अंकेक्षण अर्थ परिभाषाएं 3 उद्देश्य 7 लाभ सीमाएं

अंकेक्षण को अंग्रेजी में Audit कहते हैं जिसको लैटिन भाषा में Audire के नाम से जाना जाता है, इसी शब्द से Audit शब्द का निर्माण किया गया है। Audire का शाब्दिक अर्थ होता है “सुनना इस संबंध में भिन्न-भिन्न विद्वानों के अलग अलग विचार हैं, जिन्हें निम्नांकित दिया जा रहा है-

अंकेक्षण किसी व्यवसाय के लेन-देन की पुस्तकों की बुद्धिमतापूर्ण एवं आलोचनात्मक जाँच हैं जो उन प्रपत्रों एवं प्रमाणकों की सहायता से की जाती है जिससे वे तैयार की गई हैं। इस जाँच का उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि संस्था का लाभ-हानि खाते में प्रदर्शित किया गया एक निश्चित अवधि का का खात तथा चिट्ठे में दिखलायी गयी व्यापार की वित्तीय स्थिति उन व्यक्तियों द्वारा सच्चाई से निर्धारित एवं प्रदर्शित की गई है अथवा नहीं, जिन्होंने उसे तैयार किया है।”

जे० आर० बाटलीवॉय

किसी व्यवसाय की पुस्तकों, खातों एवं प्रमाणको की ऐसी जाँच को अंकेक्षण कहते हैं जिससे अंकेक्षक संतोषपूर्वक यह कह सके कि प्राप्त सूचनाओं एवं स्पष्टीकरणों के आधार पर एवं जो पुस्तकों से प्रकट है, के अनुसार संस्था का चिट्ठा उसकी आर्थिक स्थिति को और लाभ-हानि खाता संस्था के वित्तीय वर्ष के लाभ हानि को सही एवं उचित रूप में प्रकट करता है और यदि नहीं तो वह किन-किन बातों से संतुष्ट नहीं है।

स्पाइसर एवं पैगलर

एक व्यापारिक संस्था की हिसाब-किताब की पुस्तकों की सत्यता तथा उसका सही रूप से उन निष्पक्ष व्यक्तियों द्वारा प्रमाणित करना ही अकेक्षण कहलाता है। जो इस कार्य के लिए योग्य है और जिनका इन लेखों को तैयार करने से कोई संबंध नहीं है।” आर० सी० बोस ” अंकेक्षण किसी व्यवसाय या अन्य संगठन की वित्तीय क्रियाओं तथा उनके परिणामों से संबंधित तथ्यों को ज्ञात करने या सत्यापित करने तथा उन पर रिपोर्ट देने के उद्देश्य से पुस्तकों और लेखों का एक नियमबद्ध तरीके से किया गया परीक्षण है।

मान्टगोमरी

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि अंकेक्षण न कोई जाँच है और न ही इसका कोई उद्देश्य केवल त्रुटियां निकालना ही है बल्कि इसका उद्देश्य नियमों और व्यवस्थाओं की ढिलाई, अनियमितताओं और कमियों को प्रकाश में लाना है जिससे योजनायें और युक्तियों अधिक तीव्रता, निपुणता एवं मितव्ययिता से चलाई जा सके।

अंकेक्षण अर्थ परिभाषाएं 3 उद्देश्य 7 लाभ सीमाएंअंकेक्षण के प्रकार – 12 Types of Audit in Hindi
अंकेक्षण कार्यक्रम अर्थ परिभाषा 7 उद्देश्य लाभ दोषचालू अंकेक्षण अर्थ परिभाषा आवश्यकता 10 लाभ हानि
आन्तरिक अंकेक्षण अर्थ परिभाषा 4 विशेषताएं लाभअंकेक्षण कार्यक्रम अर्थ परिभाषा 7 उद्देश्य लाभ दोष
आन्तरिक निरीक्षण अर्थ 7 उद्देश्य लाभ हानिप्रमाणन अर्थ परिभाषा 4 उद्देश्य महत्व
लागत अंकेक्षण अर्थ 5 उद्देश्य लाभ हानिप्रबन्ध अंकेक्षण अर्थ कार्य 7 लाभ उद्देश्य सीमाएं

