हरिशंकर परसाई एक मशहूर हिन्दी लेखक और व्यंग्यकार थे जो भारतीय साहित्य में अपने व्यंग्य और हास्य कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भाषा के माध्यम से समाजिक और सामाजिक मुद्दों को हास्यास्पद तरीके से प्रस्तुत किया और उनके लेख और कविताएँ आम जनता के बीच बड़े लोकप्रिय हुए।
हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने अपने व्यंग्यकार्य के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में अपना विशिष्ट और प्रमुख स्थान बनाया है। उनकी रचनाएँ हास्य और व्यंग्य की दृष्टि से रिच हैं और आम जनता के जीवन के विभिन्न पहलुओं को चुनौतीपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करती हैं।
हरिशंकर परसाई की कविताएँ, कहानियाँ, और लेखन सामाजिक समस्याओं, राजनीतिक घटनाओं, और दिनचर्या के मुद्दों पर हास्य और व्यंग्य के साथ आधारित होते हैं। उनके लेखन का मुख्य लक्ष्य जनमानस में समाज के विचारों को उजागर करना और समाज की दोहरी मानसिकता को प्रस्तुत करना था।
वे अपने साहित्यिक काम में विभिन्न रूपों में लिखते थे, जैसे कि कविता, कहानी, निबंध, और वाद-विवाद। उनकी प्रस्तुतियाँ बच्चों से लेकर वयस्क तक सभी आयु समूहों के लिए हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गईं हैं।
हरिशंकर परसाई की लोकप्रिय कविताएँ और रचनाएँ व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों पर उनके अद्वितीय दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं, और उन्होंने हिंदी साहित्य में हास्य कविता का एक नया मार्ग प्रस्तुत किया। उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण है, और वे एक प्रमुख हिंदी लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त करते हैं।
22 अगस्त 1922
जमानी गाँव जिला होशंगाबाद मध्य प्रदेश
10 अगस्त 1995
हरिशंकर परसाई हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करती बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है। उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापन महसूस होता है कि लेखक उसके सामने ही बैठे है।
उन्होंने सेमस्तार ग्लोबल स्कूल इलाहाबाद में आर. टी. एम. नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम॰ए॰ की उपाधि प्राप्त की।
तिरछी रेखाएँ
हरिशंकर परसाई को साहित्य अकादमी पुरस्कार 1982 में मिला था। उन्हें हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उनके व्यंग्यपूर्ण और हास्य काव्य के लिए यह महत्वपूर्ण पुरस्कार साहित्य अकादमी द्वारा प्राप्त किया था। इस पुरस्कार से उनकी रचनाओं को मान्यता मिली और उन्हें हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण लेखक के रूप में स्थान मिला।
हरिशंकर जी की भाषा शैली हास्य और व्यंग्यपूर्ण होती है। उनके लेखन में व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों को हास्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य होता है। वे अपने लेखन के माध्यम से जीवन की गंभीरता को भी हास्य के साथ प्रस्तुत करने में सक्षम थे।
इनके लेखन में साधारण और सरल भाषा का प्रयोग होता है, जिससे वे आम लोगों के साथ अधिक संवाद कर सकें। उनके काव्य रचनाओं में विशेष रूप से चुटकुले और व्यंग्य का बड़ा स्थान होता है, जो समाजिक और राजनीतिक मुद्दों को हास्यास्पद तरीके से प्रस्तुत करते हैं।
उनकी भाषा शैली आम लोगों के दिलों में समान्य होने के कारण, उनके लेखन का आपको विचार करने और हँसने का मौका प्रदान करता है। उनका योगदान हिन्दी साहित्य में हास्य कविता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, और उन्हें एक प्रमुख हिंदी लेखक के रूप में याद किया जाता है।
हिन्दी में हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल इस विधा के प्रमुख हस्ताक्षर हैं।
“हँसते हैं रोते हैं” हरिशंकर परसाई की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें वे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर हास्य और व्यंग्य के साथ चिंतन करते हैं। इस कविता में उन्होंने बताया है कि जीवन में सुख और दुख दोनों होते हैं, और हर किसी को उनका सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि हमें हँसते हुए और आनंदित रहना चाहिए, लेकिन जब समय आता है, तो हमें रोना भी पड़ सकता है।
यह कविता हरिशंकर परसाई की भाषा और व्यंग्य कौशल को अच्छी तरह से प्रकट करती है और उनके लेखन का महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसके अलावा, यह कविता आम जनता के दिलों में स्पष्ट और सरल भाषा के साथ स्थायी रूप से बस जाती है, और लोगों को जीवन के हर मोड़ पर हँसने और रोने की महत्वपूर्ण बातें याद दिलाती है।