हण्टर आयोग – लगभग सन् 1880 में ब्रिटिश प्रशासन को यह आवश्यकता अनुभव हुई की अब तक की शिक्षा की प्रगति का मूल्यांकन किया जाए तथा उत्पन्न हुए दोषों को किस प्रकार दूर किया जाए? इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 1882 में हण्टर आयोग का गठन किया गया जो भारतीय शिक्षा आयोग के नाम से भी जाना जाता है।
इस आयोग को लार्ड रिपन ने जो उस समय वायसराय थे, 3 फरवरी 1882 को नियुक्त किया। इस आयोग में 20 सदस्य थे। इस आयोग में सैयद महमूद, पी संगनन मुदलियार, हाजी गुलाम, के• टी• तंलग, भूदेव मुखर्जी आदि का नाम उल्लेखनीय है।

हण्टर आयोग के प्रमुख उद्देश्य
हण्टर आयोग नियुक्ति के निम्न उद्देश्य थे-
- प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करना व उसके विकास के लिए सुझाव देना।
- भारतीय शिक्षा जगत में मिशनरियो द्वारा संचालित स्कूलों के महत्व का पता लगाना।
- राजकीय शिक्षण संस्थाओं की आवश्यकताओं का मूल्यांकन करना तथा या निर्णय लेना कि उन्हें चलने दिया जाए अथवा समाप्त कर दिया जाए।
- अनुदान नियमावली का मूल्यांकन करना।
- भारतीय जनमानस द्वारा शिक्षा प्रसार के प्रयत्नों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण देखना तथा यह पता लगाना कि उन्हें प्रोत्साहन मिलता है अथवा उनके प्रति उदासीनता बरती जाती है।
इस आयोग का प्राथमिक उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा का मूल्यांकन करना था। परंतु उसने माध्यमिक व उच्च शिक्षा के संबंध में विचार प्रस्तुत किए। इस आयोग ने कई माह तक देश भर की यात्रा करके सूचनाएं एकत्र कीं तथा सरकार से भी रिपोर्ट मांगी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की परंतु कोई मौलिक विचार अथवा सुझाव अपनी ओर से सरकार को नहीं दिया। इस प्रकार यह रिपोर्ट वुड के घोषणापत्र का नया रूप बनकर सामने आई।

हण्टर आयोग के सुझाव
हण्टर आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के संबंध में जो सुझाव दिए थे उन्हें निम्नलिखित रुप में क्रमबद्ध कर सकते हैं-
1. प्राथमिक शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त
आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के प्रशासन और वित्त का भार स्थानीय निकायों को सौंपने का सुझाव दिया और स्पष्ट किया कि यह संस्थाएं अपने अपने क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना करेंगे उनमें शिक्षकों की नियुक्ति करेंगे उनके शिक्षकों को वेतन का भुगतान करेंगे और अन्य सब व्यय वहन करेंगी। आयोग ने इन स्थानीय निकायों की शिक्षा हेतु वित्त व्यवस्था के संबंध में यह सुझाव दिया कि यह अलग से प्राथमिक शिक्षा कोष का निर्माण करेंगी और इस कोष को केवल प्राथमिक शिक्षा पर ही व्यय करेंगी।
2. प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य
आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के दो प्रमुख उद्देश्य निश्चित किए-
- जन शिक्षा का प्रचार
- व्यवहारिक जीवन की शिक्षा
3. प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या
आयोग की दृष्टि से प्राथमिक शिक्षा जीवन के व्यावहारिक पक्ष से संबंधित होनी चाहिए। इस संबंध में उसने निम्नलिखित सुझाव दिए –
- प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या प्रांतों की अपनी परिस्थिति के अनुकूल होनी चाहिए। उसमें प्रांतीय भाषा और प्रांतीय व्यवहार मानदंडों की शिक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
- प्रत्येक प्रांत की प्राथमिक शिक्षा की पाठ्यचर्या में व्यावहारिक गणित, बहीखाता, सरल विज्ञान और आरोग्य विज्ञान के सामान्य ज्ञान को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाए।
- स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कृषि, पशुपालन, कताई, बुनाई आदि में से किसी एक की सामान्य शिक्षा दी जाए।

4. प्राथमिक शिक्षा का माध्यम
आयोग ने सुझाव दिया कि प्राथमिक शिक्षा का माध्यम देशी भाषाएं होनी चाहिए। उसने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को इन भाषाओं के विकास के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
5. प्राथमिक शिक्षा हेतु शिक्षकों का प्रशिक्षण
आयोग ने प्राथमिक शिक्षा में सुधार हेतु प्राथमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति पर बल दिया और प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों की संख्या बढ़ाने का सुझाव दिया।
6. प्राथमिक देशी पाठशालाओं को प्रोत्साहन
आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के लिए देशी पाठशालाओं को प्रोत्साहन देने पर बल दिया। मैं देखा कि देसी पाठ शालाओं को भारतीय बड़े साहस और उत्साह से चला रहे थे और यह उस समय बड़ी लोकप्रिय थी परंतु उनका स्वर थोड़ा निम्न था। आयोग ने इन पाठशालाओं के स्तर को उठाने और इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए 4 सुझाव दिए-
- सभी देशी पाठशालाओं को भवन निर्माण और अध्यापकों के वेतन भुगतान के लिए अनुदान दिया जाए।
- इनमें अध्ययनरत निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियां दी जाएं।
- इनकी पाठ्यचर्या में कोई विशेष हस्तक्षेप ना किया जाए, परंतु उपयोगी विषयों को सम्मिलित करने का सुझाव अवश्य दिया जाए।
- इन विद्यालयों में शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।
हण्टर आयोग के सुझाव की समीक्षा
भारतीय शिक्षा जगत में हंटर आयोग का विशेष महत्व है। हंटर आयोग ने सरकार का ध्यान व्यवसायिक शिक्षा की कमी व बढ़ते हुए पुस्तकीय ज्ञान की ओर दिलाया। उन्होंने व्यवसायिक शिक्षा की मांग पर जोर दिया। शिक्षा के क्षेत्र में भारतीयों को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। आयोग के कुछ कार्य संतोषजनक भी थे उन्होंने अंग्रेजी के साथ पक्षपात किया और भारतीय भाषाओं की अवहेलना की। इस आयोग के द्वारा प्रशिक्षण व विद्यालयों व व्यवसायिक शिक्षा पर अमल न हो सका। इसी प्रकार गैर सरकारी स्कूलों में शुल्क कम किए जाने का सुझाव भी गलत सिद्ध हुआ तथा शिक्षण संस्थाओं को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी।