स्त्री शिक्षा आज के युग में समाज में सुधार की ओर तीव्र गति से बढ़ रही है। उनकी हर तरह की पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। आज की नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से पीछे नहीं है। स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन का श्रेय स्त्री शिक्षा के प्रसार तथा प्रचार को है। उन्हें समाज में उचित स्थान देना चाहिए।
भ्रूण परीक्षण द्वारा कुछ लोग पहले ही बालक होने के प्रति आश्वस्त होना चाहते हैं। भारत में भ्रूण हत्या और उनका परीक्षण स्त्री को जन्म से ही वंचित कर देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास के कारण इस पाप को करने से लोग हिचकी चाहते नहीं हैं। आज भी कुछ लोग जन्म के बाद बालक बालिका में भेदभाव की भावना रखते हैं, जो स्त्रियों के विकास को अवरुद्ध करती हैं।
स्त्री शिक्षा
शैक्षिक अवसरों की समानता में लिंग की समानता भी अति आवश्यक है, जिसका मुख्य उद्देश्य है स्त्री या पुरुष में उनके अधिकारों के प्रति कोई भेदभाव ना होना। हमारे देश में प्राचीन और मध्य युग में स्त्रियों की शिक्षा की दशा बहुत ही दयनीय व सोचनीय थी। इनके प्रगतिशील विकास हेतु हमें मिलजुल कर सोचना होगा। स्त्री शिक्षा हेतु बहुत ही कम प्रयास किए गए, जिनके कारण उनका विकास हो पाना असंभव था।
कुछ लोग जन्म के बाद बालक बालिका में भेद करते हैं भारतीय नारी की स्थिति दूसरों पर दासत्व निर्भरता की है। पुरुषों के समान ही स्त्रियों की शिक्षा भी आवश्यक है।
मुझे 100 शिक्षित पुरुषों की अपेक्षा 10 शिक्षित स्त्रियों की आवश्यकता है, जिससे संपूर्ण राष्ट्र शिक्षित होगा।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार

स्त्री शिक्षा का महत्व
कोई देश हो या राज्य हो प्रत्येक में आधे पुरुष तथा आधी स्त्रियां होती हैं। शिक्षित स्त्रियां ही शिक्षित समाज का निर्माण करती हैं। पुरुषों के साथ साथ महिलाओं को भी शिक्षा में अब पहले से ज्यादा स्थान दिया जाने लगा है। एक स्त्री शिक्षित होती है तो वह अपनी शिक्षा का उपयोग समाज और परिवार के हित के लिए करती है। एक शिक्षित स्त्री के कारण देश कि आर्थिक स्थिति और घरेलु उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। एक शिक्षित नारी घरेलु हिंसा और अन्य अत्याचारों से सक्षमता से निजाद पा सकती है।
यदि आप मुझे सौ आदर्श माताएं दे तो मैं आप को एक आदर्श राष्ट्र दूंगा।
रूसो
अथ शिक्षा प्रवश्यम:मातृमान पित्रमानाचार्यवान पुरुषो वेद:
स्त्री शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम
स्त्री शिक्षा हेतु पाठ्यक्रम कैसा होना चाहिए? इस बात पर अनेक शिक्षा शास्त्रियों के निम्न मत प्राप्त हुए हैं-
- स्त्री शिक्षा का मुख्य उद्देश्य स्त्रियों को योग्य ग्रहणी योग्य माता, योग्य पत्नी और समाज में एक योग्य नारी बनाना है।
- भारतीय संविधान में स्त्रियों को पुरुषों के समान सम्मान व ऐश्वर्य व अधिकार प्राप्त हैं, आज आधुनिक समाज में स्त्री को पुरुष के बराबर दर्जा देते हुए सह शिक्षा का निर्माण किया गया है।
- स्त्री शिक्षा हेतु विशिष्ट पाठ्यक्रम में गृह विज्ञान, ग्रह अर्थशास्त्र, गृह प्रबंध जैसे विषय तथा ललित कलाएं रखी जानी चाहिए।
- कोठारी आयोग द्वारा हाईस्कूल स्तर पर गृह विज्ञान संबंधी विषयों के माध्यम से गृह व्यवस्था जानना आवश्यक है।
- उच्च शिक्षा के अंतर्गत पत्राचार शिक्षण व्यवस्था तथा सेवा कालीन शिक्षा व्यवस्था का निर्धारण किया गया है।
- आज स्त्रियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जा रही है जिससे वे अपना जीविकोपार्जन स्वयं कर सके तथा समाज में अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें।