अंकेक्षण के उद्देश्य

अंकेक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है –

  1. मुख्य उद्देश्य
  2. सहायक एवं गौण उद्देश्य
  3. अन्य उद्देश्य

1. अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्य

अंकेक्षण का प्रमुख उद्देश्य लेखांकन अभिलेखों की सत्यता को जाँचना तथा यह प्रमाणित करना होता है कि ये विधान के अनुसार है। अंकेक्षक द्वारा लाभ-हानि खाते में की गयी प्रविष्टियों को सत्यापित किया जाता है। उसे स्वयं को इस बात से सन्तुष्ट करना होता है कि वित्तीय विवरण पत्र सही चित्र प्रस्तुत करते हैं। अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्यों को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  • बहीखातों व अन्य लेखपत्रों की सत्यता की जांच – इसका मुख्य उद्देश्य व्यापारिक संस्था में रखे गये खातो व बहियों व अन्य लेखपत्रों की सत्यता की जाँच करना होता है।
  • बहीखातों एवं लेखपत्रों की पूर्णता की जाँच – अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य बहीखातों एवं लेखपत्रों की सत्यता की जाँच करना ही नहीं होता है बल्कि पूर्णतया जांच करना होता है।
  • बहीखातों व लेख-पत्रों की नियमानुकूल की जाँच करना -अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य हिसाब किताब तथा खातों की जांच नियमानुसार करना होता है।

2. अंकेक्षण के सहायक एवं गौण उद्देश्य

इसके सहायक उद्देश्यों का अध्ययन निम्नलिखित शिक्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है –

  1. त्रुटियों का पता लगाना – इसका सहायक उद्देश्य तृतीय का पता लगाना होता है त्रुटियां निम्न प्रकार की होती है –
    • सैद्धान्तिक त्रुटियाँ – सैद्धान्तिक त्रुटियों वे होती हैं जो लेखाकर्म के सिद्धान्तों के विपरीत प्रविष्टियाँ करने से उत्पन्न होती हैं।
    • लेखे की त्रुटियां – लेखेकी त्रुटियों से आशय ऐसी त्रुटियों से लगाया जाता है जो पुस्तकों में गलत लिख दी जाती है, यह आंशिक रूप से भी गलत हो सकती हैं, पूर्ण रूप से भी गलत हो सकती हैं।
    • भूल की त्रुटियाँ – भूल की त्रुटियों से आशय उन त्रुटियों से लगाया जाता है जो न लिखने के कारण उत्पन्न होती है।
    • क्षतिपूरक त्रुटियाँ – क्षतिपूरक त्रुटियों से आशय ऐसी गल्तियों से लगाया जाता है जिससे त्रुटि का प्रभाव अंकों पर नहीं पड़ता है।
    • दोबारा लिखे जाने की त्रुटियाँ – दुबारा लिखे जाने की त्रुटियों से आशय ऐसी त्रुटियों से लगाया जाता है जो दुबारा लिखने से उत्पन्न होती हैं।
  2. छल कपटों का पता लगाना – इसका सहायक उद्देश्य छल कपटों का पता लगाना होता है छल कपट दो प्रकार के होते हैं-
    • धन, माल और संपत्ति का गबन – अंकेक्षण का उद्देश्य धन, माल तथा संपत्तियों के गबन का पता लगाना होता है।
    • हिसाब-किताब में कपट पूर्ण गड़बड़ी – इसका उद्देश्य हिसाब-किताब में की गई गड़बड़ी को पकड़ना होता है।
  3. त्रुटियों व छल-कपटों को रोकना – अंकेक्षण का उद्देश्य केवल त्रुटियों एवं छल कपटों का पता लगाना ही नहीं होता है बल्कि इनको रोकने की दिशा में प्रभावी प्रयास करना भी होता है। यद्यपि अंकेक्षण इस कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होता है लेकिन व्यावहारिक रूप से अपेक्षा की जाती है कि वह इस संबंध में उचित सलाह दे।

