है, भोग-विलास की वस्तु में वृद्धि होती है, सौंदर्य वस्तुओं के व्यापार में व्यक्ति बहुत तरक्की करता है।

शुक्र यदि कुंडली में छठे या आठवें भाव में हो और शुक्रवार का व्रत व्यक्ति शुरू कर दे तो उस व्यक्ति को मूत्रंद्रिय रोग हो जाते हैं, उसकी आँखों की ज्योति धीरे-धीरे कम होने लग जाती है या उसकी आँखों में रोग हो जाते हैं।

शनिवार व्रत –

शनिवार के व्रत करने से जमीन-जायदाद में वृद्धि होती है, खोया हुआ धन प्राप्त होता है। विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं। पेट के दर्द व टाँगों के रोगों का नाश होता है। बहुत पुराने रोग स्वतः दूर हो जाते हैं। शनिवार के व्रत से शनि भगवान् प्रसन्न होकर व्यक्ति को धन और मान-सम्मान को आकाश की ऊँचाइयों तक पहुँचा देते हैं।

यदि शनि दूसरे भाव में हो तो शनिवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शनिवार के व्रत से व्यक्ति का जमा किया हुआ धन नष्ट हो जाता है। यदि शनि चतुर्थ भाव में हो तो भी शनिवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शनि माता-पिता को हानि पहुँचाएगा।

यदि शनि किसी भी भाव में नीच राशि में स्थित हो तो भी उस व्यक्ति को शनिवार का व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शनि जिस भी स्थान में बैठेगा, उस स्थान से संबंधित हानि और रोग देता है, जैसे-चतुर्थ भाव में हो तो भूमि और घर से वंचित कर देगा, छठे भाव में हो तो रोग, मुकदमेबाजी में धन का नाश करवाएगा, मित्रों में विरोध पैदा कर देगा, सप्तम में हो तो पत्नी को पीड़ा, मानसिक परेशानियाँ पैदा करेगा आदि।

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