स्त्री शिक्षा के उद्देश्य
स्त्री शिक्षा के उद्देश्य निम्न हो सकते है-
- धार्मिक भावनाओं का प्रचार करके स्त्री बालकों का नैतिक आचरण सुधारती है। वह दया की देवी है, क्षमाशीलता उसका धर्म है, वह सहिष्णु, उदार और सहकारी है।
- स्त्रियों का सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास करना अति आवश्यक है स्त्रियों के व्यक्तित्व विकास में आने वाली कठिनाइयों का सरकार द्वारा निराकरण करना चाहिए।
- माता-पिता को बचपन से ही लाजशीलता, विनम्रता तथा एकता की भावना का विकास करना चाहिए तथा सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक सामाजिक विकास करने के लिए उपयोगी शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए और माध्यमिक स्तर पर अलग महिला विद्यालयों का निर्माण करना चाहिए।
- आधुनिक महिलाएं/छात्राओं को पुरुषों के समान विकास की सुविधाएं और अवसर देकर प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व का शिक्षण देना चाहिए। जिससे वे योग्य चिकित्सक योग्य अभियंता योग्य अध्यापक और समाज सुधारक बनकर राष्ट्र की सेवा कर सके।
- स्त्रियां भी आज पुरुषों के समान जीविका चलाने में समर्थ है अतः इन्हें भी व्यावसायिक शिक्षा देना आवश्यक है।

भारत में स्त्री शिक्षा हेतु किए गए प्रयास
भारत में स्त्रियों की शिक्षा हेतु अनेक समितियों आयोगों द्वारा कई प्रयास किए गए। जिनके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-
- राधाकृष्णन आयोग
- राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति
- कोठारी आयोग
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति
- महिला सामाख्या
- प्रोफेसर राममूर्ति समिति
राधाकृष्णन आयोग
- शिक्षित स्त्रियों के बिना शिक्षित व्यक्ति नहीं हो सकते।
- स्त्रियों के लिए शिक्षा सुविधाओं का विस्तार किया जाए।
- ऐसा पाठ्यक्रम बनाया जाए जो बालिकाओं को समाज में उच्च व सम्मान दिला सके।
- नारियों को व्यावसायिक शिक्षा देना भी आवश्यक है।
राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति
- इस समिति को दुर्गाबाई देशमुख समिति कहकर भी पुकारा जाता है।
- भारत सरकार को प्रत्येक राज्य में स्त्री शिक्षा के विकास हेतु विद्यालयों तथा सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।
- स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु राज्यों में लड़कियों तथा महिलाओं की शिक्षा की राज्य परिषद में गठित की जानी चाहिए।
कोठारी आयोग
- इंटरमीडिएट स्तर पर लड़कियों हेतु अलग विद्यालय खोले जाएं।
- लड़कियों के लिए अल्पकालीन तथा व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
- नारी शिक्षा के लिए अनुसंधान इकाइयों की स्थापना की जाए।
- बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा हेतु अधिकाधिक प्रयत्न किए जाएं।
- स्त्री शिक्षा के मार्ग में आने वाली समस्त कठिनाइयों को समाप्त करने हेतु राज्य व केंद्र सरकारों को मिलकर निर्णय लेना चाहिए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति
- स्त्रियों की प्राथमिक शिक्षा के मार्ग में आने वाली समस्याओं का निराकरण करने का उचित प्रबंध करना चाहिए।
- लिंग भेद जैसे उत्पन्न हो रहे विषयों को जड़ से समाप्त करना चाहिए।
- स्त्रियों के विकास हेतु विभिन्न कला कौशलों से संपन्न संस्थानों का उद्घाटन करना चाहिए।
- विभिन्न पाठ्यक्रमों में स्त्री शिक्षा के महत्व अध्ययन हेतु पाठ्य सामग्री को सम्मिलित करना चाहिए।
महिला समाख्या
- महिला समाख्या का अर्थ है शिक्षा द्वारा महिलाओं को समानता देना।
- यह कार्यक्रम 8 राज्यों के 51 जिलों में चलाया जा रहा है।
- स्त्री शिक्षा के विकास हेतु 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम तथा 1952 में बना विशेष विवाह अधिनियम प्रमुख है।
- सन 1983 में आपराधिक दंड संहिता अधिनियम तथा महिला का अश्लील प्रस्तुतीकरण विरोध अधिनियम 1986 में बनाया गया।
प्रो• राममूर्ति समिति
- विद्यालयों में पोषण स्वास्थ्य तथा बाल विकास का समावेश किया जाए।
- स्त्रियों की शिक्षा हेतु अलग धन की व्यवस्था करनी चाहिए।
- छात्रवृत्ति और तथा मुक्त पाठ्य पुस्तकों का वितरण करना चाहिए।
- विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में अधिकाधिक अध्यापकों की नियुक्ति करनी चाहिए।