भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास – यदि 100 वर्षों के भारत के आर्थिक इतिहास का अवलोकन किया जाये तो भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि पुनः नितांत गरीबी व पिछड़ापन तथा पुनः आर्थिक प्रगति के दृष्टांत दिखाई पड़ते हैं। यहाँ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास को अतीत एवं वर्तमान की आर्थिक दशाओं में विश्लेषित किया गया है।

ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था एक आत्म निर्भर और अतिरेक वाली अर्थव्यवस्था थी। विकेन्द्रित उत्पादन प्रणाली अर्थव्यवस्था का आधार रही। इस अवधि में गाँव सामाजिक संरचना के आधार थे। अधिकांश आवश्यकताओं के संदर्भ में गाँव आत्म निर्भर थे। उनकी बाह्य परिवेश पर निर्भरता अत्यन्त कम थी। शासक व उसके तन्त्र का कार्य भू-राजस्व वसूलन तक सीमित था। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

आर्थिक विकास महत्त्व
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

ग्राम पंचायत पारस्परिक विवादों का निर्णय करती थी। सरकार से किसी विवाद को निपटाने के लिये गाँव का मुखिया ग्रामवासियों का नेता होता था। ग्रामीण समाज की इस स्वावलम्बी परम्परा ने राजनीतिक अशांति के समय भी सामाजिक परंपरा को स्थिर बनाये रखा। इस अवधि में कई राजवंश टूटे, नवीन राजवंश आये। परन्तु इस राजनीतिक बदलाव से सामाजिक क्रियाविधि पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। विभिन्न प्रकार की धातुओं के मिश्रण और उन पर आधारित निर्माण कार्य अत्यन्त विकसित थे। स्वर्ण और चाँदी के आभूषण, ताँबे की कलात्मक वस्तुओं का व्यवसाय अत्यन्त विकसित था।

उच्च कोटि के बर्तन, यन्त्र तथा युद्ध सामग्री का निर्माण होता था। उस समय भारत में निर्मित लोहे और इस्पात की किस्म अत्यन्त उच्च कोटि की थी। इससे यह प्रतीत होता है उस समय निर्माण व रासायनिक मिश्रण का कार्य अत्यन्त उच्च कोटि का था। उस समय जहाज निर्माण का कार्य विकसित अवस्था में था। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और ग्रामोद्योगों का समन्वय था। दोनों एक-दूसरे के पूरक थे। एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती थी। कृषक, व्यापारी और कारीगर कुशल एवं प्रसन्न थे।

दस्तकारी और कारीगरों की कला का कौशल उच्चतम स्तर पर था। इनके द्वारा उत्पन्न की गयी वस्तुओं की ख्याति और मॉग विश्वव्यापी थी। विविध हस्तशिल्प एवं कुटीर उद्योगों की वस्तुओं के लिये भारत विश्वविख्यात था। सूती वस्त्र के निर्माण का कार्य सम्पूर्ण देश में फैला हुआ था। वस्तुतः बंगाल और गुजरात इसके मुख्य केन्द्र थे। ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत का औद्योगिक ढाँचा सुदृढ था और यह तथ्य विवाद से परे तथा सर्वमान्य है कि ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत का औद्योगिक विकास समकालीन विश्व स्तर के संदर्भ में काफी अधिक था। ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत की उपरोक्त सबल एवं संतुलित आर्थिक स्थिति के कारण इसे प्रभूत धन सम्पदा वाला देश माना जाता था।

आर्थिक विकास विशेषताएं
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

ब्रिटिश शासन के अधीन भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत लगभग दो शताब्दी तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा है। उपनिवेश किसी स्वतन्त्र देश का एक शासित देश होता है। उपनिवेश शासक देश की सीमा के बाहर स्थित होता है। उपनिवेश की राजनीतिक, आर्थिक विकास तथा व्यापारिक नीतियों का निर्धारण शासक देश द्वारा किया जाता है। उपनिवेश की वास्तविक प्रभुसत्ता शासक देश के पास होती है। भारत में लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

प्रारम्भ में ईस्ट इंडिया कम्पनी और उसके बाद ब्रिटिश सम्राट के शासन काल में शोषणकारी प्रवृत्तियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अत्यधिक कमजोर कर दिया। अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिहीनता की दशा बनी रही। यद्यपि आर्थिक गतिहीनता और व्यापक गरीबी की पुष्टि हेतु औपनिवेशिक काल में सरकारी आँकड़ों का अभाव रहा। इस दिशा में कतिपय अनुमान ही उपलब्ध है। इन आधारों तथा बिखरे हुये साहित्य के आधार पर ब्रिटिश शासन कालीन भारत की दुखमय अवस्था का अनुमान लगाया जा सकता है, जिसके लिये निम्नलिखित संकेतों का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर

प्रति व्यक्ति आय किसी अर्थव्यवस्था के सामान्य जीवन – स्तर का एक प्रमुख सूचक तत्व है। दादा भाई नैरोजी ने अपनी पुस्तक ‘पावर्टी एन्ड अन-ब्रिटिश रूल इन इण्डिया’ में यह उल्लेख किया है कि भारत विभिन्न प्रकार से पीड़ित है और अत्यन्त गरीबी से ग्रस्त है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

अकालों की अधिकता

व्यापक गरीबी का स्पष्ट आभास उन असामयिक मौतों से होता है जो ब्रिटिश शासन काल में होने वाले अकालों के परिणामस्वरूप हुयीं। 1790 में बंगाल में पड़े अकाल से लगभग एक करोड़ लोगों की जान चली गयी। इसी प्रकार 1943 में बंगाल में एक अन्य बड़े अकाल ने 15 लाख लोगों की जान ली।

