संवेगात्मक बालक की पहचान व समस्याएँ

संवेगात्मक बालक को पहचानने की उत्तम विधि निरीक्षण विधि है। विभिन्न श्रेणी में आने वाले बालकों के लक्षणों का भली प्रकार अध्ययन करके ऐसे बालकों की पहचान की जा सकती है। मनोवैज्ञानिकों तथा मनोचिकित्सकों की सहायता भी अवश्य ली जानी चाहिए। यदि अध्यापक को किसी प्रकार का सन्देह बालक की संवेगात्मक स्थिति को देखकर होता है तो उसे तुरन्त माता-पिता को बालक की चिकित्सकीय जाँच की सलाह देनी चाहिए।

  1. शिक्षा द्वारा असामान्य व्यवहार करने वाले बालकों की पहचान करना।
  2. बहुत चुप या आक्रामक व्यवहार करने वाले बालकों का अध्ययन
  3. मनोवैज्ञानिकों व चिकित्सकों द्वारा गम्भीर समस्याओं में सुझाव व सहायता लेना।
  4. परिवार में आक्रामक या बहुत हठी व्यवहार करने वाले बालक।
  5. विद्यालय में असमायोजित तनाव में कुण्ठित बालक ऐसे बालकों की पहचान के लिए व्यवहारिक लक्षणों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसे बालक कुछ व्यवहार जान-बूझकर करते हैं। इसलिए इनके अचेतन मस्तिष्क की स्थिति जानना नितान्त आवश्यक होता है। इसके लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। इन परीक्षणों के अन्तर्गत तीन प्रकार के व्यक्तित्व परीक्षण (प्रक्षेपित परीक्षण) अधिक उपयोगी होते हैं-
  6. रोर्शा स्याही के धब्बों का परीक्षण
  7. थैमेटिक अपर्शेन परीक्षण
  8. वाक्य पूर्ति परीक्षण

संवेगात्मक बालक

वह प्रक्षेपित कहलाते हैं। इनके उपयोग से बालकों के अचेतन मस्तिष्क के अन्दर क्या है इसकी जानकारी होती है; जैसे-उनकी दबी हुई आवश्यकताएँ तथा इच्छाएँ जिनकी पूर्ति नहीं हो सकती है। जिसके कारण वह विक्षिप्त हैं। इस प्रकार इन परीक्षणों के उपयोग से ऐसे बालकों की पहचान होती है और विक्षिप्तता के कारणों का भी पता चलता है।

संवेगात्मक विक्षिप्त के मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न कारण बताये हैं। कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. संवेगात्मक विक्षिप्तता का एक कारण जैवभौतिक है। शरीर में कुछ रासायनिक परिवर्तन होने के कारण संवेगात्मक अस्थिरता उत्पन्न होती है। खण्डित मानसिकता का भी एक कारण जैवभौतिक होता है जब शरीर में कुछ रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
  2. संवेगात्मक अस्थिरता का एक कारण सामाजिक है। प्रहारित बालक सामाजिक दोष से ही उत्पीड़ित रहता है।
  3. एक कारण व्यवहारात्मक है, व्यवहार सम्बन्धी दोषों को संवेगात्मक अस्थिरता के कारणों में रखा जाता है।
  4. मनोवैज्ञानिक कारण- बालकों की आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ति न होने पर यह दब जाती है और उसके अचेतन मस्तिष्क में चली जाती है।

संवेगात्मक बालक की समस्याएँ

संवेगात्मक बालक को समस्यात्मक बालक भी कहा जाता है, परन्तु यह इस पर निर्भर होता है कि उनकी समस्याएँ किस प्रकार की हैं। यह वर्गीकरण होलहैन और कफमैन ने (1978) में किया था। संवेगात्मक बालकों की समस्याओं को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

