सृजनात्मकता मानवीय क्रियाकलाप की वह प्रक्रिया है जिसमे गुणगत रूप से नूतन भौतिक तथा आत्मिक मूल्यों का निर्माण किया जाता है। प्रकृति प्रदत्त भौतिक सामग्री में से तथा वस्तुगत जगत की नियमसंगतियों के संज्ञान के आधार पर समाज की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले नये यथार्थ का निर्माण करने की मानव क्षमता ही सृजनात्मकता है, जिसकी उत्पत्ति श्रम की प्रक्रिया में हुई हो। सृजनात्मकता निर्माणशील क्रियाकलाप के स्वरूप से निर्धारित होते हैं।
सृजनात्मकता
सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को व्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।
क्रो एंड क्रो
जब किसी कार्य का परिणाम नवीन हो जो किसी समय में समूह द्वारा उपयोगी मानने हो वह कार्य सृजनात्मकता कहलाता है।
स्टेन
सृजनात्मकता मुख्यता नवीन रचना या उत्पादन में होती है।
जेम्स ड्रैवर
सृजनात्मकता मौलिकता वास्तव में किसी प्रकार की क्रिया में घटित होती है।
रूच के अनुसार
सृजनात्मकता एक मौलिक उत्पादन के रूप में मानव मन की ग्रहण करके अभिव्यक्त करने और गुणा करने की योग्यता एवं क्रिया है।
कोल एंड ब्रूस

सृजनात्मकता के प्रकार
सृजनात्मकता मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।
- शाब्दिक सृजनात्मकता
- अशाब्दिक सृजनात्मकता
सृजनात्मकता के परीक्षण
सृजनात्मकता की पहचान के लिए गिलफोर्ड ने अनेक परीक्षणों का निर्माण किया है। यह परीक्षण निरंतरता लोचनियता, मौलिकता तथा विस्तार का मापन करते हैं। सृजनात्मकता के परीक्षण इस प्रकार हैं
- चित्रपूर्ति परीक्षण- इसमें अपूर्ण चित्रों को पूरा करना होता है।
- वृत्त परीक्षण – इस परीक्षण में वृत्त में चित्र बनाए जाते हैं।
- टिन के डिब्बे – खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सृजन कराया जाता है।
सृजनात्मकता के तत्व
गिलफोर्ड के अनुसार सृजनात्मकता के तत्व इस प्रकार हैं
- तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता
- समस्या की पुनरव्याख्या
- सामंजस्य
- अन्यों के विचारों में परिवर्तन
सृजनात्मकता की विशेषताएं
- इसमें नवीन उत्पाद होता है।
- यह मौलिक उत्पादन के मूल्यांकन की योग्यता है।
- यह लक्ष्य निर्देशित होता है।
- सर्जनात्मकता में अपूर्वता पाई जाती है।
- सृजनात्मकता में मौलिकता तथा नवीनता पाई जाती है।
- इस प्रक्रिया में सूचनाओं को एकत्र किया जाता है।

सृजनात्मकता की अवस्थाएं
सृजनात्मकता विकास की निम्न पांच अवस्थाएं होती हैं।
- तैयारी की अवस्था
- उद्भावना
- उद्भाषण
- मूल्यांकन
- पुनरावर्तन
सृजनात्मकता के सिद्धांत
सृजनात्मकता के सिद्धांत निम्नलिखित हैं –
- मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत
- साहचर्यआत्मक सिद्धांत
- प्रक्रिया सिद्धांत
- स्थानांतरण सिद्धांत
- प्रतिभा का सिद्धांत
- प्रक्रिया सिद्धांत
- अभीप्रेरणात्मक सिद्धांत
- संज्ञानात्मक सिद्धांत
- स्वतंत्रता सिद्धांत
मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत
फ्राइड एवं जुम्मने यह धारणा दी है। यह दमित अचेतन ही इच्छाओं की सृजनशीलता का निर्धारण करता है।
साहचर्यआत्मक सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार सृजनात्मक चिंतन के अंतर्गत साहचर्य आत्मक तत्वों के नए संयुक्तयों के तत्व जितने ही अधिक परस्पर दूरस्थ होंगे प्रक्रिया उतनी ही संरचनात्मक होगी।

प्रक्रिया सिद्धांत
रीसमैन ने सृजनात्मक प्रक्रिया के छह आवश्यक सोपान बताए हैं
- कठिनाई का निरीक्षण
- समस्त उपलब्ध सूचनाओं का सर्वेक्षण
- आवश्यकता का विश्लेषण
- वस्तुनिष्ठ समाधानो की रचना
- समाधानो का आलोचनात्मक विश्लेषण
- नवीन विचार का जन्म
स्थानांतरण सिद्धांत
बहुत से मनोवैज्ञानिकों का विश्वास है कि सृजनात्मक रतिया ही समस्या का समाधान है तथा वैज्ञानिक अभियंता आदि वातावरण में समस्याएं खोजते हैं। सृजनात्मक चिंतन और समस्या समाधान होने पर समस्या समाधान के लिए रचनात्मक चिंतन को तथा सर्जनात्मक चिंतन के द्वारा समस्या समाधान को समझा जा सकता है। यह समानता सोचने में सहायक होती है कि प्रत्येक समाधान में कुछ ना कुछ रचनात्मकता पाई जाती है।
प्रतिभा का सिद्धांत
इसलिए मैंने बुद्ध को सृजनात्मक चिंतन का आधार माना है जिसे उन्होंने जी घटक कहा है। जो समस्त योग्यताओं का सार है। इस प्रकार सृजनात्मक चिंतन का सिद्धांत इन्हीं के बुद्धि के सिद्धांत से संबंधित है। इसके अनुसार जिस व्यक्ति का जितना अधिक संपर्क कार्य के पूर्व और अचेतन पक्ष में होगा वह उतना ही अधिक सृजनशील होगा।
अभीप्रेरणात्मक सिद्धांत
सृजनशील व्यक्ति किसी समस्या के समाधान के लिए प्रेरित होता है। रोजर्स के अनुसार यदि मनुष्य की सृजनात्मक प्रवृत्ति में अभिप्रेरणा विद्वान हो तो स्वयं को प्रत्यक्षीकरण करने का प्रयास करेगा। वह अपने विभवता का अनुभव करेगा तथा उच्च निष्पत्ति को प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
संज्ञानात्मक सिद्धांत
इस सिद्धांत के अंतर्गत यह देखा जाता है कि सृजनशील व्यक्ति किस प्रकार वस्तुओं एवं घटनाओं का प्रत्यक्षीकरण एवं चिंतन करता है।
स्वतंत्रता सिद्धांत
इससे दांत का दृष्टिकोण है कि बालकों को उनकी सृजनात्मकता की सुरक्षा हेतु अध्यापकों तथा अभिभावकों को सहायता करनी चाहिए। इसलिए बालकों को प्रारंभिक प्रयासों में ऋण आत्मक मूल्यांकन के परिणामों से अवगत नहीं कराना चाहिए।