3. अंकेक्षण के अन्य उद्देश्य

इसके अन्य उद्देश्यों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है –

  • कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव – इसका उद्देश्य कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव डालना भी होता है इसलिए जब कर्मचारियों को पता होता है कि संस्था में अंकेक्षण होगा तब वह छल, कपट, चोरी, गबन करने का काम प्रयास करते हैं।
  • अधिकारियों पर नैतिक प्रभाव – इसका उद्देश्य अधिकारियों पर भी नैतिक प्रभाव डालना होता है। अधिकारियों के अंकेक्षण से महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाती है और महत्वपूर्ण सलाह के साथ-साथ खातों के सत्य होने पर भी विश्वास हो जाता है।
  • किसी वैधानिक आवश्यकता को पूरा करना – इसका मुख्य उद्देश्य वैधानिक आवश्यकता की पूर्ति करना भी होता है कुछ संस्थाएं ऐसी होती है जिनके लिए यह करना अनिवार्य होता है जैसे कंपनी, बैंक, वित्त निगम, बीमा इत्यादि।
अंकेक्षण

अंकेक्षण के लाभ

इससे निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-

  1. सामान्य लाभ
  2. एकाकी व्यापारी को लाभ
  3. साझेदारी संस्था को लाभ
  4. कंपनियों को लाभ
  5. प्रन्यास को लाभ

1. सामान्य लाभ –

सामान्य लाभों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-

  • त्रुटियों एवं छल-कपटों का ज्ञान – अंकेक्षण करने से त्रुटियों एवं छल-कपटों को आसानी से पता लगाया जा सकता है और इसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिए समुचित उपाय इन्तजाम किये जा सकते हैं।
  • कार्यकुशलता में वृद्धि – अंकेक्षण होने के कारण संस्था के कर्मचारी अपने कार्य में सावधानी बरतते हैं जिसके परिणामस्वरूप कार्य समय से पूरा हो जाता है।
  • अंशधारियों को विश्वास – अंकेक्षण होने से अंशधारियों को भी इस बात का विश्वास रहता है कि संचालकों के द्वारा जो लाभ निकाला गया है और जो भी खाते बनाये गये हैं, वह उचित एवं सही हैं।
  • व्यापार की बिक्री में सहायक – इसके होने से व्यापार के खाते हमेशा पूर्ण रहते हैं। जब किसी व्यापार को बेचा जाता है या किसी व्यापार को खरीदा जाता है तो उस समय अंकेक्षित खातों की आवश्यकता होती है।
  • क्षतिपूर्ति प्राप्ति में सहायक – जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो हानि का दावा करने के लिए बीमा कम्पनियाँ अंकेक्षित खाते मांगती है। इस प्रकार अंकेक्षण क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  • तकनीकी सलाह – कभी-कभी प्रबंधकों को तकनीकी विषयों पर सलाह लेने की आवश्यकता पड़ती है। यद्यपि सलाह देना अंकेक्षक का उत्तरदायित्व नहीं है फिर भी अंकेक्षक से सलाह ली जा सकती है।
  • आयकर, धन कर एवं बिक्री कर निर्धारण में सहायकआयकर बिक्री कर एवं धन कर के अधिकारी अंकेक्षित खातों पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार अंकेक्षण आयकर, बिक्रीकर एवं धनकर के निर्धारण में सहायक होता है।

