चालू अंकेक्षण अर्थ परिभाषा आवश्यकता 10 लाभ हानि

चालू अंकेक्षण से आशय ऐसे अंकेक्षण से लगाया जाता है जो साल में एक बार न कराकर पूरे साल होता ही रहता है और यह कार्यक्रम तब तक चलता रहता है जब तक संस्था के अंतिम खातों का अंकेक्षण नहीं हो जाता है।

चालू अंकेक्षण से आशय ऐसे अंकेक्षण से है जिसमें अंकेक्षक अथवा उसका स्टाफ वर्ष भर हिसाब-किताब की जांच करता है अथवा निश्चित या अनिश्चित समयान्तरों पर व्यापार की अवधि के बीच आकर उस अवधि तक के हिसाब-किताब की जाँच करता है।

विलियम्स

चालू अंकेक्षण वह है जहाँ अंकेक्षक का स्टाफ वर्ष भर खातों पर लगातार व्यस्त रहता है और जहाँ अंकेक्षक स्थायी समयान्तर पर या अन्य समयों पर वित्तीय वर्ष के अन्तर्गत आता है तथा आंतरिक अंकेक्षण करता है। यह अंकेक्षण वहाँ प्रयोग किया जाता है जहाँ कार्य अधिक होता है।

स्पाइसर एवं पैगलर
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आन्तरिक अंकेक्षण अर्थ परिभाषा 4 विशेषताएं लाभअंकेक्षण कार्यक्रम अर्थ परिभाषा 7 उद्देश्य लाभ दोष
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चालू अंकेक्षण की आवश्यकता

चालू अंकेक्षण करना यद्यपि वैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है लेकिन निम्नलिखित परिस्थितियों में आवश्यक हो जाता है।

  1. जब लेनदारों की संख्या अधिक हो – जब संस्था में लेन-देन अधिक मात्रा में किये जाते हैं। अर्थात् संस्था अपना उत्पादन एवं क्रय-विक्रय बड़े पैमाने पर करती है तो ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है।
  2. जब अंतिम खाते तिमाही या छमाही बनाये जाते हैं – यदि संस्था में अंतिम खाते 3 महीने में या हर 6 महीने में बनाये जाते हैं तो इसे कराना आवश्यक हो जाता है।
  3. जब विस्तृत या गहन अंकेक्षण आवश्यक हो – जिन संस्थाओं में बिक्री इतनी अधिक होती है कि उसकी गहन जाँच अत्यन्त आवश्यक है। यह आवश्यक हो जाता है।
  4. जब आंतरिक निरीक्षण प्रणाली असंतोषजनक हो – जिन संस्थाओं में आंतरिक निरीक्षण न हो और यदि हो भी तो संतोषजनक न हो तब चालू अंकेक्षण आवश्यक हो जाता है।
  5. जब अंकेक्षण रिपोर्ट वर्ष के अंत में तत्काल आवश्यक हो – जब वित्तीय वर्ष समाप्त होते ही तुरन्त लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा बनाना आवश्यक होता है तो यह कराना आवश्यक हो जाता है।

