आन्तरिक निरीक्षण से आशय ऐसे निरीक्षण से लगाया जाता है जिसमें संस्था के सम्पूर्ण लेनदेनों एवं उनसे संबंधित लेखांकन की क्रियाओं को कर्मचारियों के बीच इस प्रकार बाँटा जाता है कि एक कर्मचारी के द्वारा किया गया कार्य दूसरे कर्मचारी के द्वारा स्वतः चैक हो जाता है। इस प्रकार दूसरे कर्मचारी द्वारा किया गया कार्य तीसरे कर्मचारी द्वारा स्वतः चैक हो जाता है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस प्रणाली के द्वारा कार्यों का निरीक्षण अपने आप होता जाता है उसे आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली कहते हैं। इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं जो निम्नलिखित हैं-
आन्तरिक निरीक्षण
आन्तरिक निरीक्षण कार्यालय, कारखाना और माल गोदाम की समस्त क्रियाओं तथा संबंधित कर्मचारियों के कर्तव्यों के संगठन की एक ऐसी विधि है जिसमें बिना सभी कर्मचारियों के मिले कपट एवं अनियमितता का होना असंभव हो जाता है। इसके अन्तर्गत कर्तव्यों का इस प्रकार विभाजन किया जाता है कि कोई भी एक कर्मचारी किसी भी एक लेनदेन के लिए सम्पूर्ण रूप से उत्तरदायी न हो।
जोसेफ लंकास्टर
आन्तरिक निरीक्षण कर्मचारियों के कर्तव्यों की ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक ही व्यक्ति किसी लेनदेन से संबंधित सभी कार्यों को न लिख सके, जिससे दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बिना मिले हुए छल-कपट न हो सके और साथ ही त्रुटियों की संभावनायें भी न्यूनतम हो जायें।
स्पाइसर एवं पेंगलर
आन्तरिक निरीक्षण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कार्य के संबंध में कर्मचारियों को कुछ निश्चित सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं जिससे उनके कार्य का सत्यापन एवं नियंत्रण होता रहे और लेखों को शुद्ध रखने का उद्देश्य भी पूरा हो सके।
डी० आर० हावर
आन्तरिक निरीक्षण का अभिप्राय व्यावहारिक चालू अंकेक्षण से है जो व्यापार के कर्मचारियों द्वारा स्वयं किया जाता है जिससे प्रत्येक कर्मचारी के कार्य की जाँच स्वतंत्र रूप से दूसरे कर्मचारियों द्वारा की जा सके।
डी० पौला
आन्तरिक निरीक्षण नैत्यक हिसाब-किताब की उस व्यवस्था को कहते हैं जिससे कपट एवं त्रुटियाँ स्वतः रुक जाती हैं या पुस्तपालन के संचालन से स्वयं ही पकड़ में आ जाती हैं।
डिक्सी
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आन्तरिक निरीक्षण एक ऐसा निरीक्षण है जिसमें कार्यों के साथ-साथ अंकेक्षण भी होता जाता है।


आन्तरिक निरीक्षण के उद्देश्य
आन्तरिक अंकेक्षण के उद्देश्यों को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –
- आन्तरिक अंकेक्षण का प्रथम उद्देश्य यह है कि प्रबन्ध वर्ग को प्रस्तुत किये जाने वाले वित्तीय लेखांकन तथा सांख्यिकीय प्रलेखों की वैधता एवं यथार्थता की जाँच करना।
- आन्तरिक अंकेक्षण का दूसरा उद्देश्य यह है कि यह जाँच करना कि संस्था के प्रबन्धकों ने जिन नीतियों को अपनाया है उनको सुचारु रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है या नहीं।
- आन्तरिक अंकेक्षण का तीसरा उद्देश्य यह कि सम्पत्तियों के प्राप्त करने, प्रयोग से हटाने तथा निस्तारण करने के लिए उपयुक्त अधिकार दिये गये हैं अथवा नहीं।
- आन्तरिक अंकेक्षण का चौथा उद्देश्य यह है कि जो भी व्यय किये गये हैं, वह सभी संस्था के कार्यों के लिए ही किये गये हैं।
- आन्तरिक अंकेक्षण का पांचवां उद्देश्य यह है कि आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली का पुनरावलोकन तथा सुधार निम्नलिखित के संदर्भ में करना क्या वह कार्यशील है ? क्या वह सुदृढ़ है ? क्या वह मितव्ययी है ?
