“सेवाधर्मः” संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है “सेवा का धर्म” या “सेवा का कर्तव्य”। यह शब्द सेवा और उपकार के महत्व को दर्शाने वाला होता है, और इसका उद्देश्य अपने समाज या समृद्धि के लिए अलग-अलग तरीकों से सेवा करने का मानना होता है।
सेवाधर्मः किम स्वरूप अस्ति। महाभारते सेवाधर्मस्य परिभाषा वर्तते यथा विप्रियं नाचरेत् तस्य एषा सेवा समासतः जनः अन्येषां प्रियम् कुर्यात सः कथमपितेषां विप्रियम् नाचरेत्। ईदृशी सेवा एव प्रमुख धर्मः येषाम् ते विरलाः जनाः सन्ति।
धन प्रत्त्यर्थ सेवकाः स्वामिनः सेवां कुर्वन्ति। भर्तृहरिः सेवकस्य धर्मम् अतीव गहने मन्यते भृत्याः सेवाभावेन् स्वामिनम् सम्पत्तौविपत्तौ अपि च सेवन्ते। कुकुराः अपि स्वामिनं सेवन्ते सेवकाः अहनिशम् सर्वदा स्वामिनः सेवां कुर्वन्ति परं सेवां कृत्वा न जल्पन्ति। ते स्वामिपाद भूले एव स्वसुखं मन्यते।
महापुरुषाः देश सेवाम् एवं परमं धर्म मन्यते समाजसेवी दीन जनान सेवते। सः सदा विनम्रः भवति। सः महाव्रतः बहुजन हिताय बहुजनं सुखाय निःस्वार्थ भावेन कार्यम् करोति। समाज सवो एकः महान् व्रतः अस्ति। तस्य व्रतस्य पालनं कर्त्तव्य भावनया क्रियते मातृ सेवा, पितृ सेवा अतिथि सेवा, गुरु सेवा च सेवाधर्मे अन्तर्हिताः सन्ति। अस्माभिः उपशान्तभावेन क्षमाभावेन च सर्वविधा सेवा विधातव्या।
सेवाधर्मः सनातन भारतीय संस्कृति और दर्शनिक धार्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक ऐसा आदर्श है जो हमें सेवा के महत्व को समझने और अपने जीवन में उसे प्राथमिकता देने की प्रेरणा प्रदान करता है। सेवाधर्मः का मतलब होता है कि हमें अपने धार्मिक और मानविक कर्तव्यों के परिपालन के साथ-साथ समाज की सेवा करने का उपकार करना चाहिए।
सेवाधर्मः दान, सहायता, और सहानुभूति की भावना को बढ़ावा देता है। यह उन्हीं दिनों की याद दिलाता है जब दान, यज्ञ, और सेवा समाज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
सेवाधर्मः के माध्यम से हम समाज के साथ-साथ अपने आत्मा को भी शुद्धि और सद्गुणों की प्राप्ति का मार्ग ढूंढ़ते हैं। यह अन्योन्य सहयोग, समरसता, और सद्भाव की भावना को प्रमोट करता है और हमें अपने समाज के हित में समर्पित होने की प्रेरणा देता है।
सेवाधर्मः हमें यह याद दिलाता है कि हमारे पास समाज, परिवार, और समृद्धि के लिए कुछ करने का दायित्व होता है। यह हमें स्वार्थ से बाहर निकलकर अपने समाज के लिए कुछ प्रायास करने की प्रोत्साहित करता है और हमारे जीवन को सामाजिक समृद्धि के माध्यम से महत्वपूर्ण बनाता है।
सेवाधर्मः एक उच्च नैतिक मूल्यों का प्रतीक है और भारतीय संस्कृति के मूल मानवता और सहयोग के प्रति अपने प्रतिबद्धता को पुनर्जीवित करता है। यह हमें यथाशक्ति समाज की सेवा करने का प्रेरणा देता है और हमारे समाज को एक सद्गुणपूर्ण और सामृद्ध समाज के रूप में विकसित करने में मदद करता है।
सेवाधर्मः हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका आदान-प्रदान भारतीय धर्मशास्त्रों और ग्रंथों में किया गया है, जैसे कि भगवद गीता, रामायण, महाभारत, और उपनिषदों में। यह धर्म हमें समाज सेवा, परिवार सेवा, और समृद्धि के लिए सेवा करने के महत्व को सिखाता है।