समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि के 3 प्रमुख आधार

बीसवीं शताब्दी के विचारकों में सी. राइट मिल्स वह प्रमुख विचारक हैं जिन्होंने समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि के रूप में सामाजिक यथार्थ को समझने के लिए एक नए उपागम का उल्लेख किया। मिल्स ने ‘Sociological Imagination’ शब्द का प्रयोग जिस अर्थ में किया है, उसका सम्बन्ध सामाजिक तथ्यों या घटनाओं का उनके यथार्थ रूप में विश्लेषण करने के लिए एक ऐसी दृष्टि अथवा दृष्टिकोण पर बल दिया।

जिसके द्वारा विभिन्न व्यक्ति अपने दैनिक जीवन के अनुभवों और धारणाओं से स्वयं को अलग करके सामाजिक तथ्यों को व्यापक समाज के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों के सन्दर्भ में समझ सकें। मिल्स द्वारा प्रयोग किए गए शब्द “Imagination’ के लिए अक्सर शाब्दिक अनुवाद के रूप में ‘कल्पना’ अथवा ‘कल्पनाशीलता’ जैसे शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है। ऐसे शब्द मिल्स द्वारा दी गयी अवधारणा के वास्तविक दृष्टिकोण से हटकर हमें एक ऐसी कल्पना की ओर ले जा सकते हैं जिसका सन्दर्भ वैज्ञानिक विश्लेषण से न होकर दार्शनिक चिन्तन से हो जाता है।

समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि

मिल्स ने समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा कि, “व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित अनुभवों और व्यापक समाज के बीच सम्बन्धों के प्रति जागरूकता को ही हम समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि कहते हैं।” मिल्स के अतिरिक्त पी. बर्जर तथा ऐरिक फ्रॉम (Erick Fromm) को भी ऐसे विचारकों के रूप में जाना जाता है जिन्होंने ‘समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि’ के रूप से मिल्स के विचारों का समर्थन किया।

इसी बात को दूसरे शब्दों में स्पष्ट करते हुए एंथोनी गिडेन्स (Anthony Giddens) ने स्पष्ट किया कि “समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि का उपयोग उसी व्यक्ति के द्वारा किया जा सकता है जो अपने दैनिक अनुभवों से स्वयं को अलग करके सामाजिक घटनाओं की प्रकृति को गहराई से समझने के योग्य हो। मिल्स ने आगे लिखा है कि, “समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि व्यक्तियों में (सामाजिक घटनाओं को 2 समझने की) वह क्षमता विकसित करना है जिससे वे अपने व्यक्तिगत कष्टों को सार्वजनिक मुद्दों से सम्बन्धित करके देख सकें।”

इसका कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति जब अपनी दिनचर्या और दैनिक अनुभवों से सम्बन्धित धारणाओं से अलग हो जाता है, केवल तभी वह उन सामाजिक घटनाओं पर व्यापक रूप से विचार कर सकता है जिनका सम्बन्ध सार्वजनिक जीवन के मुद्दों से होता है। समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए मिल्स ने अनेक ऐसे प्रश्न उठाए जो वैयक्तिक जीवन में सामाजिक संरचना तथा ऐतिहासिक घटनाओं के महत्व को स्पष्ट करते हैं।

मिल्स ने लिखा कि अपने व्यक्तिगत जीवन में अधिकांश लोग यह महसूस करते हैं कि उनका जीवन बहुत-सी कठिनाइयों और कष्टों में फंसा हुआ है जिन्हें वे दूर नहीं कर सकते। सामान्य व्यक्तियों का दृष्टिकोण साधारणतया अपने परिवार, नातेदारों, पड़ोस अथवा व्यवसाय तक ही सीमित रहता है। यदि वे अपने इस घेरे से बाहर निकलकर कुछ करते या सोचते हैं तो वे अपने आप को अधिक उलझन में महसूस करने लगते हैं।

व्यक्ति की निजी जिन्दगी से सम्बन्धित सफलताओं और असफलताओं का ऐतिहासिक घटनाओं से क्या सम्बन्ध है, साधारणतया लोग इससे परिचित नहीं होते। उनमें इतनी मानसिक क्षमता नहीं होती कि वे व्यक्ति और समाज अथवा निजी जीवन और ऐतिहासिक घटनाओं के पारस्परिक प्रभाव को समझ सकें। इसमें कोई नयी बात नहीं है। एक विशेष समाज के लोगों के लिए अनेक प्राकृतिक विपत्तियों के बारे में वैसी जानकारी नहीं होती जैसा अनुभव ऐतिहासिक कारणों से बहुत से दूसरे लोग कर चुके होते हैं।

उपर्युक्त आधार पर मिल्स ने समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि को ‘मस्तिष्क के एक विशेष गुण’ या ‘मस्तिष्क की विशेष योग्यता’ के रूप में स्पष्ट किया। यह वह गुण है जो हमें विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के आन्तरिक जीवन तथा बाह्य जीवन को एक व्यापक ऐतिहासिक परिपेक्ष में समझने के योग्य बनाता है। यह वह योग्यता है जो समाज में इतिहास और वैयक्तिक जीवन की समझ तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट करती है। समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि व्यक्ति को इस योग्य बनाती है कि वह यह समझ सके कि विभिन्न व्यक्ति किस तरह अपनी सामाजिक दशाओं और सामाजिक प्रस्थिति के बारे में एक झूठी चेतना विकसित कर लेते हैं।

