स्मृति स्तर शिक्षण के गुण 6 दोष व 8 सुझाव

स्मृति स्तर शिक्षण की क्रियायें इस प्रकार की परिस्थितियों की रचना करती हैं जिससे छात्र पढ़ी हुई पाठ्य वस्तु को कण्ठस्थ कर सकें या रट सकें। विषय-वस्तु जितनी सार्थक होती है रटना उतना ही आसान होता है। कण्ठस्थ करने का बुद्धि से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं पाया जाता है अतः स्मृति स्तर शिक्षण के परिणामों का बुद्धि से सहसम्बन्ध नहीं होता है, परन्तु इस स्तर के शिक्षण से बौद्धिक व्यवहार के विकास को बल मिलता है।

स्मृति स्तर शिक्षण

स्मृति स्तर शिक्षण पर तथ्यों के प्रस्तुतीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मानसिक शक्तियों व बौद्धिक विकास की दृष्टि से स्मृति स्तर शिक्षण निम्न स्तर का माना जाता है क्योंकि इसमें शिक्षण-अधिगम की क्रिया केवल स्मृति के सहारे रहती है। इस स्तर के बारे में अपने विचार मौरिस एल. बिग्गी ने इस प्रकार प्रकट किये हैं।

इस शिक्षण स्तर में प्रस्तुत तथ्य सामग्री को रट लेने के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता।

मौरिस एल. बिग्गी

“The type of act which supposedly embraces committing factual materials to memory and nothing else.”

Morris L. Biggie

स्मृति स्तर शिक्षण पर निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का पूरा प्रभाव देखा जा सकता है-

  1. मानसिक अनुशासन से स्मृति स्तर शिक्षण काफी प्रभावित होता है, क्योंकि इस शिक्षण में स्मरण शक्ति के प्रयोग एवं विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता है।
  2. स्मृति स्तर शिक्षण को हरबर्ट का संचित ज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्त भी बहुत प्रभावित करता है क्योंकि ज्ञान के संचय एवं भण्डारण को इस शिक्षण स्तर का प्रमुख कार्य माना जाता है।
  3. स्मृति स्तर शिक्षण पर थार्नडाइक के संयोजनवाद का प्रभाव शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच उचित सम्बन्ध स्थापित किये जाने से समझा जा सकता है। इस कार्य को स्मृति का माध्यम बनाया जाता है।
  4. अनुबन्धन सिद्धान्त का प्रभाव उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच साहचर्य एवं संयोजन सिद्धान्त के रूप में दिखाई देता है।

स्मृति स्तर पर प्रयुक्त शिक्षण विधियाँ

स्मृति स्तर के शिक्षण में प्रयोग होने वाली शिक्षण विधियाँ शिक्षक तथा विषय को ध्यान में रखकर प्रयुक्त की जाती हैं. इस प्रकार की विधियों में व्याख्यान विधि (Lecture Method) संश्लेषण विधि (Synthetic method), निगमन विधि ( Deductive method) को शामिल किया जा सकता है।

स्मृति स्तर शिक्षण के गुण

स्मृति स्तर के शिक्षण में निम्नलिखित गुण सम्मिलित हैं-

  1. इस स्तर का शिक्षण छोटी कक्षा तथा छोटे बच्चों के लिये अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि छोटी आयु में मानसिक शक्तियाँ अधिक विकसित नहीं होती हैं।
  2. विद्यालयी पाठ्यक्रम में बहुत सारी विषय-वस्तु ऐसी होती हैं, जिनको रटना आवश्यक होता है जैसे- गणित के नियम, रासायनिक सूत्र, शरीर रचना से सम्बन्धित तथ्य, गणना नियम, ऐतिहासिक घटनाक्रम, समय चक्र इत्यादि ।
  3. स्मृति स्तर शिक्षण बोध एवं चिंतन स्तर के शिक्षण के लिये आधार तैयार करता है। स्मृति स्तर के शिक्षण में तथ्यों, नियमों एवं सिद्धान्तों के ज्ञान को स्मृति में एकत्र किया जाता है जो बोध तथा चिन्तन स्तर पर अधिगम के आधार का कार्य करता है।
  4. स्मृति स्तर पर शिक्षण करते समय शिक्षक को पर्याप्त स्वतन्त्रता प्राप्त रहती है।
  5. किसी भी विषय के क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित ज्ञान को कम से कम समय में अधिक से अधिक छात्रों तक पहुँचाने के लिये स्मृति शिक्षण अत्यन्त उपयोगी है।

स्मृति स्तर शिक्षण के दोष

स्मृति स्तर शिक्षण में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-

  1. यह शिक्षण स्तर छात्रों की मानसिक शक्तियों एवं बौद्धिक विचार प्रक्रिया को विकसित करने में कोई सहायता नहीं करता।
  2. रटकर प्राप्त किया गया ज्ञान व्यावहारिक जीवन में प्रायः निरर्थक ही सिद्ध होता है।
  3. बहुत अधिक मात्रा में तथ्यों/ज्ञान को कण्ठस्थ करके रखना संभव नहीं हो पाता है।
  4. स्मृति स्तर शिक्षण में अन्तः प्रक्रिया को कोई स्थान नहीं मिलता जिसके कारण छात्रों के व्यक्तित्व का सही विकास मुश्किल होता है।
  5. अभिप्रेरणा का स्रोत सदैव बाह्य होता है इसलिये छात्रों में ज्ञान के प्रति आवश्यक ज्ञा नहीं उत्पन्न हो पाती है।
  6. इस स्तर के शिक्षण में पूरी शिक्षण प्रक्रिया के संगठन व क्रियान्वयन की जिम्मेदारी शिक्षक पर होती है तथा छात्र निष्क्रिय रहते है। इसमें शिक्षक को अत्यधिक शक्ति लगानी पड़ती है तथा छात्र कई बार अनुशासनहीनता करते हैं या कक्षा में अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं।
शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
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जनसंचारश्यामपट

स्मृति स्तर शिक्षण के लिये सुझाव

स्मृति स्तर शिक्षण को अधिक उपयोगी एवं प्रभाव युक्त बनाने के लिये निम्नलिखित सुझावों का पालन किया जा सकता है-

  1. प्रत्यास्मरण तथा प्रस्तुतीकरण के लिये अभ्यास की मात्रा अधिक होनी चाहिये।
  2. पाठ्यवस्तु सार्थक व जीवनोपयोगी होनी चाहिये।
  3. थकान के समय शिक्षण कार्य नहीं किया जाना चाहिये।
  4. पाठ्यवस्तु को सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना चाहिये।
  5. पुनरावृत्ति एक निश्चित लय में होनी चाहिये साथ ही साथ अभ्यास के लिये भरपूर समय मिलना चाहिये।
  6. सुनिश्चित पुनर्बलन प्रणाली का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  7. ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये ही इस स्तर के शिक्षण का प्रयोग करना चाहिये।
  8. शिक्षण करते समय पाठ्यवस्तु को समग्र रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
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