जन्माष्टमी व्रत महत्व विधि क्या करें क्या ना करें?

जन्माष्टमी व्रत – जन्माष्टमी का पर्व हिंदुओं में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भले ही इस पर्व को मनाने के तरीके हर संप्रदाय में थोड़े-थोड़े भिन्न हैं, पर भाव बिल्कुल एक ही है कि अपने बालरूप प्रभु का अंतर्मन से खूब लाड़ लड़ाना और आनंदित होना। बड़े मंदिरों में और जिनके घरों में भी ठाकुरजी की विधिवत् सेवा होती है, वहाँ पाँच-छह दिन पहले से ही तैयारियाँ प्रारंभ हो जाती हैं।

जन्माष्टमी व्रत महत्व

जन्माष्टमी व्रत वाले दिन प्रभु एक बालक रूप में माने जाते हैं, इसलिए जैसे आप लौकिक जगत् में अपने बच्चे के लिए सबके आशीर्वाद की कामना करते हैं, उसी प्रकार जन्माष्टमी व्रत वाले दिन ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को आप दर्शन के लिए अपने घर निमत्रण दें, ताकि आपके बालस्वरूप कृष्ण को अधिक-से-अधिक गोप-गोपियों का आशीर्वाद मिल सके और वही आशीर्वाद प्रभु आप पर बरसाते हैं।

जन्माष्टमी व्रत

जिन्हें निमंत्रण मिला हो, वे भी अवश्य जाएँ, ताकि आशीर्वाद के बदले में प्रभु- कृपा का फल पाएँ। इसलिए जन्माष्टमी और नंद उत्सव दोनों एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। हिंदुओं के लिए भगवान् कृष्ण जन्म उत्सवों में सर्वोच्च है। बहुत से भक्त, जो प्रथम बार अपने घर में लड्डू गोपाल की सेवा प्रारंभ करते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के दिन को विशेष मानकर उसी दिन शुरू करते हैं और उस भक्त के ठाकुरजी का वह दिन पाटोत्सव कहा जाता है।

कैसे रखें जन्माष्टमी व्रत?

कहते हैं-कोई भी व्रत करने के लिए मन में श्रद्धा होना परम आवश्यक है। मन के आंतरिक भाव से किया गया व्रत सीधा भगवान् तक पहुँचता है। परंतु शास्त्रों के अनुसार विधिपूर्वक किया गया व्रत ही अधिक फलता है। इसलिए जानें, कैसे करें जन्माष्टमी व्रत पौराणिक काल से ही व्रत करने की रीत भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है।

कहते हैं 5000 वर्ष पूर्व जब भक्तगण ईश्वर को ही अपनी आत्मा और प्राणों की शक्ति मानते थे, उस समय उन्होंने व्रत करना आरंभ किया और तब से लेकर आज तक व्रत का चलन हमें ईश्वर की अनुभूति कराता चला आ रहा है। ऐसा माना जाता है, जो भी व्यक्ति व्रत करता है, वह ईश्वर के सीधे संपर्क में आ जाता है और उसका हृदय निर्मल भावों से परिपूर्ण हो जाता है, फिर उसके मन में ईश्वर के अलावा कोई भी अन्य चीज नहीं रहती, वह पवित्र हो जाता है, व्रत करने से उसे गंगा में स्नान से मिली पवित्रता मिल जाती है और वह अनुभव करता है, ईश्वर के प्रताप को, जो उसे बुद्धि एवं शक्ति देता है।

कृष्ण

यों तो हमारी भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं में हर ईश्वर (भगवान्) विशेष के लिए एक व्रत का विधान है और हर व्रत का अपना ही एक महत्त्व है एवं हर व्रत से ही पुण्य एवं आशीर्वाद मिलता है, परंतु फिर भी एक ऐसा व्रत है, जिसे लगभग पूरा भारत ही बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाता है, वह है- ‘श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत’।

जन्माष्टमी व्रत विधि

  • विधि-जिस भी व्यक्ति को जन्माष्टमी व्रत रखना हो, उसे प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर यानी प्रातःकाल 4:00 से 5:30 बजे के बीच उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर यह संकल्प करना चाहिए।
  • चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते एवं नारियल स्थापित करें एवं कलश पर स्वस्तिक का चित्र भी बनाएँ। इन आम के पत्तों से वातावरण शुद्ध एवं नारियल से व्रत पूर्ण होता है। पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें।
  • एक थाली में कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प (सफेद या पीले), तुलसीदल या पत्र, मौली या कलावा रख लें।प्रसाद में खोए या मावा का पेठा, माखन-मिश्री, ऋतु फल ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्वलित करें। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण के माता-पिता वसुदेव-देवकी एवं नंद-यशोदा की पूजा-अर्चना करें।
  • इसके पश्चात् अपनी दिनचर्या के सभी कार्य पूर्ण कर लें और रात्रि में होने वाली जन्माष्टमी पूजा के लिए तैयारी करें। दिन में व्रती केवल फल एवं दूध का ही सेवन कर सकते हैं।
  • रात्रि को 8:00 बजे पूजा पुनः प्रारंभ करें और एक खीरे को काटकर उसमें श्रीकृष्ण का विग्रह रूप स्थापित करें। इससे तात्पर्य है कि श्रीकृष्ण अभी माँ के गर्भ में हैं। करीब 10:00 बजे मूर्ति या विग्रह अर्थात् लड्डू गोपाल को खीरे से अलग कर दें और पंचामृत से उनका अभिषेक करें।
  • पंचामृत में विद्यमान दूध से वंशवृद्धि, दही से स्वास्थ्य, घी से समृद्धि, शहद (मधु) से मधुरता, बूरा से परोपकार की भावना एवं गंगाजल से भक्ति प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण को पंचामृत का अभिषेक शंख (सफेद या चाँदी से मढ़े) से करने से 100 गुणा फल प्राप्त होता है और यह फल सात पीढ़ियों तक को प्राप्त होता है।
  • रात्रि 12:00 बजे श्रीकृष्ण का इस धरती पर प्राकट्य हुआ था। इस समय श्रीकृष्ण का निराजन 11, 21 या 101 बत्तियों के दीपक से करना चाहिए।
  • अगले दिन नवमी को नंदोत्सव में कढ़ी-चावल से व्रत की पारणा करें और तुलसी की पूजा एवं उसका वितरण करें। सात बच्चों या बड़ों को खिलाकर ही खाएँ।

इस प्रकार व्रत अर्चन करने से व्रती की सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं और निःसंतान दंपती को संतान प्राप्त होती है।

जन्माष्टमी

जन्माष्टमी व्रत के समय क्या करें? क्या ना करें?

  • क्या करें –
    • व्रती को पीले वस्त्र धारण करने चाहिए या पीले फूल अपने पास रखने चाहिए।
    • चंदन का तिलक लगाना चाहिए।
    • उत्सव का वातावरण बनाए रखना चाहिए।
    • बड़ों का सम्मान एवं आदर करें।
    • भव्य एवं सुंदर झाकियाँ बनाएँ।
    • मंदिर अवश्य जाएँ।
    • बच्चों को वीरता और उत्साह की कथाएँ सुनाएँ एवं उन्हें अपने वंश, परिवार के विषय में जानकारी दें।
  • क्या न करें?
    • व्रती को सोना नहीं चाहिए।
    • क्रोध नहीं करना चाहिए।
    • यात्रा प्रारंभ न करें।
    • किसी का अपमान न करें।
    • किसी का मन न दुःखाएँ।
    • किसी को भी छोटा न समझें।
    • आपस में मतभेद न करें।
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