कबीर दास जी15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ में सम्मिलित की गयी हैं। वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे।
1398 ई•
वाराणसी उत्तर प्रदेश भारत
1494 ई•
नीरू
नीमा
लोई
स्वामी रामानंद
साधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
कबीर दास जी एक बहुत बड़े दार्शनिक भी थे। उनके लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म तथा कर्म की अवधारणा पर आधारित थे। कबीर दास जी सरल तथा सादा जीवन जीने में विश्वास रखते थे। कबीर दास जी निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख संत थे जो कि केवल एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। कबीर दास जी पाखंड एवं आडंबर की धीरे-धीरे निंदा करते थे अर्थात वह एक महान तथा समाज सुधारक संत थे जो की मूर्ति पूजा के विरोधी भी थे।
कबीर दास जी के जन्म के विषय में कहा जाता है कि उनका जन्म रहस्यवादिता में हुआ अर्थात उनके जन्म का सही से समय का ज्ञान नहीं है। मोटे तौर पर उनका जन्म 14वीं से 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कहां जाता है कि उनका जन्म सन 1398 ईस्वी में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्म मुहूर्त के समय लहर तारा तालाब में एक कमल पर हुआ था।
नीरू तथा नीम नमक दंपति ने उन्हें तालाब से उठाकर पालन पोषण किया था। नीरू तथा नीम एक मुस्लिम जुलाहा दंपति थे इसलिए कबीर दास जी ने भी बड़े होकर एक जुलाहा का काम किया। उनका विवाह लोया नामक युवती से हुआ था उनके दो बच्चे जिनका नाम कमाल और कमाली था।
कबीर दास जी ने गुरु रामानंद से गुरु दीक्षा प्राप्त की। कबीर दास जी निराकार ईश्वर को मानते थे। ये ज्ञानाश्रई शाखा के प्रमुख संत थे, जो कि आडंबर के कट्टर विरोधी थे उनकी मृत्यु सन 1518 ईस्वी में मगहर में हुई।
कबीर दास जी ने मुख्य रूप से 6 ग्रंथो की रचना की है
कबीर दास जी के अनपढ़ होने से उनके द्वारा कहे गए दोहों को उनके शिष्यों ने संग्रहित किया था।
कबीर दास जी की भाषा सधुक्कड़ी तथा पंचमेल खिचड़ी है। सभी बलियो के शब्दों का प्रयोग इनकी भाषा में किया गया है। रमैनी और शब्दों में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है जबकि सखी राजस्थानी तथा पंजाबी भाषा में है। कबीर दास जी ने अपने दोहों में सभी भाषाओं का प्रयोग किया है वह अपनी बात को लोगों तक पहुंचाना चाहते थे इसलिए जैसी भी भाषा उचित लगी उसी भाषा में अपनी बातों को रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया। उनके द्वारा कहे गए दोहे सबसे अधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि उनकी भाषा सरल तथा जुबान पर चढ़ने वाली है। जैसे
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोई।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होई।।
कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ में सम्मिलित की गयी हैं। वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। Courses
कबीर दास जी स्वयं भगवान नहीं अपितु वे जिस निराकार की भक्ति करते थे वह भगवान है। वे एक समाज सुधारक थे।
कबीर द्वारा व्यक्त प्रमुख विचारों में शामिल हैं:
सभी को ईश्वर के प्रति समर्पित रहना चाहिए और धार्मिक मतभेदों पर ध्यान नहीं देना चाहिए । उन्होंने जाति व्यवस्था, मूर्ति पूजा और तीर्थयात्राओं को अस्वीकार कर दिया। कबीर ने सरल दोहों के माध्यम से उपदेश दिया जिन्हें दोहा कहा जाता है।
संत कबीर ने जीवन पर आधारित 25 दोहे लिखे। उनके दोहों की गहरी पंक्तियाँ जीवन और कर्मों से जुड़े सभी सवालों का जवाब देती हैं। कोई भी उनके दोहों को पढ़कर मंत्रमुग्ध कर सकता है।