  1. आचरण की समस्या
  2. व्यक्तित्व की समस्या
  3. अपरिपक्वता की समस्या
  4. आचरण की समस्या – इस प्रकार की समस्याओं का अध्ययन व्यवहार और उसके जीवन के इतिहास से किया जा सकता है। व्यवहार के अन्तर्गत आज्ञा न मानना, झगड़ना, क्रोध करना, ऐसे कार्य जिससे दूसरों का ध्यान आकर्षित हो ऐसा व्यवहार करते हैं जो दूसरों को अच्छा नहीं लगता है, इनके जीवन इतिहास से भी समस्याओं का बोध होता है कि इस बालक के जीवन में क्या-क्या कठिनाइयाँ तथा समस्या रही हैं।
  5. व्यक्तित्व की समस्या – व्यक्तित्व की समस्या के लक्षण भी व्यवहारिक तथा जीवन से सम्बन्धित होते हैं। इनमें हीन भावना अधिक होती है, उत्सुकता अधिक होती है, समाज से पलायन करते हैं, स्वभाव से शर्मीले लगते हैं, बहुत कम मुस्कराते हैं, उँगली या नाखून काटते या चबाते रहते हैं। ये डरपोक भी अधिक होते हैं। अपने व्यवहार के प्रति भी अधिक उत्सुकता रहती है।
  6. अपरिपक्वता की समस्याएं – इन बालकों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि इनके व्यवहार में परिपक्वता नहीं दिखाई देती और युवा इसके कारण वह विक्षिप्त हो जाता है। यदि इन बालकों को प्रक्षेपित परीक्षण दिया जाए तो सही कारण पता चल जाएगा यह कारण अधिक विश्वसनीय तथा सार्थक होगा।
  7. कुछ मनोवैज्ञानिक संवेगात्मक अस्थिरता या बाधिता का कारण बालक और उसके वातावरण में अन्तर्क्रिया को बताते हैं। इसे परिस्थितिकीय प्रतिमान माना जाता है। स्वाप और उनके साथियों का मत है- “संवेगात्मक विक्षिप्त बालक और उसके वातावरण के बीच आपसी अनुकूलशीलता का अभाव या वातावरण की प्रत्याशाओं में असंगति का फल है।”

संवेगात्मक बालकों के कारण

संवेगात्मक विक्षिप्तता के कारण निम्नलिखित होते हैं-

  1. संवेगात्मक अस्थिरता का एक कारण सामाजिक दोष होता है।
  2. संवेगात्मक विक्षिप्तता का कारण जैवभौतिक है। शरीर में कुछ रासायनिक परिवर्तन होने के कारण संवेगात्मक अस्थिरता उत्पन्न होती है।
  3. व्यवहार सम्बन्धी दोषों को संवेगात्मक विक्षिप्तता का कारण माना जाता है।
  4. कुछ मनोवैज्ञानिक संवेगात्मक अस्थिरता या बाधिता का कारण और उसके वातावरण में अन्तर्क्रिया को बताते हैं। इसे ही परिस्थितियाँ प्रतिमान माना जाता है।

अतः इस प्रकार कहा जाता है कि, “संवेगात्मक विक्षिप्त बालक तथा उसके वातावरण के बीच आपसी अनुकूलनशीलता का अभाव या वातावरण की प्रत्याशाओं में असंगति का फल है।”

संवेगात्मक बालक की पहचान

संवेगात्मक बालक को पहचानने की कई उत्तम विधियों का निर्माण किया। इसमें सर्वाधिक उत्तम विधि निरीक्षण विधि होती है। इस विधि में निम्न प्रकार से बाधितों की पहचान की जाती है-

  1. इसमें बालकों का अच्छी तरह निरीक्षण किया जाता है इसके बाद उसकी पहचान की जाती है।
  2. इसमें मनोचिकित्सकों की सहायता भी ली जाती है।
  3. माता-पिता द्वारा इन बालकों की चिकित्सकीय जाँच करायी जाती है। चिकित्सकीय अन्तर्गत कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं, जो कि निम्नलिखित होते हैं-
    • शिक्षा से असामान्य व्यवहार वाले बालकों को पहचाना जा सकता है।
    • मनोवैज्ञानिकों द्वारा इन गम्भीर स्वभाव वाले बालकों की समस्याओं को सुलझाया जाता है।
    • हठी या आक्रामक व्यवहार वाले बालकों को पहचाना जा सकता है।
    • विद्यालय में असमायोजित, तनावग्रस्त तथा कुण्ठित बालकों को पहचानना आवश्यक है। उपरोक्त परीक्षण को करने के पश्चात् भी तीन प्रकार के व्यक्तित्व परीक्षण को उपयोगी माना गया है ।

उक्त सभी परीक्षण प्रक्षेपित परीक्षण कहलाते हैं। इसके उपयोग से बालकों के अचेतन मन के अन्दर की जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें उनकी दबी हुई इच्छाओं को भी बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है। इसके द्वारा बालकों की विक्षिप्तता का पता लगाया जाता है। संवेगात्मक बालक को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

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