निम्न स्तरीय मजदूरी

ब्रिटिश शासन की गरीबी और गतिहीनता का स्पष्ट आमास तत्कालीन निम्न स्तरीय और स्थिर मजदूरी से भी है। अकुशल श्रमिकों, कृषि मजदूरों, सेवा कार्य तथा घरेलू कार्य करने वालों की स्थिति अधिक खराब थी। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

प्राथमिक व्यवसाय की प्रधानता

ब्रिटिश शासन काल में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन की स्थिति कार्यशील जनसंख्या के औद्योगिक विभाजन से स्पष्ट होती है। आर्थिक विकास की अवस्था में क्रियाशील जनसंख्या कृषि क्षेत्र से आधुनिक उद्योग तथा सेवाओं में अपनी आजीविका अर्जन हेतु स्थानान्तरित हो जाती है। परन्तु भारत में इस विकास सूचक प्रवृत्ति के विपरीत स्थित रही। ब्रिटिश शासन काल में कृषि, वनोद्योग एवं मत्स्य व्यवसाय में लगी जनसंख्या का प्रतिशत कम न होकर बढ़ा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

ऊँची जन्म एवं मृत्यु दर

अत्यधिक निर्धन तथा पिछड़ी अर्थव्यवस्था में जन्म दर एवं मृत्युदर ऊँचे होते हैं। आर्थिक विकास की अवस्था में पहले मृत्यु दर कम होती है और उसके बाद जन्म दर में कमी आती है। विकसित अर्थव्यवस्था में जन्म एवं मृत्यु दर नीची होती है। 1901 से 1941 तक की अवधि में जन्मदर सदैव 45 प्रति हजार जनसंख्या से अधिक थी। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति एक ओर इसके प्रगतिशील होने और दूसरी ओर इसके अर्द्धविकसित होने के तथ्य प्रस्तुत करती है। औपनिवेशिक शासन में भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर हास की प्रवृत्ति बनी रही। भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्तमान प्रगतिशील स्वरूप को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया गया है

  1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि
  2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
  3. आधारभूत उद्योगों का विकास
  4. कृषि क्षेत्र में सुधार
  5. सेवा क्षेत्र में प्रगति

राष्ट्रीय आय में वृद्धि

भारत में योजनाकाल में राष्ट्रीय आय में अपेक्षाकृत तीव्र दर वृद्धि हुई है। 1950-51 से लेकर 1986-87 की अवधि में औसतन 3.6% प्रति वर्ष की यौगिक दर के वृद्धि हुई है। प्रथम और पाँचवी योजना में राष्ट्रीय आय में क्रमश: 2.1% तथा 4.4% प्रतिवर्ष वृद्धि कर लक्ष्य रखा गया था जबकि वास्तविक वृद्धि इन योजनाओं में क्रमशः 3.6% तथा 5.2% प्रतिवर्ष रही।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि

आर्थिक प्रगति को प्रदर्शित करने के लिये राष्ट्रीय आय में वृदि के मानक की अपेक्षा प्रति व्यक्ति आय वृद्धि का मानक अधिक श्रेयस्कर माना जाता है। 1950-51 में 1970-71 की कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 466 रु. थी। 1985-86 में 1970-71 की कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 797.7 ₹ थी। वर्ष 2008-09 में 2004-05 की कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 31821 रु थी। उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता के बाद भारत की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है। विश्व विकास रिपोर्ट 2010 के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति आय 1070 डॉलर है।

आधार मूत उद्योगों का विकास

स्वतंत्रता के समय भारत का औद्योगिक ढाँचा अत्यन्त कमजोर था औद्योगिक ढाँचे में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों की प्रधानता थी और आधारभूत पूँजी उद्योगों की कमी थी। स्वतंत्रता के समय कुल औद्योगिक उत्पादन में आधारभूत तथा पूँजीगत उद्योगों के उत्पादन का अश 25% था। द्वितीय योजना में इन उद्योगों के विकास को वरीयता दी गयी। औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों में आज भारत का विश्व में आठवों स्थान है। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सुधार

स्वतंत्रता के समय देश का कृषि ढाँचा अत्यन्त परम्परागत और असक्षम था। अधिकांश भू-स्वामित्व जमीदारों के पास था। कृषि मात्र जीवन निर्वाह का व्यवसाय बनी थी। स्वतंत्रता के बाद की अवधि में कृषि क्षेत्र में हुये संस्थागत तथा तकनीकी परिवर्तनों ने कृषि के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया। अधिक उपजाऊ किस्म के बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक दवाइयाँ, सिचाई और उन्नत फसल व्यवस्था युक्त नवीन तकनीकी हरितक्रान्ति के समावेश से उत्पादन तथा उत्पादिकता बढ़ी है। आप भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

पर्यावरण शिक्षा का प्रारूप
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सेवा क्षेत्र में प्रगति

भारत में स्वतंत्रता के बाद नियोजन काल में विभिन्न सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं में सुधार हुआ है। व्यापारिक बैंक तथा सहकारी समितियों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। व्यापारिक बैंक ग्रामोन्मुख हुये हैं। इसी प्रकार परिवहन, संचार, व्यवसाय, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। उत्पादन तथा प्रबन्ध की नयी विधियों प्रयोग में लाई जा रही है। निर्यात व्यापार की संरचना और दिशा में सुधार हुआ है। “उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक प्रगति की दर तीव्र हुई है। भारत की गणना कम से कम विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी देशों में होने लगी है।

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