अंकेक्षण कार्य को उचित एवं नियोजित आधार प्रदान करने के लिए अंकेक्षण कार्यक्रम तैयार करना आवश्यक है। इससे आशय ऐसे कार्यक्रम से लगाया जाता है जिसके अन्तर्गत अंकेक्षण के कार्य वितरण को एक सुनियोजित, क्रमबद्ध एवं समयबद्ध ढंग से रखा जाता है। इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं-
अंकेक्षण कार्यक्रम
अंकेक्षण कार्यक्रम इस उद्देश्य से बनाया जाता है जिससे अंकेक्षण कार्य में एकरूपता आ सके और यह निश्चित किया जा सके कि लेखाकर्म के सम्पूर्ण कार्यों का अंकेक्षण हो गया है। इस कार्यक्रम को अंकेक्षण कार्यक्रम कहा जाता है। अंकेक्षक का स्टॉफ अपने-अपने भाग के कार्य को पूरा करके इस पर हस्ताक्षर कर देता है।
वाल्टर डब्ल्यू० बिग
एक अंकेक्षण कार्यक्रम निष्पादित किये जाने वाले अंकेक्षण कार्य की विस्तृत योजना है जिसमें वित्तीय विवरणों की प्रत्येक मद के सत्यापन की कार्यप्रणाली एवं उसमें लगने वाले समय को व्यक्त किया जाता है।
प्रो० मिग्ज
नियोक्ता के वित्तीय विवरणों के विषय में एक अभिमत बनाने के लिए अपनाई जाने वाली समस्त कार्य प्रणालियों को अंकेक्षण कार्यक्रम कहते हैं।
हेवार्ड स्टेटलर
जिस प्रकार बाँध बनाने से पहले इंजीनियर उसका नक्शा बना लेता है फिर उसी के आधार पर कार्य सम्पन्न करके सफलता प्राप्त करता है, ठीक उसी प्रकार अंकेक्षक अंकेक्षण कार्य करने से पहले एक नक्शा बना लेता है और फिर उसी के आधार पर कार सम्पन्न करता है। इस कार्य को अंकेक्षण कार्यक्रम कहते हैं।
अंकेक्षण कार्यक्रम के उद्देश्य
अकेक्षण कार्यक्रम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
- इसे बनाने से अंकेक्षक अपने स्टाफ के सदस्यों में कार्य का विभाजन उनकी योग्यतानुसार करता है।
- अंकेक्षण कार्यक्रम होने से व्यक्ति से कार्य सावधानीपूर्वक लिया जाता है तथा त्रुटि करने पर उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- इससे अंकेक्षण कार्य सुव्यवस्थित होने के कारण अंकेक्षक के व्यवसाय में वृद्धि हुई है।
- इस कार्यक्रम के बनाने का उद्देश्य इस =में एकरूपता लाना भी होता है।
- अंकेक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि करना भी होता है।
- यह कर्मचारियों के कार्य मूल्यांकन में भी सहायक होता है।
- इसके होने से समय की भी बचत होती है।


एक अच्छे अंकेक्षण कार्यक्रम की विशेषताएँ
अंकेक्षण प्रक्रिया में इस कार्यक्रम की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः अंकेक्षण कार्यक्रम विशिष्ट गुणों से मुक्त होना चाहिए। एक अच्छे कार्यक्रम में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए।
- यह लिखित रूप में तैयार किया जाना चाहिए। इससे अंकेक्षक के स्टा को बार-बार अंकेक्षक से जानकारी नहीं करनी पडेगी तथा स्टाफ के बीच मतभेद उत्पन्न नही होंगे।
- इस कार्यक्रम को इस प्रकार तैयार करना चाहिए जिससे स्टाफ के सदस्यों के उत्तरदायित्व स्पष्ट होते हो।
- अच्छे कार्यक्रम के लिए आवश्यक है कि कार्यक्रम में लोच हो।
- जिस संस्था का अंकेक्षण किया जाना हो उसके प्रत्येक विभाग एवं उप-विभाग हेतु पृथक-पृथक कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए।
- इस कार्यक्रम में वर्णित बातें स्पष्ट होनी चाहिए। इससे समय तथा श्रम की बचत होगी।
अंकेक्षण कार्यक्रम के लाभ
अंकेक्षण कार्यक्रम के लागों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
- कार्य नियंत्रण – अंकेक्षण कार्यक्रम से कार्यों पर नियंत्रण रखा जा सकता है। यदि कोई कर्मचारी कार्य को निश्चित समय में पूरा नहीं करता है तो अंकेक्षक आवश्यक कार्यवाही करके इस कमी को पूरा करने का प्रयास कर सकता है।
- कार्य विभाजन में सरलता – अंकेक्षण कार्यक्रम का दूसरा लाभ यह होता है कि इसमें सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न स्तरों में बाँट दियां जाता है। इससे प्रत्येक कर्मचारियों के बीच उनकी एकतानुसार अंकेक्षण के कार्यक्रम का विभाजन हो जाता है। अर्थात् उचित व्यक्ति को उचित कार्य सौंपने में सहायता मिलती है जिससे कर्मचारी मेहनत और लगन से कार्य करते हैं। अतः इसके अलावा त्रुटियों एवं कपटों के छूटने की संभावना खत्म होती है।
- कार्य में एकरूपता – प्रायः किसी संस्था के लिए एक बार बनाये गये इसको कई आगामी वर्षों के अंकेक्षण हेतु प्रयोग में लाया जाता है जिससे विभिन्न वर्षों के कार्यों में एकरूपता लाई जा सकती है। अंकेक्षण कार्य में एकरूपता होने पर कार्य सरल हो जाता है और किसी महत्वपूर्ण कार्य के छूटने की आशंका नहीं रहती है।
