मीराबाई

 मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सबकुछ कृष्ण के लिए समर्पित था। मीरा का कृष्ण प्रेम ऐसा था कि वह उन्हें अपना पति मान बैठी थीं। भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है।

मीराबाई जीवन परिचय

 
मीराबाई
कवयित्री
जन्म

1498 ई•

जन्म स्थान

ग्राम कुंडकी मारवाड़ राजस्थान

मृत्यु

1547 ई•

माता

वीर कुमारी

पिता

रतन सिंह राठौड़

पति

राणा भोजराज सिंह

भाषा शैली

ब्रजभाषा

पद शैली

उपाधि

मरुस्थल की मंदाकिनी

गुरु

संत रैदास

साहित्य काल

भक्तिकाल

मीराबाई की एक महान भारतीय संत कवित्री तथा कृष्ण भक्त थी। मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति के स्फुट पदों की रचना की है।

https://youtu.be/hFiEw7COkI8?si=WmrgLEDaM39lOQI_

जीवनी

मीराबाई का जन्म 1498 इसी में भारत के राजस्थान के मारवाड़ के पास एक गांव कुंडकी के एक राजपूत शाही परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम रतन सिंह तथा माता वीर कुमारी थी जो की जोधपुर के संस्थापक राव जोधा की प्रपौत्री थी।

बचपन में ही मीराबाई की माता की मृत्यु होने से यह अपने पितामह राव जी के पास रहती थी मीराबाई जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने दादाजी के पास ग्रहण की। जो की एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे जिनका असर मीरा पर पड़ा और वह बचपन से ही कृष्ण की भक्ति करने लगी।

उनका विवाह राणा भोजराज सिंह के साथ हुआ था जिनकी मृत्यु शादी के कुछ वर्षों के उपरांत हो गई थी। मीराबाई कृष्ण भक्त तो थी परंतु पति की मृत्यु के उपरांत उन्होंने अपना पूरा समय कर्ण की भक्ति में लगा दिया। मीराबाई की में संत रविदास से गुरु दीक्षा प्राप्त की थी।

साहित्यिक परिचय

मीराबाई जी के काव्य रचना में इनका कृष्ण भक्ति प्रेम तथा उनके हृदय की सरलता पवित्रता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है इन्होंने कई मुश्किलों को झेला परंतु सभी मुश्किलों को जेल कर्वीकरण की भक्ति नहीं छोड़ी बचपन में उनके सर से मां का साया उठ गया जवानी में पति का देहांत हो गया उन्हें उनके ससुर ने जहर तक दिया परंतु सभी बडो को पार करके विकर्ण की भक्ति में तालीम नहीं तथा कारण के भजनों के द्वारा इस संसार में प्रसिद्ध हो गई।

रचनाएं

मीराबाई की एक कृष्ण भक्त थी इसलिए उनकी रचनाएं प्रेम से परिपूर्ण है क्योंकि ये कृष्ण प्रेमी थी। उनकी प्रसिद्ध रचना मीरा पदावली है तथा प्रमुख रचनाएं जैसे नरसी जी का मायरा, राग गोविंद, गोविंद जी का टीका, राग सोरठ के पद, मीराबाई की मल्हार, गरबा गीत, राग बिहाग आदि है।

भाषा शैली

मीराबाई जी की भाषा राजस्थानी तथा ब्रजभाषा दोनों मिश्रित थी क्योंकि उनका जन्म राजस्थान में हुआ था और वह कृष्ण भक्त थीं इसलिए उनकी भाषा में दोनों का मिश्रण है। कई जगह भ्रमण करने के कारण मीराबाई की भाषा पर कई स्थानों का प्रभाव है। मीरा जी की भाषा बहुत ही सरल है। उनके द्वारा गाए गए भजन तथा कविताएं आज भी लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध है।

मीरा ने विष क्यों पिया था?

पति की मृत्यु के बाद जब ससुराल वालों ने मीरा को सती होने के लिए कहा तो मीरा बोली, मेरे पति को श्रीकृष्ण हैं। मीरा पति की मृत्यु के बाद भी मंदिर जाने लगी और भजन-गीत गाकर नाचने लगी। इस पर उसके ससुराल वालों ने मीरा पर व्यभिचारिणी होने का आरोप लगाकर भरी सभा में मीरा को विष का प्याला देकर पीने को कहा।

मीरा और कृष्ण का क्या रिश्ता था?

मीराबाई की कृष्ण भक्ति में बचपन से ही रुचि थी। मीराबाई का विवाह भोजराज के साथ हुआ जो मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा के पुत्र थे। भक्त। इस युग की मीरा बाई श्री कृष्ण की परम भक्त थी जो श्री कृष्ण के विग्रह में समा गई थी।

कृष्ण
मीराबाई ने कृष्ण प्रेम में क्या क्या किया है?

शादी के बाद विदाई के समय वे कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गईं, जिसे उनकी माता ने उनका दूल्हा बताया था। ससुराल में अपने घरेलू कामकाज निबटाने के बाद मीरा रोज कृष्ण के मंदिर चली जातीं और कृष्ण की पूजा करतीं, उनकी मूर्ति के सामने गातीं और नृत्य करतीं। उनके ससुराल वाले तुलजा भवानी यानी दुर्गा को कुल-देवी मानते थे।

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