2. एकाकी व्यापारी को लाभ

  • खातों का तुलनात्मक अध्ययन – एकाकी व्यापारी अपने हिसाब-किताब का तुलनात्मक अध्ययन करके अपने व्यवसाय की प्रगति को जान सकता है।
  • साख में वृद्धि – यद्यपि एकाकी व्यापारी को अपने खातों का निरीक्षण कराना अनिवार्य नहीं है फिर भी यदि कोई एकाकी व्यापारी अपने खातों का अंकेक्षण कराता है तो इससे उसकी संस्था की ख्याति बढ़ती है।
  • न्यायालय में प्रमाण-पत्र माना जाना – यदि व्यापार में किसी लेनदेन को लेकर वाद-विवाद होता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय उस संस्था के अंकेक्षित खातों को मंगवाता है। इस प्रकार अंकेक्षित खाते एक प्रमाण के रूप में कार्य करते हैं।
  • नये साझेदारों के प्रवेश करने की सुविधा – जब एकाकी व्यापारी किसी व्यक्ति को अपने व्यापार में साझेदार बनाना चाहता है तो यदि वह अपने अंकेक्षिक खातों को नये साझेदार के साथ रखता है तो नया साझेदार उस संस्था की ख्याति व लाभ से संतुष्ट हो जाता है।
  • सम्पदा शुल्क एवं अन्य करों का निर्धारण – जब सम्पदा शुल्क एवं अन्य करों का निर्धारण किया जाता है तब अंकेक्षित खातों की आवश्यकता होती है इस प्रकार यह कहते संपदा शुल्क तथा अन्य करों का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
  • प्रतिनिधि द्वारा किये गये व्यापार के लिए लाभदायक – जब किसी व्यापार को प्रतिनिधियों के माध्यम से चलाया जाता है तो खातों का अंकेक्षण कराना आवश्यक हो जाता है। खातों का अंकेक्षण होने से प्रतिनिधियों में विश्वास बना रहता है।

3. साझेदारी संस्था को लाभ

साझेदारी संस्था को अंकेक्षण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं.-

  • साझेदारों में आपसी विश्वास – अंकेक्षण कराने से साझेदारी फर्म की हिसाब-किताब की पुस्तकों के प्रति सभी साझेदारों का विश्वास बना रहता है और विवाद होने की संभावनाएं कम रहती है क्योंकि संस्था के द्वारा निकाले गये लाभ को उचित एवं सही माना जाता है।
  • साझेदारी फर्म के विघटन पर सुविधा – खातों का अंकेक्षण कराते रहने से जब साझेदारी का विघटन होता है तो उस समय साझेदारों को किसी प्रकार का कोई सन्देह उत्पन्न नहीं होता है और ऐसी स्थिति में साझेदारों को संपत्ति बंटाने में आसानी रहती हैं। Hindibag
  • नये, अवकाश ग्रहण करने वाले एवं सुषुप्त साझेदार को लाभ – खातों का अंकेक्षण कराते रहने से नये साझेदार, अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार और सुषुप्त साझेदार को विश्वास दिलाया जा सकता है।
  • मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को लाभ – जब किसी साझेदार की मृत्यु हो जाती है तो उस मृतक के उत्तराधिकारियों को उस साझेदार के हित का भुगतान कर दिया जाता है। खातों का अंकेक्षण होने से उत्तराधिकारी भुगतान पर सन्देह नहीं करते हैं। इस प्रकार अंकेक्षण से मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को लाभ प्राप्त होता है।
  • साझेदारी फर्म के खातों की ईमानदारी का प्रमाण – खातों का अंकेक्षण होने से साझेदार की ईमानदारी का प्रमाण प्राप्त हो जाता है।