चालू अंकेक्षण के लाभ

चालू अंकेक्षण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं –

  1. विस्तृत तथा गहन जाँच – इसमें अंकेक्षक के वर्ष भर लगातार आते रहने के कारण लेखों की विस्तृत एवं गहन जाँच संभव हो जाती है और इससे व्यवसाय के सभी लेनदेनों का अंकेक्षण हो जाता है ।
  2. अंतिम खाते शीघ्र तैयार – वर्ष भर अंकेक्षण कार्य होते रहने से लेखा-पुस्तकें पूरे वर्ष तैयार रहती हैं । जैसे ही वर्ष समाप्त होता है सभी लेखा पुस्तकों को बंद करके अंतिम खाते शीघ्रता से बनाये जाते हैं और परिणामों की जानकारी प्राप्त की जाती है।
  3. प्रबन्धकों को सुविधा – चालू अंकेक्षण प्रबंधकों को कई निर्णय लेने में सुविधा रहती है जैसे अंतरिम लाभांश की घोषणा करना। लगातार अंकेक्षण होने से प्रबंधकों को प्रामाणिक एवं सत्यापित लेखों की प्राप्ति होती रहती है जो उनके द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों में बहुत सहायक होती है।
  4. अशुद्धि तथा छल-कपट प्रकट होना – इसमें अंकेक्षक लगातार या समय-समय पर आता रहता है जिससे त्रुटियों एवं कपटों के घटित होने के थोड़े समय बाद ही पता लग जाने की सम्भावना रहती है और उसके संबंध में प्रभावी कदम उठाये जा सकते हैं।
  5. कर्मचारियों पर अच्छा नैतिक प्रभाव – इसके कारण से कर्मचारियों को हमेशा यह भय रहता है कि अंकेक्षक संस्था में कभी भी आ सकता है जिससे कर्मचारी अपने कार्य में किसी प्रकार की ढिलाई या लापरवाही नहीं बरतते और कार्य नियमित एवं सुचारु रूप से होता है।
  6. अंकेक्षकों को सुविधा – चालू अंकेक्षण होने से अंकेक्षकों के पास पूरे साल काम करने के लिए कार्य बना रहता है। इससे उन्हें आर्थिक लाभ होता है और वर्ष के अन्त में कार्य का बोझा भी कम रहता है।
  7. अंशधारियों को लाभ – इससे संचालकगण अंशधारियों का शोषण नहीं कर पाते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इससे अंशधारियों को भी लाभ प्राप्त होता है।
  8. सुधार एवं योजनाएं – इसके दौरान अंकेक्षक नियोक्ता को समय-समय पर सुझाव भी देता रहता है और नियोक्ता के इच्छानुसार योजनाएं भी बनाता रहता है।
  9. अंकेक्षक रिपोर्ट की शीघ्र प्राप्ति – चालू अंकेक्षण में लगातार या एक निश्चित अन्तराल में कार्य होता है जिससे अंकेक्षक को एक ही वर्ष के समाप्ति के तत्काल बाद रिपोर्ट देने में सुविधा रहती है।
  10. समय का सदुपयोग – अंकेक्षण का कार्य वर्ष भर चलते रहने से कर्मचारियों के सामने बेकार के समय की समस्या नहीं आ पाती है। उनके द्वारा तैयार किये गये खातों की जाँच एक के बाद एक की होती है। अतः समय का सदुपयोग होता है।

