गणेश चतुर्थी व्रत पूजन विधि

गणेश चतुर्थी व्रत – वैसे तो साल भर में पड़नेवाली किसी भी चतुर्थी को गणपतिजी का पूजन और उपासना करने से घर में संपन्नता, समृद्धि, सौभाग्य और धन का समावेश होता है। मगर शास्त्रों में भादों माह की चतुर्थी का विशेष महत्त्व बताया गया है; क्योंकि इसी दिन भगवान् गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी व्रत के अवसर पर लोग अपने घर गणेशजी की प्रतिमा को स्थापित कर उनका पूजन आरंभ करते हैं। यह पूजन व पर्व 10 दिनों तक चलता है और अंतिम 10वें दिन अनंत चतुर्दशी के दिन इन मूर्तियों का विसर्जन होता है।

यों तो समूचे भारत में गणेशोत्सव अर्थात् गणेशजी के जन्मदिवस को अति उत्साह व हर्षोल्लास से मनाया जाता है, परंतु महाराष्ट्र के गणेश उत्सव की अलग ही छटा उभरकर आती है। पूरा महाराष्ट्र गणेशजी की प्रतिमा सहित रंग-बिरंगी टोलियाँ लिये, इस उत्सव को बड़े धूमधाम से मनाता है।

गणेश चतुर्थी व्रत एवं पूजन विधि

गणेश चतुर्थी व्रत के दिन ब्रह्ममूहर्त में उठकर स्नान आदि से शुद्ध होकर शुद्ध कपड़े पहनें। आज के दिन लाल रंग के वस्त्र पहनना अति शुभ होता है। गणपति का पूजन शुद्ध आसन पर बैठकर अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ करके करें। गणेश चतुर्थी व्रत के मौके पर भगवान् गणपति की प्रतिमा को घर लाकर हम पूजा की शुरुआत करते हैं। इस दिन भगवान् गणेश की प्रतिमा को घर लाना सबसे पवित्र समझा जाता है।

जो श्रद्धालु गणेशजी की मूर्ति को चतुर्थी से पहले अपने घर ला रहे हैं, उन्हें मूर्ति को एक कपड़े से ढककर लाना चाहिए और पूजा के दिन मूर्ति स्थापना के समय ही इसे हटाना चाहिए। घर में मूर्ति के प्रवेश से पहले इस पर अक्षत जरूर डालना चाहिए। स्थापना के समय भी अक्षत को आसन के निकट डालना चाहिए। साथ ही सुपारी, हल्दी, कुमकुम और दक्षिणा भी वहाँ रखनी चाहिए।

गणेश चतुर्थी व्रत

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

गणपति की मूर्ति को घर में स्थापित करने के समय सभी विधि-विधान के अलावा जिन सामग्री की जरूरत होती है, वे इस प्रकार हैं। जैसे-लाल फूल, दूर्वा, मोदक, नारियल, सुपारी, पान, लाल चंदन, धूप, अगरबत्ती और आरती की थाली।

गणेश चतुर्थी व्रत कैसे करें पूजन?

  • गणपति मूर्ति की पूजा करने के लिए सबसे पहले आरती की थाली में अगरबत्ती-धूप को जलाएँ। इसके बाद पान के पत्ते और सुपारी को भी इसमें रखें। इस दौरान मंत्र ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जाप करें तथा एकाग्रचित्त से सर्वानंद प्रदाता सिद्धिविनायक का ध्यान करें।
  • पंचामृत से श्री गणेश को स्नान कराएँ, तत्पश्चात् केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती करें। उनको मोदक के लड्डू अर्पित करें। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। श्री गणेशजी का श्री स्वरूप ईशान कोण में स्थापित करें और उनका श्रीमुख पश्चिम की ओर रहे।
  • संध्या के समय गणेश चतुर्थी व्रत की कथा, गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशक गणेशस्तोत्र का पाठ करें।
  • अंत में गणेश मंत्र ‘ॐ गणेशाय नमः’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का अपनी श्रद्धा के अनुसार जाप करें। यदि कोई पुजारी इसे अंजाम दे रहे हों तो दक्षिणा भी अर्पित करें। गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए। पूजन के पश्चात् नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए।
  • नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है, जहाँ तक संभव हो, इस दिन (भाद्रपद चतुर्थी को) चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इस तिथि की रात्रि में चंद्र दर्शन का निषेध है। चंद्र दर्शन करने वाले मिथ्या कलंक के भागी होते हैं।
Ganesh chaturthi
गणेश चतुर्थी व्रत

गणेश चतुर्थी व्रत ध्यान रखने योग्य बातें

  • गणेश पूजा में वर्जित है तुलसी – आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि गणेशजी की पूजा में तुलसी को वर्जित माना गया है। धर्मग्रंथों के अनुसार गणेशजी को भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार बताया गया है और भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं भगवान् विष्णु के अवतार हैं। भगवान् विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है, इतनी प्रिय कि भगवान् विष्णु के ही एक रूप शालग्राम का विवाह तक तुलसी से होता है। लेकिन गणेशजी को तुलसी अप्रिय है, इतनी अप्रिय कि भगवान् गणेश के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है।
  • वर्जित है गणेशजी के पीठ के दर्शन – शास्त्रों के अनुसार गणपति की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। मान्यता है कि उनकी पीठ में दरिद्रता का निवास होता है, इसलिए पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए। अनजाने में पीठ के दर्शन हो जाएँ तो पुनः मुख के दर्शन कर लेने से यह दोष समाप्त हो जाता है।
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