सन 1907 ई॰
दुबे का छपरा बलिया उत्तर प्रदेश
19 मई 1979
अनमोल द्विवेदी
हजारी प्रसाद द्विवेदी को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
द्विवेदी जी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बाङ्ला भाषाओं के विद्वान थे। भक्तिकालीन साहित्य का उन्हें अच्छा ज्ञान था।
द्विवेदी जी ने इंटर तक की शिक्षा प्राप्त करके ज्योतिष शास्त्र में आचार्य की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन 1940 से 1950 ईस्वी तक वे शांतिनिकेतन में हिंदी विभाग के निदेशक के रूप में रहे। यही इनकी साहित्य प्रतिभा का विकास हुआ। उसके बाद द्विवेदी जी को सन 1949 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी लिट की उपाधि से विभूषित किया। इन्होंने काशी विश्वविद्यालय कथा चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यक्ष पद पर कार्य किया।
आधुनिक युग के गद्यकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य द्विवेदी के निबंधों में जहां साहित्य और संस्कृति की अखंड धारा प्रवाहित है वही नित्य प्रति जीवन की विविध गतिविधियों, क्रिया व्यापारिक, अनुभूतियां आदि का चित्रण भी अत्यंत सजीवता और मार्मिकता के साथ हुआ है।
द्विवेदी जी ने चार उपन्यासों की रचना भी की है सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास द्विवेदी जी की गंभीर विचार शक्ति के प्रमाण है। इन्होंने ललित निबंध के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण लेखन कार्य किया है हिंदी के ललित निबंध को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले निबंधकार के रूप में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अग्रणी है।
उनमें भावुकता सरंसता और कोमलता के साथ-साथ आवेग पूर्ण प्रतिपादन की शैली विद्यमान है।
हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली