हड़प्पा सभ्यता नगर योजना – 1922 ईस्वी के पूर्व यही माना जाता रहा कि आर्य सभ्यता ही भारत की प्राचीनतम सभ्यता थी। मगर 1921 में हड़प्पा की खुदाई बाबू दयाराम साहनी और 1922-23 में डॉक्टर आर डी बनर्जी की देखरेख में मोहनजोदड़ो पाकिस्तान में खनन कार्य शुरू हुआ और तब एक आर्यपूर्व सभ्यता प्रकाश में आई। क्योंकि इतिहास में हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक अवशेष सिंधु घाटी नदी से प्राप्त हुई है।
अतः इसे सिंधु घाटी की सभ्यता का नाम दिया गया। परंतु जब बाद में देश के अन्य भागों लोथल, कालीबंगा, रोपण, बनवाली, आलमगीरपुर आदि स्थानों से इस सभ्यता के अवशेष मिले तो विद्वानों ने इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया।

हड़प्पा सभ्यता नगर योजना
हड़प्पा सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता यहां की नगर योजना थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इसके प्रमुख नगर थे। नगर मुख्य रूप से दो भागों में बटे थे। पश्चिम की ओर ऊंचा दुर्ग था और पूर्व की ओर नगर का निचला हिस्सा था। नगरों में सड़कें व मकान विधिवत बनाए गए थे। हड़प्पा के उत्खननों से पता चलता है कि यह नगर तीन मील के घेरे में बसा हुआ था। सिंधु घाटी सभ्यता का हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, सुत्कागेन-डोर एवं सुरकोटदा आदि की “नगर निर्माण योजना” में मुख्य रूप से समानता मिलती है।
- भवन
- सड़के
- नालियां
- जल वितरण
- कूड़ेदान
भवन
भवन प्रायः पक्की ईंटों के बने हुए थे। भवन संभवतः एक से अधिक मंजिलों के रहे होंगे। यह सड़क के किनारों पर बने थे तथा प्रवेश गलियों से होता था।
सड़कें
यहां की सड़कें लगभग 33 फुट तक चौड़ी थी। सभी सड़कें पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। नगरों में सड़कों पर रात को रोशनी की भी व्यवस्था की गई थी, संभवत: मसाले जलाई जाती थी। सड़कों का विन्यास ही ऐसा था कि हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे। आप हड़प्पा सभ्यता नगर योजना Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
नालियां
गंदे पानी के निकास हेतु भावनाओं की ऊपर की मंजिलों में पाइपों का प्रयोग किया जाता था। गलियों की छोटी-छोटी नालियां 1 फुट चौड़ी व दो फुट गहरी थी। यह नालियां पानी को मुख्य सड़कों के किनारे बनी बड़ी नालियों में ले जाती थी तथा यह बड़ी नालियां पानी को नगर से बाहर नालों में ले जाती थी। नालियों को ऊपर ईंटों से इस प्रकार ढका भी जाता था। ताकि सफाई हेतु ईटों को सरलता से उठाया जा सके।

जल वितरण
मोहनजोदड़ो के निवासियों ने जल वितरण का अति उत्तम ढंग अपनाया था। यहां अत्यधिक संख्या में हुए पाए गए हैं। कुछ घरों में अपने हुए थे तथा कई हुए सार्वजनिक थे। लगभग सभी नगरों के छोटे या बड़े मकानों में प्रांगण व स्नानागार थे। कालीबंगा के प्रत्येक घरों में अपने-अपने कुएं थे।
कूड़ेदान
उस समय नगरों में सफाई की विशेष व्यवस्था रही होगी, यह जगह जगह पर बने कूड़ेदानों से पता चलता है।