4. कंपनियों को लाभ

अंकेक्षण से कम्पनियों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-

  • अंशधारियों को विश्वास – कंपनियों में व्यापार का संचालन संचालकों के द्वारा किया जाता है जबकि व्यापार में पूँजी अंशधारियों की लगी होती है। इस प्रकार कंपनी के खातों का अंकेक्षण होने से अंशधारियों को संचालकों के द्वारा किये गये कार्यों पर विश्वास बना रहता है।
  • लाभांश वितरण में विश्वास – जब कम्पनी में लाभ होता है तो लाभ के एक अंश को लाभांश के रूप में अंशधारियों को बांट दिया जाता है। अंकेक्षण होने से जो लाभांश घोषित किया जाता है उस पर अंशधारियों को सन्देह नहीं रहता है।
  • क्रय मूल्य निर्धारण में सहायक – जब कोई कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी को क्रय करती है तो ऐसी स्थिति में यदि विक्रेता कम्पनी के खातों का अंकेक्षण किया हुआ होता है तो उसके क्रय मूल्य का निर्धारण करने में सुविधा रहती है।
  • अंकेक्षण की अनिवार्यता इसके लाभदायक होने की सूचक – कम्पनी अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक कम्पनी के खातों का अंकेक्षण होना अनिवार्य है। अंकेक्षण अनिवार्य होने से कम्पनियों को बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं।
  • एकीकरण, संविलियन और पुनर्निर्माण की दशा में लाभ – कम्पनी के खातों का अंकेक्षण यह बताता है कि कम्पनी के खातों द्वारा प्रकट किया गया लाभ या हानि उचित एवं सही है। इस प्रकार अंकेक्षण होने से एकीकरण, संविलयन और पुनर्निर्माण करने में आसानी होती है।

5. प्रन्यास को लाभ

लेखा पुस्तकों के अंकेक्षण से प्रन्यासी को जानकारी लेने में सहायता प्राप्त होती है कि प्रन्यास का संचालन निर्दिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही किया जा रहा है अथवा नहीं तथा लेखा पुस्तकें सही एवं उचित ढंग से रखी जा रही हैं अथवा नहीं। चूंकि प्रन्यासियों की स्थापना निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है, इसलिये खातों का सही हिसाब-किताब रखना आवश्यक हो जाता है।

अंकेक्षण के लाभ

अंकेक्षण का क्षेत्र

अंकेक्षण किसी व्यापारिक संस्था की हिसाब-किताब की पुस्तकों की विशिष्ट एवं विवेचनात्मक जाँच है। पुस्तकों की जाँच करने वाले व्यक्ति को अंकेक्षक कहते हैं, जिसे उन अशुद्धियों का पता लगाना होता है, जो हिसाब-किताब तैयार करने में की गयी हैं तथा आर्थिक और वित्तीय लेखों की सत्यता को प्रमाणित करना होता है। यह सत्यापन ठीक से न किए जाने पर, परिणाम विश्वस्नीय नहीं हो सकते हैं।

यही कारण है कि नियमित अंकेक्षण विधि उत्तम कहलाती है। हिसाब-किताब की अनियमितताओं को प्रकाश में लाना ही अंकेक्षक का मुख्य दायित्व होता है। ‘लन्दन व जनरल बैंक (1895) के मामले में विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि एक अंकेक्षक का कर्तव्य न केवल पुस्तकों की अंकीय शुद्धता का सत्यापन कर देने से पूरा होता है बल्कि उसे पूर्ण सावधानी के साथ यह भी देखना चाहिए कि वह जो कुछ प्रमाणित करता है, वह सही है।

इस प्रकार अंकेक्षक के निम्नलिखित कार्य हो जाते हैं लेखों की गहन जाँच करना, सभी उपलब्ध प्रमाणकों, बीजकों, पत्र-प्रपत्रों एवं पुस्तिका आदि को देखना, सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं जाँच करना तथा अपनी जाँच की सही रिपोर्ट नियोक्ता के समक्ष प्रस्तुत करना।

अंकेक्षक के क्षेत्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें ध्यान में देने योग्य हैं-