- कर्मचारी के कर्तव्य व दायित्व का निर्धारण – अंकेक्षण कार्यक्रम से चौथा लाभ यह होता है कि यदि कोई कर्मचारी अपने कार्य में लापरवाही करता है तो उसको उत्तरदायी ठहराया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अंकेक्षण कार्यक्रम से यह स्पष्ट एवं निर्धारित हो जाता है कि कौन सा व्यक्ति क्या कार्य कितने समय के भीतर करेगा।
- कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि – अंकेक्षण कार्यक्रम से प्रत्येक कर्मचारी का कार्य एवं उसमें लगने वाले समय को फिक्स कर दिया जाता है। इससे कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है।
- कर्मचारियों में परिवर्तन – अंकेक्षण कार्यक्रम से एक व्यक्ति के कार्य को दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित करने में कोई परेशानी नहीं होती है। यदि अंकेक्षण स्टॉफ का कोई कर्मचारी अपूर्ण कार्य करके किसी कार्यवश कहीं चला जाता है तो दूसरा कर्मचारी जो कि उसके स्थान पर कार्य करेगा, इसे देखकर यह ज्ञात कर सकता है कि कितना कार्य हो चुका है और कितना कार्य उसे आगे करना है।
- न्यूनतम निरीक्षण की आवश्यकता – अंकेक्षण कार्यक्रम निर्धारित हो जाने से अंकेक्षक को कर्मचारी के कार्यों का बार-बार निरीक्षण नहीं करना पड़ता है जिससे समय की बचत होती है और न्यूनतम निरीक्षण से ही काम चल जाता है।
- न्यायालय में प्रमाण – यदि कोई व्यक्ति अंकेक्षक पर लापरवाही का अभियोग लगाकर मुकदमा दायर करता है तो ऐसे समय अंकेक्षक के कार्यक्रम को न्यायालय में प्रस्तुत करके अंकेक्षक यह सिद्ध कर सकता है कि उसने अंकेक्षण कार्य में पूर्ण सतर्कता बरती है।
- अंकेक्षण कार्य शीघ्र समाप्त होना – अंकेक्षण कार्य योजनाबद्ध तरीके से होता है, इसलिए अंकेक्षण कार्य शीघ्र समाप्त हो जाता है। अंकेक्षक एक संस्था के साथ ही अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण कार्य भी कर सकता है।
- अन्तिम रिपोर्ट लिखने में सहायक – संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि अंकेक्षण कार्यक्रम सम्पूर्ण क्रियाओं का संक्षिप्त रूप होता है।


अंकेक्षण कार्यक्रम के दोष
अंकेक्षण कार्यक्रम के दोषों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
- कार्य यंत्रवत् हो जाना – अंकेक्षण कार्यक्रम बन जाने से जाँच का कार्य नीरस एवं यंत्रवत् हो जाता है जिससे कर्मचारियों में कार्य के प्रति कोई उत्साह नहीं रहता है।
- कर्मचारियों की स्वतंत्रता का अभाव – अंकेक्षण कार्यक्रम का क्रियान्वयन करते समय परिस्थितियों कुछ बदल सकती हैं परन्तु अंकेक्षण कार्यक्रम में एक कर्मचारी को निर्धारित समय में निश्चित कार्य करने के लिए बाध्य होना पडता है जिससे वह इच्छा एवं सामर्थ्य रखने के बावजूद कार्य को अधिक गहनता से नहीं देख पाता है। इस प्रकार अंकेक्षण कार्यक्रम कुशल कर्मचारियों को स्वतंत्र निर्णय लेने का अवसर प्रदान नहीं करता है।
- नैतिक कमी होना – अंकेक्षण कार्यक्रम में कार्य की चत सीमा निर्धारित होने के कारण प्रायः कर्मचारी कार्य को शीघ्रता से समाप्त करके चले जाते क्षण कार्यक्रम होने से कर्मचारियों पर कम निगरानी रखी जाती है जिसका परिणाम यह होता कर्मचारियों के नैतिक प्रभाव में कमी आ जाती है।
- छल-कपटों का पता न चलना – प्रायः देखा जाता है कि छल-कपटों की खोज यंत्रवत् जाँच से संभव नहीं हो पाती है क्योंकि अंकेक्षकों को अंकेक्षण की सीमा का ज्ञान नहीं होता है।
- लोच का अभाव – सैद्धान्तिक रूप से यह कहा जाता है कि यह कार्यक्रम लोचदार होना चाहिए या होता है लेकिन व्यावहारिक रूप में यह देखने को मिलता है कि अकेक्षण कार्यक्रम में नये-नये विषयों का समावेश नहीं हो पाता है।
- खर्चीली पद्धति – छोटी संस्थाओं में अधिकांश लेनदेनों पर स्वामी का प्रत्यक्ष नियंत्रण होता है। ऐसी संस्थाओं के अंकेक्षण के लिए विस्तृत अंकेक्षण कार्यक्रम बनाता न तो आवश्यक है न ही उपयोगी। इससे अंकेक्षण में अधिक समय लगता है और रुपया खर्च होता है। अतः अंकेक्षण खर्चीला होता है।
- विभिन्न संस्थाओं के लिए अलग-अलग कार्यक्रम – इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि विभिन्न संस्थानों के लिए अलग-अलग कार्यक्रम बनाने पड़ते हैं जिसकी वजह से काफी समय और धन खर्च होता है।