8 दिसम्बर 1897
1960
जमुनादास शर्मा
उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे।
नवीन जी द्विवेदी युग के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की।
मिडिल तक की पढ़ाई नवीन की गृहजनपद के परगना स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें उज्जैन भेजा गया और वहाँ के माधव कॉलेज में प्रविष्ट होकर मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। बालकृष्ण शर्मा माधव कॉलेज, उज्जैन के अपने अध्ययनकाल में ही युगीन साहित्यिक वातावरण और राष्ट्रीय आन्दोलन की हलचलों में पर्याप्त रुचि लेने लगे थे और उन सबका उनके युवामन पर एक प्रभाव भी दर्ज हो रहा था। कानपुर से गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘प्रताप’ का नियमित अध्ययन करते थे। इसी दौरान वे माखनलाल चतुर्वेदी और मैथिलीशरण गुप्त के संपर्क में आए। उन्होंने कांग्रेस के अधिवेशन में विधिवत भाग लिया।
शर्माजी के साहित्यिक जीवन की पहली रचना ‘सन्तू’ नामक एक कहानी थी।
पहली जेलयात्रा के दौरान उर्मिला की शुरूआत की। उर्मिला महाकाव्य के प्रणयन में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा की झलक साफ देखी जा सकती है। छः सर्गों वाली इस कृति में यद्यपि उर्मिला के जन्म से लेकर लक्ष्मण से पुर्नमिलन तक की कथा कही गई है, लेकिन अन्य पक्षों के बजाय उर्मिला का विरह-वर्णन कला की दृष्टि से सबसे सरस बन पड़ा है।