भारतेंदु हरिश्चंद आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम ‘हरिश्चन्द’ था, ‘भारतेन्दु’ उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। ब्रिटिश राज की शोषणकारी प्रकृति को दर्शाने वाले उनके लेखन के लिए उन्हें युग चरण के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। “रस” उपनाम से लिखते हुए, हरिश्चंद्र ने ऐसे विषयों को चुना जो लोगों की पीड़ा को प्रदर्शित करते थे।
सन् 1850 ई•
काशी उत्तर प्रदेश
सन् 1850 ई•
पार्वती देवी
गोपाल चंद
ब्रजभाषा - खड़ी बोली मुक्तक शैली
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक काल के प्रसिद्ध लेखकों में सबसे अग्रणी माना जाता है। भारतेंदु जी ही हिंदी गद्य साहित्य के जनक माने जाते हैं। सुमित्रानंदन पंत ने उनके बारे में लिखा है
भारतेंदु कर गए भारती की वीणा निर्माण।
किया अमर इस पर सोने जिसका बहु विधि स्वर संधान।।
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सन 1850 ई• में उत्तर प्रदेश के काशी जिले में हुआ था। इनके पिता बाबू गोपाल चंद्र थे जो गिरधर दास के नाम से कविताओं को लिखा करते थे उनकी माता का नाम पार्वती देवी था तथा उनकी पत्नी मन्नू देवी थी। उनके माता-पिता की मृत्यु बाल्यावस्था में हो गई थी तथा उनकी मृत्यु सन् 1885 ई• में हुई।
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को शिक्षा दीक्षा का संक्षिप्त प्रबंध नहीं हो सका था क्योंकि इनके पिता की आक्स में मृत्यु हो गई थी अत उन्होंने स्वाध्याय द्वारा ही हिंदी संस्कृत और अंग्रेजी के अतिरिक्त बांग्ला गुजराती मराठी मारवाड़ी पंजाबी उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र कवि, नाटककार, इतिहासकार, समालोचक, पत्र संपादक, निबंध लेखक, समाज सुधारक आदि थे। गद्यकार के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद जी को हिंदी गद्य का जनक माना जाता है इन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया था। सन 1868 में कवि वचन सुधा तथा 1873 में हरिश्चंद्र मैगजीन का संपादन किया। इन्होंने हिंदी साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की और जीवन पर्यंत इसमें लगे रहे। उन्हें हिंदी से अनन्य प्रेम था उनका विचार था कि
निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।
पै निज भाषा ज्ञान बिन मिटे न हिय कै शूल।।
भारतेंदु हरिश्चंद आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते हैं।
इसमें भारतेन्दु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिति का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अन्त करने का प्रयास करने का आह्वान करते हैं। भारतेन्दु का यह नाटक अपनी युगीन समस्याओं को उजागर करता है, उसका समाधान करता है।
भारतेन्दु के पूर्ववर्ती नाटककारों में रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह के बृजभाषा में लिखे गए नाटक ‘आनंद रघुनंदन’ और गोपालचंद्र के ‘नहुष’ को अनेक विद्वान हिंदी का प्रथम नाटक मानते हैं।