1 जनवरी 1890
वाराणसी उत्तर प्रदेश भारत
मुंशी विजयानंद
10 जनवरी 1969
आनंदी देवी
समाजवाद पर मंगला प्रसाद पुरस्कार
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति
नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष
वे कुशल तथा निर्भीक राजनेता, विख्यात साहित्यकार एवं अध्यापक थे। गोविंद बल्लभ पंत के केंद्र सरकार में चले जाने पर 1955 में संपूर्णानंद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1961 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 1962 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया और 1967 में इस पद से अवकाश ग्रहण किया।
संपूर्णानंद ने क्वींस कालेज से बी• एस• सी• की परीक्षा पूरी करने के बाद वे प्रयाग चले गए और वहाँ से एल• टी• की उपाधि प्राप्त की।
एल•टी• करने के बाद उन्होने अपना रुख अध्यापन की ओर कर लिया। कुछ दिन तक उन्होने हरिश्चंद्र हाई स्कूल और मिशन स्कूल में अध्यापन कार्य किया। फिर वे प्रेम महाविद्यालय, वृन्दावन में विज्ञान के अध्यापक रहे। इसके कुछ समय बाद राजकुमारों के डेली कॉलेज, इंदौर में गणित के अध्यापक के रूप में कार्य किया। 1918 में डूगर कॉलेज के प्रधानाचार्य के पद पर रहे । 1921 तक वे बीकानेर रहे और फिर असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए पद त्याग दिया। वाराणसी आने पर उन्होने राष्ट्रीय आंदोलन के साथ साहित्य सेवा की । उन्होंने ‘मर्यादा’ नाम की हिंदी पत्रिका और ‘टुडे’ नामक अंग्रेज़ी दैनिक का संपादन किया। 1923 में वे काशी विद्यापीठ में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए और स्वतंत्रता प्राप्ति तक इस पद पर बने रहे।