हर्षचरित कथावस्तु – महाकवि बाणभट्ट की कीर्ति कौमुदी की विस्तारक दो रचनाएं हर्षचरित और कादंबरी हैं। हर्षचरित महाकवि बाणभट्ट की प्रथम रचना है। यह गद्य विद्या में आख्यायिका है। इसमें कुल 8 उच्छवास हैं। प्रथम तीन उच्छवासो में महाकवि बाणभट्ट ने आत्मकथा को प्रस्तुत किया है और शेष उच्छवासों में सम्राट हर्ष के संबंध में निरूपण किया।
हर्षचरित कथावस्तु
संछिप्त रूप में हर्षचरित कथावस्तु इस प्रकार है-
- प्रथम उच्छवास में कभी अपने वंश का परिचय देता है। इसके लिए वह एक विस्तृत काल्पनिक कथा प्रस्तुत करता है। इसी में उन्होंने अपने जन्म और बाल्यावस्था का उल्लेख किया है।
- द्वितीय उच्छवास में ग्रीष्म की प्रखरता और राजद्वार का वर्णन किया गया है।
- तृतीय उच्छवास में बाण राजा से भेंट कर और उनके विश्वसनीय बनकर घर लौटते हैं। भाई के निवेदन करने पर वह हर्ष का चरित्र वर्णन करते हैं।
- चतुर्थ उच्छवास से हर्षचरित की वास्तविक कथा का प्रारंभ होता है इसमें राजा प्रभाकर वर्धन और रानी यशोमती का स्वप्न वर्णित है। राज्यश्री का विवाह मौखरी गृहवर्मा से होता है।
- पंचम उच्छवास मैं राज्यवर्धन पूर्ण विजय के लिए प्रस्थान करते हैं। इसी उच्छवास में हर्ष कि मृगया पिता की अस्वस्थता की सूचना हर्ष का राजधानी लौटना, यशोमती का सती होना तथा प्रभाकर का दिवंगत होना आदि घटनाएं वर्णित है।

- षष्ठ उच्छवास मैं राज्यवर्धन की हूण विजय राज्यवर्धन का हर्ष के राज्य अभिषेक के लिए उद्धत होना वर्णित है। परंतु इसी बीच उसे समाचार मिलता है कि माल औरास ने ग्रह वर्मा को मारकर राज्यश्री को बंदी बना लिया है। राज्यवर्धन सेनापति भण्डि को आदेश देकर माल ऊपर चढ़ाई करता है और विजय प्राप्त कर लेता है, परंतु लौटते समय गौड़राज उसे मार डालता है। हर्ष उसी समय युद्ध के लिए सनद हो जाता है परंतु सेनापति के कहने से रुक जाता है।
- सप्तम उच्छवास में सेना प्रस्थान का विस्तृत वर्णन है।
- अष्टम उच्छवास में विंध्याटवी तथा दिवाकरमित्र के आश्रम का सुंदर चित्रण है। बिच्छू के द्वारा राज्यश्री की सूचना दी जाती है। हर्ष दौड़ता हुआ वहां पहुंचता है और राज्यश्री को चिता में जलने से बचा लेता है। राज्यश्री निराश होती है। दिवाकर मित्र उसे समझाता है राज्यश्री को लेकर हर्ष लौट आता है। यहीं पर ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है।
हर्षचरित कथावस्तु में सम्राट हर्ष का आदर्श व्यक्तित्व प्रकट हो रहा है इसकी शैली सरस एवं रोचक है।


हर्षचरित
“हर्षचरित” एक संस्कृत कविता कला का एक महत्वपूर्ण भाग है जो किसी कविता, कहानी, या ग्रंथ की रचना में भावनाओं और भावनात्मकता का प्रमुख भूमिका निभाता है। “हर्ष” का अर्थ होता है “खुशी” या “आनंद” और “चरित” का अर्थ होता है “कहानी” या “कथा”। हर्षचरित कविताएँ अक्सर खुशी, प्रेम, उत्सव, या किसी अच्छे घटने की आदि की चर्चा करती हैं और उन भावनाओं को शब्दों में व्यक्त करती हैं।
इसका मुख्य उद्देश्य पाठकों को भावनाओं का अभिवादन करने और उन्हें उन अहसासों को समझने का अवसर देना होता है। हर्षचरित कविताएँ विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों, धार्मिक प्रतिष्ठाओं, और सामाजिक अवसरों के साथ जुड़ी होती हैं, और वे भाषा और संस्कृति के माध्यम से मानव जीवन की मूल भावनाओं को प्रकट करती हैं।