चालू अंकेक्षण की हानियाँ

चालू अंकेक्षण से निम्नलिखित हानियाँ उत्पन्न होती हैं।

  1. अंकों में परिवर्तन – चालू अंकेक्षण का पहला दोष यह है कि अंकेक्षक द्वारा जिन अंकों या लेखों को देखा जा चुका है तो यह भय बना रहता है कि संस्था के कर्मचारी बाद में उसमें परिवर्तन न कर दे यदि उसमें ऐसा हो जाता है तो अंतिम खाते संस्था की वास्तविक स्थिति को प्रकट नहीं करेंगे।
  2. व्यापार के कार्य में बाधा – इसके दौरान अंकेक्षक को संस्था में कई बार जाना पड़ता है। अंकेक्षक के संस्था में लगातार आने से व्यापार के दिन-प्रतिदिन के कार्य में बाधा पड़ती है और उसके आने से कभी-कभी तो संस्था के अधिकारियों को असुविधा भी होने लगती है।
  3. अधिक खर्चीली पद्धति – चालू अंकेक्षण में अंकेक्षक को और उसके स्टाफ को लगातार संस्था में आते रहने से उन्हें वेतन देना पड़ता है और इसके अलावा भी अन्य व्यय करने पड़ते हैं। इस प्रकार यह अधिक खर्चीली पद्धति है।
  4. छोटे व्यापार के लिए विलासिता – चूंकि इसमें अधिक व्यय होता है। छोटे व्यापारी इसके खर्चे को सहन नहीं कर सकते हैं, इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह छोटे व्यापारियों के लिए विलासिता है।
  5. अंकेक्षण कार्य यंत्रवत होना – इसमें वर्ष भर अंकेक्षण चलते रहने के कारण सम्पूर्ण कार्य यंत्रवत हो जाता अतः अंकेक्षक एवं उसका स्टाफ कार्य के प्रति अधिक रुचि, उत्साह एवं विवेक का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।
  6. कर्मचारियों के नैतिक प्रभाव में कमी – इसमें अंकेक्षक के स्टाफ एवं संस्था के कर्मचारियों के बीच लगातार सम्पर्क होने के कारण संबंधों में निकटता आ जाती है जिससे कर्मचारियों के ऊपर पड़ने वाले नैतिक प्रभाव या भय में कमी आ जाती है।
  7. कर्मचारियों से साँठ-गाँठ – चालू अंकेक्षण के दौरान अंकेक्षक का स्टाफ संस्था के कर्मचारियों के सम्पर्क में आता रहता है जिसकी वजह से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि संस्था के कर्मचारी और अंकेक्षक के स्टाफ आपस में मिल न जायें और यह भी संभावना रहती है कि अंकेक्षक के स्टाफ कर्मचारियों से साँठ-गाँठ करके कुछ तथ्यों को न छुपा लें जिससे कर्मचारियों को लाभ और संस्था को हानि हो सकती है।
  8. कार्य की श्रृंखला टूटना – इसमें अंकेक्षण का कार्य किस्तों में किया जाता है जिसकी वजह से जब-जब अंकेक्षण कार्य प्रारम्भ किया जाता है। तब-तब अंकेक्षण कार्यक्रम बनाना पड़ता है।

चालू अंकेक्षण की हानियों से बचने के लिए सावधानियाँ

इस अंकेक्षण की हानियों से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-

  1. कर्मचारियों को कड़ी चेतावनी – जिन संस्थाओं में यह किया जा रहा हो उन संस्थाओं में कर्मचारियों को सख्त निर्देश दे देने चाहिए कि निरीक्षण हो जाने के बाद अंको में किसी प्रकार का परिवर्तन न करें। यदि किसी प्रकार का सुधार करना है तो लेखाकर्म के अनुसार सुधार करें।
  2. विशेष गुप्त चिन्हों का प्रयोग – जिन संस्थाओं चालू अंकेक्षण होता है वहाँ अंकेक्षक के स्टाफ को जांच के दौरान विशेष एवं गुप्त चिन्हों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. अंकेक्षण स्टाफ में परिवर्तन – जिन संस्थाओं में यह अंकेक्षण होता है। उन संस्थाओं में अंकेक्षक को चाहिए कि समय-समय पर अपने स्टाफ को बदलता रहे ताकि उनका स्टाफ संस्था के कर्मचारियों के साथ साँठ-गाँठ न करने पाये।
  4. अंकेक्षण टिप्पणी पुस्तक का प्रयोग – जिन संस्थाओं में यह होता है उस संस्था के अंकेक्षक को चाहिए कि वह अंकेक्षक टिप्पणी पुस्तक का प्रयोग करता रहे।
  5. पूर्व निर्धारित कार्यक्रम – जिन संस्थाओं में चालू अंकेक्षण होता है वहाँ के अंकेक्षक को चाहिए कि पूरे वर्ष का कार्यक्रम बनाकर अपने स्टाफ को दे दें और निर्देश दे दे कि उसी के अनुसार कार्य करे।
  6. जाँच का एक भाग एक बैठक में समाप्त करना – जिन संस्थाओं में चालू अंकेक्षण होता है वहाँ जिस भाग का अंकेक्षण किया जा रहा है वहाँ उसे उसी बैठक में समाप्त कर लेना चाहिए।
  7. अव्यक्तिगत खातों की जाँच वर्ष के अंत में करना – जिन संस्थाओं में यह किया जाता है वहाँ के अवास्तविक खातों की जाँच वर्ष के अंत में करनी चाहिए क्योंकि व्यक्तिगत खातों की गड़बड़ी अव्यक्तिगत खातों में छुपायी जाती है।
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