जयशंकर प्रसाद का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। वे छायावाद गति के प्रमुख कवि माने जाते हैं और उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण रूप से माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज, धर्म, और राष्ट्रीय चिन्तन को प्रकट किया और उनके काव्य में उदात्तता और श्रृंगारिकता का प्रतीक होता है।
उनकी प्रमुख रचनाएँ में “कामायनी” और “स्कंदगुप्त” शामिल हैं, जो हिंदी काव्य साहित्य के महत्वपूर्ण काव्य ग्रंथों में से हैं। “कामायनी” उनकी महाकाव्य काव्य रचना है, जिसमें वे भारतीय धर्म, दर्शन, और संस्कृति के महत्वपूर्ण मुद्दों को छूने का प्रयास करते हैं। “स्कंदगुप्त” एक नाटक है जो भारतीय इतिहास के महान सम्राट स्कंदगुप्त के जीवन को दर्शाता है।
ये काव्य और नाटक उनके साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और उन्हें हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि में गिना जाता है। उनकी रचनाओं का पाठन और अध्ययन आज भी साहित्य प्रेमियों और छात्रों के बीच प्रचलित है।
30 जनवरी 1889
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
15 नवंबर 1937
बाबू देवीप्रसाद
जयशंकर प्रसाद को ‘कामायनी’ पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे। जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं।
नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। 48 वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की।
प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान् इनके संस्कृत के अध्यापक थे। इनके गुरुओं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर्चा की जाती है।
घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी। कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे। मात्र 48 वर्ष की उम्र में क्षय रोग से 14 नवम्बर 1937 को प्रातःकाल उनका देहान्त काशी में हुआ।
कथा के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभयिता माने जाते हैं। सन् 1912 ई. में ‘इंदु’ में उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ प्रकाशित हुई। उन्होंने कुल 72 कहानियाँ लिखी हैं।
प्रसाद ने तीन उपन्यास लिखे हैं।
इन्होंने अपने उपन्यासों में ग्राम, नगर, प्रकृति और जीवन का मार्मिक चित्रण किया है, जो भावुकता और कवित्व से पूर्ण होते हुए भी प्रौढ़ लोगों की शैल्पिक जिज्ञासा का समाधान करता है।
जयशंकर प्रसाद ने कुल 13 नाटकों की रचना की। जिनमें 8 ऐतिहासिक, तीन पौराणिक तथा दो भावात्मक नाटक थे।
जयशंकर जी का प्रसिद्ध उपन्यास “कामायनी” है। “कामायनी” उनके सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण काव्य रचना माना जाता है, जिसे उन्होंने संस्कृत में लिखा था। यह काव्य रचना भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है और जयशंकर प्रसाद की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। “कामायनी” में वे भारतीय संस्कृति, धर्म, और समाज के विभिन्न पहलुओं को गाहे रूप से छायांकित करते हैं।
लेखन शैली उनके काव्य रचनाओं में अत्यंत गरिमा और रसवादी थी। उनकी रचनाएँ सुंदर और अलंकृत भाषा का प्रयोग करती थीं और उनमें गहरी भावनाओं का अभिव्यक्ति किया जाता था। उन्होंने काव्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति, धर्म, समाज, और राष्ट्रीय आत्मा को प्रस्तुत किया।
उनके लेखन में रस, अलंकार, और छंद का अद्वितीय संयोजन होता था, जिससे उनकी कविताएँ बड़ी आकर्षक और सुन्दर होती थीं। उन्होंने अपने काव्य रचनाओं में भावनाओं को बड़े सुंदर ढंग से व्यक्त किया और अपने पाठकों को गहरी सोच और ध्यान में रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
उनकी लेखनी ने उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण कवि में से एक बना दिया और उनके काव्य रचनाओं ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दिलाई। उनके लेखन का प्रभाव आज भी साहित्य प्रेमियों पर बना हुआ है।
इनकी मृत्यु 19 मई 1980 को हुई थी। उनका निधन नई दिल्ली, भारत में हुआ था। वे एक महान भारतीय कवि, नाटककार, और राजनेता थे, और उनका काव्य रचना और साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण था।
इन्होने कई उपन्यास, कविताएँ, और कहानियाँ लिखी हैं, लेकिन उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ निम्नलिखित हैं:
ये केवल कुछ उनकी कहानियों में से हैं और उनके लेखन का आदान-प्रदान हैं। जयशंकर प्रसाद के रचनाओं में सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक मुद्दे पर विचार किए जाते हैं और उनकी कहानियाँ भारतीय समाज की समस्याओं और दरिद्रता को उजागर करती हैं।
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख गुरु और शिक्षक चित्रमहला उनिवर्सिटी के प्राध्यापक पं. विश्वनाथ त्रिपाठी थे। पं. विश्वनाथ त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद को साहित्यिक और सांस्कृतिक ज्ञान की शिक्षा दी और उनके लेखन कौशल को विकसित किया। जयशंकर प्रसाद का साहित्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान उनके गुरु की मेहनत और मार्गदर्शन का परिणाम था।