सुमित्रानंदन पंत, भारतीय साहित्य के प्रमुख हिन्दी कवि में से एक थे। वे 20वीं सदी के प्रमुख नये युग के कवि माने जाते हैं और उनकी कविताएं राष्ट्रीय और मानवीय भावनाओं को छूने वाली हैं। सुमित्रानंदन पंत का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है, और उनका योगदान भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण है।
20 मई 1900
कौसानी बागेश्वर उत्तराखंड
28 दिसम्बर 1977
गंगादत्त पंत
सरस्वती देवी
हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।
“चिदम्बरा” नामक रचना के लिये 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। “कला और बूढ़ा चांद” के लिये 1960 का साहित्य अकादमी पुरस्कार। इसके अलावा अनेकों प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया
सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।
सुमित्रानंदन पंत की सबसे पहली कहानी ‘गुदिया’ थी। यह कहानी उनके पहले कथा संग्रह ‘गुदिया’ में प्रकाशित हुई थी, जोकि 1930 में प्रकाशित हुआ था। ‘गुदिया’ में इन्होने बचपन, खुशी, और इंसानी भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त किया था।
उन्होंने इस कहानी के माध्यम से गुदिया की दृढ़ता, अवश्यकता के समय अनुभव करने की क्षमता, और बचपन की मासूमियत को बयां किया था। ‘गुदिया’ इनकी लेखनी की शुरुआत का महत्वपूर्ण काम था और इसने उन्हें हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में मदद की।
पंत जी का प्रथम नाटक ‘अग्निकान्ड’ है। यह नाटक 1936 में प्रकाशित हुआ था और इसका नामांकन भारतीय नाटक अकादेमी द्वारा भाषा और साहित्य के क्षेत्र में विशेष प्रशंसा प्राप्त की थी। ‘अग्निकान्ड’ एक महत्वपूर्ण नाटक है जो समाजिक मुद्दों, धार्मिक विवादों, और मानव जीवन के परिप्रेक्ष्य में सुमित्रानंदन जी की विचारधारा को प्रकट करता है।
पंत जी का प्रथम उपन्यास ‘गबन’ है, जो 1931 में प्रकाशित हुआ था। ‘गबन’ उनकी प्रमुख कथा रचना में से एक है और इसका मुख्य विषय गरीबी और जीवन की अभिव्यक्ति है। इस उपन्यास में इन्होने उत्तराखंड के सांस्कृतिक और सामाजिक परिपेक्ष्य में महत्वपूर्ण मुद्दों को छूने का प्रयास किया और गरीबी के प्राणी जीवन की कथा को सुंदरता से रचा। ‘गबन’ के माध्यम से वह उत्तराखंड की संस्कृति और जीवन को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं।
पंत के प्रमुख गुरु और प्रेरणा स्रोत ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कवि जगन्नाथ प्रसाद और रामधारी सिंह ‘दिनकर’ थे। वे उनके साहित्यिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए और उनके कविताओं को प्रेरित किया। पंत जी का काव्य उनके गुरुओं के द्वारा प्राभावित था और उनके शिक्षकों की मार्गदर्शन में उन्होंने हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
ये हिंदी साहित्य के “छायावाद” युग के महत्वपूर्ण लेखक थे। छायावाद युग करीब 20वीं सदी के आसपास था और इस युग में कविता को भावनाओं और भावनात्मक अनुभवों का अद्वितीय रूप मिला। सुमित्रानंदन पंत छायावाद के प्रमुख कवि में से एक थे और उन्होंने अपनी कविताओं में प्राकृतिक और मानवीय भावनाओं का मजबूत संवाद किया। उनकी कविताओं में प्रकृति, प्रेम, और जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर बल दिया गया।
इन्होने अपनी कविताओं में प्राकृतिक वातावरण, जीवन की सामान्य घटनाओं, और मानवीय अनुभवों को बड़े सुंदरता और सरलता से व्यक्त किया। उनकी भाषा शैली अर्थपूर्ण, सुगम, और सुंदर थी जो पाठकों के दिलों में छूने का प्रयास करती थी। उन्होंने प्रेम, प्राकृतिक सौन्दर्य, और भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं को अपनी भाषा शैली के माध्यम से प्रस्तुत किया।
सुमित्रानंदन पंत एक महत्वपूर्ण भारतीय कवि थे और उनकी विशेषताएं उनके लेखन के माध्यम से प्रमुखता प्राप्त करती हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं:
सुमित्रानंदन पंत भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण कवि में से एक थे और उनका योगदान हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण रहा है। उनकी कविताएं और लेखन आज भी पाठकों को प्रेरित कर रहे हैं और उनके साहित्यिक योगदान को सम्मानित किया जाता है।