धरोहर के 6 प्रमुख रूप

“धरोहर” अपने आप में बहुत ही व्यापक भाव को आत्मसात किया हुआ महत्वपूर्ण शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है थाती। अर्थात् एक निश्चित समय तक संभाल कर या सहेज कर रखा गया, धन, जेवरात, जायदाद, दस्तावेज, भवन, स्मारक, ग्रंथ, संस्कार, रीति रिवाज आदि, जो आगामी पीढ़ी को “धरोहर” के रूप में प्राप्त होते हैं। किसी समुदाय या व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यक्त आधारित होती है, इसलिए यह ज्वलंत प्रक्रिया हो सकती है। हर किसी के लिए इसका महत्व व्यक्ति की स्वास्थ्य, सांस्कृतिक परंपराएँ, और परिवार के मूल्यों के हिसाब से भिन्न हो सकता है।

धरोहर

“परिभाषित रूप में “धरोहर” वह चल या अचल संपत्ति है जो परंपरा के रूप में, आवश्यकता पर काम आने वाली, सँजोई थाती के रूप में आगामी पीढ़ी को प्राप्त होती है। इसका मानव जीवन में बहुत महत्व है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। इसके अभाव में मानव, मानवता रहित हो जाता है। यह एक समृद्धि और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है जो समाज और समुदाय के इतिहास, विरासत, और पारंपरिक मूल्यों का प्रतीक होती है। यह उन सभी विभिन्न आदिकालिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और तकनीकी प्रक्रियाओं का संचय होती है जो एक समुदाय या समाज की पहचान और विशेषता को दर्शाती है।

इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह हमारे इतिहास, भाषा, कला, और पारंपरिक मूल्यों का हिस्सा होती है और हमारी अद्भुत विरासत को जीवित रखने में मदद करती है। यह समाज की एकता और अभिविवादों के समाधान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कहने का अभिप्राय यह कि मानवीय गुणों के अभाव में व्यक्ति में मानवता का लोप हो जाता है जिससे स्वस्थ परिवार व समाज की संरचना में कलह नजर आने लगता है और पारिवारिक तथा सामाजिक संरचना की सुदृढ़ नींव डगमगाने लगती है। “धरोहर” शब्द के तह में जाने पर इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख हैं-

धरोहर के प्रमुख रूप

  1. पारिवारिक
  2. सामाजिक
  3. सांस्कृतिक
  4. ऐतिहासिक
  5. प्राकृतिक
  6. भाषित

पारिवारिक धरोहर

यह धरोहर भी हमें निम्नलिखित रूप में पूर्वजों से विरासत के रूप में मिलती है। परंपरागत रूप में जहाँ आगामी पीढ़ी को धन, जेवरात, मकान, जायदाद, दस्तावेज आदि मिलते हैं, वहीं पूर्वजों के संस्कार, रीति रिवाज, प्रथा व परंपरा, लोकगीत आदि भी आगामी पीढ़ी के रूप में प्राप्त होते हैं, जिन्हें संरक्षित करना आगामी पीढ़ी का भी कर्तव्य होता है।

अपने कर्म का निर्वाह करने से, कुल की मर्यादा बनी रहती है और स्वस्थ परिवार का सपना साकार होता है तथा परिवार में सुख शांति बनी रहती है। इसके संरक्षण से ही स्वस्थ समाज की संरचना संमभव होती है। पारिवारिक की चर्चा विस्तार से सांस्कृतिक धरोहर के अंतर्गत किया गया है।

सामाजिक धरोहर

इसका अभिप्राय है समाज द्वारा संचित “धरोहर” जिसे समाज कल्याण की भावना से संचित किया गया होता है। इसका फलक बहुत विस्तृत है। इसके अंतर्गत सामाजिक रीति- रिवाज, सामाजिक परंपराएँ, लोकगीत, लोक नृत्य, धार्मिक स्थल- मंदिर, धर्मशालाएँ आदि आते हैं। उन सभी के संयुक्त रूप को हम समाजिक विरासत कहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सामाजिक विरासत के अंतर्गत भौतिक और अभौतिक दोनों ही प्रकार की चीजें आती हैं।

समाज व्यक्तियों का एक समुदाय होता है अर्थात् जो कुछ भी व्यक्ति को अपने समाज से मिलता है। उन सभी के संयुक्त रूप को हम समाजिक विरासत या धरोहर कहते हैं। तात्पर्य यह है कि सामाजिक विरासत के अंतर्गत भौतिक और अभौतिक दोनों ही प्रकार की चीजें आती हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सामाजिक विरासत के रूप में प्राप्त होती हैं। ये भारतीय संस्कृति के अंग हैं जो निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं। इन सांस्कृतिक घटकों की विस्तार से चर्चा सांस्कृतिक धरोहर के किया गया है। Hindibag

अमूर्त धरोहर

अमूर्त सांस्कृतिक “धरोहर” के रूप में, हमारे संस्कार, रीति-रिवाज, प्रथाएँ, परंपराएँ, लोकगीत एवं सामाजिक व्यवहार के अतिरिक्त हमारे पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक मूल्य सम्मिलित हैं जो हमें विरासत के रूप में प्राप्त होते हैं।

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