- आन्तरिक अंकेक्षण का छठवाँ उद्देश्य यह है कि छल-कपट को शीघ्र पकड़ना।
- आन्तरिक अंकेक्षण का सातवाँ उद्देश्य यह है कि प्रबन्धकों द्वारा आदेश दिए जाने पर व्यवसाय के लिये तथा उनको विशेष जानकारी देने के लिये विभिन्न प्रकार की विशेष जाँच अथवा अनुसंधान करना।
आन्तरिक निरीक्षण के मूल सिद्धान्त
आन्तरिक निरीक्षण के मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- सामान्य सिद्धान्त – ये निम्नलिखित हैं-
- संस्था के प्रत्येक कर्मचारी में इस प्रकार कार्य का वितरण किया जाना चाहिए जिससे कि उनके अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्व पूर्णतः स्पष्ट और सुनिश्चित हो जाएं।
- कर्मचारियों में कार्य का विभाजन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विभाजन इस प्रकार हो कि एक ही कर्मचारी किसी लेन-देन को प्रारम्भ से अन्त तक अकेला न लिख सके। अर्थात् बिक्री करने, हिसाब लिखने एवं रोकड़ प्राप्त करने के लिए विभिन्न व्यक्ति होने चाहिए।
- कार्य विभाजन करते समय संस्था के व्ययों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- एक कर्मचारी को एक प्रकार का कार्य दिया जाना चाहिए।
- आवश्यकता से अधिक किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
- किसी एक कर्मचारी को कई वर्षों तक किसी एक ही कार्य में नहीं लगाना चाहिए।
- स्वकीय सन्तुलन प्रणाली का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- आन्तरिक नियन्त्रण की व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि एक कर्मचारी का कार्य स्वतः ही यन्त्रवत दूसरे द्वारा जाँचा जा सके।
- एक व्यवस्थित प्रणाली होनी चाहिए जो कि पत्रों व प्रमाणकों आदि को फाइल कर सकें।
- लेखा करते समय श्रम बचत यन्त्रों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- विशेष कार्यों से सम्बन्धित – इन्हें निम्नवत् दिया जा सकता है-
- प्राप्त रोकड उसी दिन बैंक में जमा की जानी चाहिए।
- माल मंगाने प्राप्त करने तथा भिन्न-भिन्न विभागों को भेजने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- डाक खोलने का कार्य एक उत्तरदायी कर्मचारी को सौंपना चाहिए।
- अप्राप्य ऋण छूट वापसी आदि कार्य पर विशेष नियन्त्रण होना चाहिए।
- बिना आज्ञा किसी को सामान ले जाने की अनुमति नही होनी चाहिए।
- आन्तरिक कार्यों पर उचित नियन्त्रण रखना चाहिए।
- रोकड़, चैक एवं प्रतिभूतियों आदि का कार्य करने वाले कर्मचारियों को आवश्यक रूप से अवकाश पर जाने देना चाहिए।
- लेनदारों एवं देनदारों से व्यवहार के लिए उत्तरदायी व्यक्ति होने चाहिए।


आन्तरिक निरीक्षण के लाभ
आन्तरिक निरीक्षण से विभिन्न व्यक्तियों को लाभ मिलता है जिसका विवेचन निम्न प्रकार किया गया है-
- व्यापार के लिए – आन्तरिक निरीक्षण से व्यापार को निम्नलिखित लाभ होते हैं-
- आन्तरिक निरीक्षण की व्यवस्था अच्छी हो जाने से अशुद्धियाँ व छल-कपट होने की सम्मावनाएं कम होती हैं और होती हैं भी तो उनका आसानी से पता लगाया जा सकता है।
- कार्य विभाजन के फलस्वरूप प्रत्येक कर्मचारी के अधिकार तथा दायित्व सीमित हो जाते है।
- आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली का कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव पड़ता है।
- आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली से व्यवसाय के कार्य कुशलता में वृद्धि होती है।
- आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली से अन्तिम खाते शीघ्र तथा आसानी से तैयार हो जाते हैं।
- अंकेक्षक के लिए – आन्तरिक निरीक्षण से अंकेक्षक को निम्नलिखित लाभ होते हैं।
- जिन संस्थाओं में आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की व्यवस्था होती है उनमें अंकेक्षक को प्रत्येक लेखे जांचने की आवश्यता नहीं होती है।
- आन्तरिक निरीक्षण वाली संस्थाओं में परीक्षण जाँच सुगम हो जाती है। अंकेक्षक केवल उन्हीं तथ्यों की छानबीन करता है जिसमें उसको सन्देह होता है।
- स्वामी के लिए –
- जब कर्मचारियों की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है तो स्वामी को आर्थिक लाभ होते हैं।
- स्वामी हिसाब-किताब की शुद्धता पर विश्वास कर सकता है क्योंकि इस प्रणाली से हिसाब किताब शुद्ध बना रहता है।
आन्तरिक निरीक्षण की हानियाँ
आन्तरिक निरीक्षण की हानियों निम्नलिखित हैं-
- संस्था के कुछ कर्मचारी उत्सुकतावश अपना कार्य शीघ्र ही समाप्त कर लेना चाहते हैं।
- संस्था के जिम्मेदार कर्मचारियों के लापरवाह हो जाने का भय रहता है क्योंकि उनका यह है कि आन्तरिक निरीक्षण के कारण संस्था का कार्य ठीक से चल रहा है।
- अंकेक्षक के कार्य में पर्याप्त सतर्कता नहीं रह पाती है।
- आन्तरिक निरीक्षण की व्यवस्था उचित ढंग से संगठित न किए जाने पर कर्मचारियों में आपसी संघर्ष उत्पन्न होता हैं।
- संस्था के व्ययों में वृद्धि होती है क्योंकि समय-समय पर कर्मचारियों के स्थान में परिवर्तन किया जाता है तथा अनिवार्य छुट्टी दी जाती है।