हिंदी की क्षेत्रीय भाषा और साहित्य

  1. ब्रज भाषा साहित्य का विकास
  2. ब्रजभाषा के लोक साहित्य का विकास
  3. ब्रजभाषा के रचनाकार तथा कृतियां

व्याख्या एवं आलोचनात्मक प्रश्नों हेतु निम्नांकित रचनाकारों और उनके काव्यांश पढ़े जाएंगे।

  1. सत्यनारायण कविरत्न – भ्रमरदूत
  2. गया प्रसाद शुक्ल स्नेही – प्रेम पचीसी
  3. जगन्नाथ रत्नाकर – उद्धवशतक
  4. डॉक्टर जगदीप गुप्ता – छन्दशती
ब्रजभाषा का विकास क्षेत्र रचनाकार व उनकी कृतियां आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य भक्तिकालीन ब्रज साहित्य
रीतिकालीन ब्रज साहित्य लोक साहित्य लोकगाथा वर्गीकरण विशेषताएं उत्पत्ति
भ्रमरगीत परंपरा लक्षण विकास कवि व ग्रंथ भ्रमरदूत की विशेषताएं प्रेम पचीसी की विशेषताएं

भ्रमरगीत परंपरा

भ्रमरगीत परंपरा लक्षण विकास कवि व ग्रंथ

भ्रमरगीत परंपरा ने हिंदी साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त किया है। इस काव्य की अनेक विशेषताएँ हैं। गीतिकाव्य की प्रेरणा इन कवियों को मुरलीधर कृष्ण से प्राप्त हो चुकी। भक्तिकाल के कवियों ने अपने बार में कुछ नहीं लिखा। भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करने में वे इतने मग्न हुए कि महाकवि बनने …

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प्रेम पचीसी की 5 विशेषताएं – गया प्रसाद सनेही Top 5 Read Free

प्रेम पचीसी की विशेषताएं – प्रेम पचीसी गया प्रसाद सनेही जी द्वारा ब्रज भाषा में रचित एक लघु कृति है जिसमें मात्र 25 छंद हैं। सनेही जी की एक मुख्य विशेषता यह है कि वे श्रंगार प्रधान रचनाएं ब्रज भाषा में लिखते थे जबकि राष्ट्रीय कविताएं खड़ी बोली में लिखते थे। प्रेम पचीसी प्रेम पचीसी …

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भ्रमर दूत की विशेषताएं

भ्रमरदूत की 4 विशेषताएं 4 काव्यगत विशेषताएं – सत्यनारायण कवि

भ्रमरदूत की विशेषताएं – सत्यनारायण कविरत्न ने भ्रमर-दूत में जो छंद प्रयुक्त किया है वह रोला एवं दोहे का मिश्रण है। प्रारंभ की दो पंक्तियां रोला छंद की हैं तथा बाद की दो पंक्तियां दोहा छंद की हैं। अंत में एक आधी पंक्ति और भी जोड़ दी गई है। इस प्रकार इस काव्य ग्रंथ में …

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लोकगाथा

लोकगाथा वर्गीकरण विशेषताएं उत्पत्ति व प्रचलित लोक गाथाएं

किसी कथा विशेष पर आधारित प्रबंधात्मक पद्य वध काव्य को लोकगाथा कहा जाता है। इसमें गायक लोकजीवन में चली आ रही कथा को अपने ढंग से प्रस्तुत करता है। हिंदी लोक गाथा का रचयिता भी लोकगीतों की भांति अज्ञात होता है। नल दमयंती माधवानल, कामकन्दला, हरिश्चंद्र तारामती, लैला मजनू, हीर रांझा, शीरी फरहाद आदि से …

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आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य, सरोज स्मृति

लोक साहित्य परिभाषा व शिष्ट साहित्य से अंतर

लोक साहित्य दो शब्दों से मिलकर बना है – लोक तथा साहित्य। लोक शब्द का तात्पर्य जनसामान्य से है। इस प्रकार लोक साहित्य का तात्पर्य जन सामान्य समाज के साहित्य से है। लोक साहित्य का अर्थ हिंदी साहित्य की एक अन्य विधा के रूप में अशिक्षित और अर्धशिक्षित तथा असभ्य माने जाने वाले श्रमजीवी समाज …

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Prachintam itihaas

रीतिकालीन ब्रज साहित्य विकास एवं प्रवृत्तियां

रीतिकालीन ब्रज साहित्य – रीतिकाल ब्रजभाषा के काव्य रूप का चरमोत्कर्ष काल रहा है। रीतिकाल में सभी कवियों ने चाहे वह ब्रजभाषा क्षेत्र के रहे हैं अथवा उसके बाहर के रहे हो सभी ने ब्रज भाषा में ही अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। रीति ग्रंथ, मुक्तक काव्य ग्रंथ या अन्य छिटपुट ग्रंथ जो कि रीतिकालीन कवियों …

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भक्तिकालीन ब्रज साहित्य

भक्तिकालीन ब्रज साहित्य प्रमुख कवियों की रचनाएं

भक्तिकालीन ब्रज साहित्य – ब्रजभाषा एक सुधीर अवधि तक इस देश की काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही और इसी के अनुपात में ब्रज भाषा साहित्य भी प्रचुर मात्रा में रचा गया। ब्रजभाषा में रचित काव्य को हम कालक्रम की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं- भक्तिकालीन ब्रज साहित्य का विकास …

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ब्रज भाषा साहित्य

आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य का विकास

आधुनिक ब्रजभाषा साहित्य – आधुनिक काल के संधि काल के कवियों में 19वीं शताब्दी के द्विजदेव ने ब्रजभषा को अत्यंत स्वच्छ रूप में प्रयुक्त किया था जिसकी प्रशंसा आचार्य शुक्ल ने निम्न पंक्तियों में की है- “यह अयोध्या के महाराज थे और बड़ी ही सरस कविता करते थे। इनमें बड़ा भारी गुण भाषा की स्वच्छता …

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कक्षा 9 लेखकों का जीवन परिचय

ब्रजभाषा का विकास क्षेत्र रचनाकार व उनकी कृतियां

पश्चिमी हिंदी की प्रमुख बोलियों में ब्रजभाषा का महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रजभाषा अपनी साहित्यिक समृद्धि के कारण मध्यकाल की काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई थी। अपनी विकासमान प्रकृति के कारण यह 16 वीं शताब्दी तक संपूर्ण मध्यप्रदेश की साहित्यिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई थी। ब्रजभाषा की उत्पत्ति शौरसेनी अपभ्रंश …

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