वास्तव में समाजशास्त्रीय चिन्तन का सम्बन्ध एक ऐसी क्षमता से है जिसके द्वारा विभिन्न व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के समकक्ष दूसरे लोगों के बारे में जागरूक होकर उन्हें मिलने वाले जीवन अवसरों को समझ सकें। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति जिस समाज में रहता है, वह अपने जीवन को एक विशेष ऐतिहासिक क्रम में व्यतीत करता है। अपने जीवन में वह समाज और इतिहास को बनाने में भी कुछ अंशदान करता है, लेकिन साथ ही उसके जीवन को समाज की बहुत सी ऐतिहासिक घटनाएं भी प्रभावित करती हैं। समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि वह है जो लोगों को इतिहास और वैयक्तिक जीवन के सम्बन्ध को समझने के योग्य बनाती है।

समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि के आधार

कोई भी सामाजिक अध्ययन तब तक बौद्धिक स्तर का नहीं हो सकता जब तक उसके द्वारा वैयक्तिक जीवन और इतिहास से सम्बन्धित समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता संस्थापक सामाजिक विचारकों के सामने जो भी विशेष समस्याएं रही हों अथवा उन्होंने चाहे कितने भी सीमित या व्यापक स्तर पर सामाजिक वास्तविकताओं को समझा हो, वे विचारक जो अपने कार्य के बारे में जागरूक रहे, उन्होंने तीन प्रश्न अवश्य किये हैं-

  1. अपने समग्र रूप में एक विशेष समाज की संरचना कैसी है? इसके निर्माणक अंग कौन से हैं तथा वे किस प्रकार परस्पर सम्बन्धित हैं? यह संरचना दूसरी सामाजिक व्यवस्थाओं से किस तरह भिन्न है ? सामाजिक संरचना की निरन्तरता और परिवर्तन में एक विशेष इकाई की भूमिका क्या होती है ?
  2. मानव इतिहास में एक विशेष समाज का स्थान कहां पर है? वह कौन सी प्रक्रिया या क्रिया-विधि (Mechanism) है जिसके द्वारा एक विशेष समाज बदलता रहता है ? मानवता के विकास में इसका योगदान क्या है ? हम जिस विशेषता का अध्ययन कर रहे हैं, उसने एक विशेष अवधि में इतिहास को किस तरह प्रभावित किया ? एक विशेष समय की प्रमुख विशेषताएं क्या रहीं तथा यह किस प्रकार दूसरी अवधियों से भिन्न हैं? इतिहास के निर्माण में इनकी भूमिका क्या रही है ?
  3. एक विशेष अवधि तथा समाज में किस तरह के पुरुषों अथवा स्त्रियों की प्रधानता रही तथा भविष्य में किस तरह के लोगों की प्रधानता होगी ? यह लोग किस प्रकार स्वतन्त्र या उत्पीड़ित, भावुक या स्पष्टवादी रहे? एक विशेष अवधि के समाज में लोगों के व्यवहारों और चरित्र में कौन-सी विशेषताएं विद्यमान रहीं तथा हम जिस समाज में रह रहे हैं, उसकी प्रत्येक विशेषता में ‘मानवीय प्रकृति’ कहां तक स्पष्ट होती है ?

हमारे अध्ययन का विषय चाहे कोई शक्तिशाली राज्य हो या फिर केवल एक धार्मिक ‘समूह, परिवार या आदिवासी समुदाय, ये वे प्रश्न हैं जो समाज वैज्ञानिकों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। यही प्रश्न व्यक्ति और समाज से सम्बन्धित प्रमुख अध्ययनों के बौद्धिक आधार हैं। यही वे प्रश्न हैं, जो किसी भी उस व्यक्ति के द्वारा उठाये जाते हैं, जो समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि से सम्बन्धित होता है। कारण यह है कि चिन्तन के ऐसे दृष्टिकोण में ही एक से दूसरे परिप्रेक्ष्य जैसे राजनीतिक से मनोवैज्ञानिक, परिवार से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से धार्मिक में जाने की क्षमता होती है।

यह वह क्षमता है जो हमें वैयक्तिक विषय से किसी नितान्त अवैयक्तिक विषय की ओर जाने तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध को समझने में मदद करती है। समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि के महत्व को स्पष्ट करते हुए सी. राइट मिल्स ने लिखा है कि इसकी सहायता से सभी लोग यह समझने की आशा कर सकते हैं कि समकालीन समाज में मानवता का वास्तविक दृष्टिकोण क्या है तथा इतिहास में परिवर्तन लाने वाली शक्तियां कौन-सी हैं। वास्तव में समाजशास्त्रीय अर्न्तदृष्टि स्वयं के प्रति चेतना का सबसे उपयोगी रूप है।

इसके उपयोग से जिन लोगों की मानसिकता एक सीमित दायरे से बंधी रहती है, वे ऐसा महसूस करने लगते हैं जैसे वे नींद से जाग गये हों। इस दशा में पुराने निर्णय या मान्यताएं जो कभी बहुत अर्थपूर्ण लगती थीं, अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाती। उन्हें चिन्तन की एक नयी दिशा मिल जाती है और साथ ही विभिन्न व्यवहारों का नए सिरे से मूल्यांकन करने का एक तरीका मिल जाता है। संक्षेप में, उन्हें सामाजिक विज्ञानों के सांस्कृतिक अर्थ को समझने की संवेदना मिल जाती है।

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