वैदिक युगे स्त्री शिक्षया: महत्वं सर्वे जानन्ति स्म। वेदेषु यथा पुरुषा: मंत्रदृष्टार: आसन् तथैव काश्चन् नार्य: अपि ब्रह्मवादिन्य: गैत्रेयी गार्गी समा: स्त्रिय: भारते अभवन्। मण्डन् मिश्रस्य पत्नी स्वयं परम विदुषी आसीत्। कालिदासस्य पत्नी विधोत्मा अति विदुषी आसीत्। अतएव वैदिक परंपरां अनुरूध्य स्त्री शिक्षा पुरुष शिक्षा इव अनिवायी आसीत्।
मनुस्मृतौ वर्णितं यत् यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:। नारी पूजाया: किम तात्पर्य अस्त? नारी शिक्षा एव नारी पूजा। शिक्षिता नारी शिक्षिता माता भगिनी, शिक्षिता, च शिक्षिता पत्नी भूत्वा सपरिवारस्य महते कल्याणाय कल्पते।
शिक्षितया नार्या समाज: स्वस्थ: पुष्ट: विकासोन्मुखश्च जायते। समाज जीवनस्य सर्वेषु क्षेत्रेषु शिक्षित नारीणा महत्त्वं स्थानम् च अधुना सर्वत्र स्वीकि्यते। तस्मात् स्त्रीधनं रक्षणतत्परा: वय तत्र शिक्षा विषये कपि कपि अप्रमंता: तिष्ठेम्।
भारत में स्त्री शिक्षा का विकास
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