  1. यह सीमित कम्पनी के अंकेक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक लाभ-हानि खाते तथा चिट्ठे के सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे तथा अन्य संस्थाओं के अंकेक्षक सामान्यतया खातों के सम्बन्ध में रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। इस रिपोर्ट को अंकेक्षण कार्य द्वारा न्यायाकृत किया जाना चाहिए।
  2. बड़े व्यवसायों के सम्बन्ध में एक अंकेक्षक को आन्तरिक नियन्त्रण प्रणाली पर विश्वास करना होगा क्योंकि उसके लिए प्रत्येक मद की जाँच करना सम्भव नहीं है।
  3. अंकेक्षण के अन्तर्गत किया गया कार्य मुख्य रूप से प्रत्येक व्यक्तिगत मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। विषम परिस्थितियों में अंकेक्षक को अपना विवेक प्रयोग करना चाहिए।
  4. अंकेक्षण को अपना पूरा ध्यान वार्षिक खातों के सम्बन्ध में दी गयी रिपोर्ट की ही ओर नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसे यह भी देखना चाहिए कि प्रविष्टियाँ सही हैं और कम्पनियों के सम्बन्ध में ये पुस्तकें व्यवसाय के लेन-देनों को स्पष्ट करती हैं।
  5. अंकेक्षक को किसी भी प्रकार की शंका उत्पन्न होने पर वह पूर्ण जाँच करने के लिए अधिकृत है।

अंकेक्षक का क्षेत्र धीरे-धीरे व्यापक होता जा रहा है। परम्परागत दृष्टि से अंकेक्षण का प्रमुख कार्य वित्तीय लेखों की जाँच करना है। वैसे इस समय अंकेक्षण का प्रमुख कार्य व्यापारिक संस्थाओं के विनियोजकों को इस बात का आश्वासन प्रदान करना है कि उनका कार्यकलाप ठीक ढंग से चल रहा है। इस प्रकार अंकेक्षक के कर्तव्य काफी हद तक अंकेक्षण के क्षेत्र एवं विषय सामग्री की ओर संकेत करते हैं। अतः अंकेक्षक द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य ही अंकेक्षण का क्षेत्र है। संक्षेप में, अनियमितताओं, अशुद्धियों एवं अन्य विभिन्न कारणों को प्रकाश में लाना ही अंकेक्षण का क्षेत्र है।

अंकेक्षक के गुण

अंकेक्षक में निम्नांकित गुण होने चाहिए-

  1. ईमानदारी।
  2. पक्षपात से दूर
  3. चतुरता
  4. संदेह न करना
  5. कार्य कुशलता
  6. सही स्थिति तक पहुँचने की क्षमता
  7. रिपोर्ट को स्पष्ट लिखने की क्षमता
  8. उच्च चरित्र
  9. सतर्कता व सावधानी
  10. व्यवहार कुशल होना
  11. गुप्त रखने योग्य बातों को गुप्त रखने की क्षमता।
अंकेक्षण के गुण

अंकेक्षण की सीमाएँ

अंकेक्षण की सीमाएं निम्नलिखित होती हैं-

  1. धन का दुरुपयोग – अंकेक्षक को पारिश्रमिक के रूप में एक बड़ी धनराशि का भुगतान किया जाता है तथा अंकेक्षण से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार भुगतान की गयी राशि की अपेक्षा कम होते हैं। इस प्रकार यह धन का दुरुपयोग है। यह लघु व्यवसायों के लिए अनुपयुक्त होता है।
  2. समय की बर्बादी – अंकेक्षण से कर्मचारियों के समय का दुरुपयोग होता है। जितने समय तक अंकेक्षण चलता है संस्था के कर्मचारी अंकेक्षक के प्रश्नों का उत्तर देने हेतु तैयार रहते हैं।
  3. कार्यक्षमता में गिरावट – अंकेक्षक कर्मचारियों से विभिन्न सूचनायें माँगता है इससे उनकी कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  4. निष्प्रयोज्य – अंकेक्षण उपयोगी नहीं होता है क्योंकि अंकेक्षण से भी गड़बड़ियाँ छूट जाती है यद्यपि अंकेक्षण छोटे व्यवसायों हेतु आवश्यक नहीं होता है परन्तु उनके द्वारा अपनी प्रतिष्ठा को दिखाने हेतु अंकेक्षण कराया जाता है।

यदि व्यवसायी लेखाकार या प्रबन्धक पर निर्भर न हो तथा खातों को स्वयं तैयार करता हो तो वह स्वयं ही भूलों तथा कपटों की जानकारी कर सकता है।

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