सूचना सम्प्रेषण तकनीकी सूचनाओं के एकत्रीकरण एवं सम्प्रेषण की कहानी उतनी ही पुरानी है जितनी कि हमारी सभ्यता एवं संस्कृति। जब कोई यान्त्रिक साधन उपलब्ध नहीं थे, उस समय भी सूचनाओं का एकत्रीकरण, संग्रह तथा स्थानान्तरण होता था। समस्त ज्ञान कंठस्थीकरण के माध्यम से स्मृति रूप में मस्तिष्क में संजोया जाता था और मौखिक रूप से इसका हस्तांतरण किया जाता था।
मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ ज्ञान का क्षेत्र असीमित होता चला गया। जनसंख्या वृद्धि एवं वैयक्तिक भिन्नता के कारण सम्प्रेषण का कार्य अपने आप में एक समस्या बन गया। लेखन कला के प्रयोग को इस दिशा में प्रथम महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी
आधुनिक मानव औद्योगिक क्रान्ति के बाद सूचना क्रान्ति में प्रवेश कर चुका है। आजकल सूचना क्रान्ति ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। इस सूचना क्रान्ति ने भविष्य में अनेक चुनौतियों अवसरों एवं प्रतिस्पर्धाओं का सृजन किया है, जिनके साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का अध्ययन अनिवार्य हो गया है। संचार प्रौद्योगिकी को कम्प्यूटर के नि नये विकास ने और प्रभावी बना दिया है और विस्तृत आयाम प्रदान किया है।
वे तथ्यात्मक वस्तु हैं जिनका उपयोग विवेचना करने, निर्णय लेने, गणना करने तथा मापन में किया जाता है। ये प्रदत्त आंकिक रूप में, वर्णमाला के रूप में अथवा विशेष संकेतों के रूप में हो सकते हैं। सूचना की व्युत्पत्ति प्रदत्त से होती है। प्रायः ऐसा कहा जाता है कि प्रदत्त एक प्रकार की मूल सामग्री है जिनसे सूचनाओं की उत्पत्ति होती है। जैसा कि ऊपर कहा गया है मूल रूप से प्रदत्तों में स्वयं अपना कोई अर्थ नहीं होता. अतः उन्हें अपूर्ण माना जाता है। अतः प्रदत्तों की प्रोसेसिंग करके उनकी विवेचना की जाती है ताकि उनमें निहित सामान्य अर्थ को समझा जा सके। इस विवेचित प्रदत्त को सूचना कहते हैं।
किन्तु इसके विपरीत यह भी सत्य है कि सूचनाएँ ही ‘मूल सामग्री के रूप में कार्य करती हैं और उन्हें भविष्यगत प्रदत्तों में परिवर्तित एवं स्थायी कर दिया जाता है। अतः वास्तविक रूप से इन दो पदों ‘प्रदत्त’ एवं ‘सूचना’ को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। वास्तव में सूचनाओं की व्युत्पत्ति किसी सम्बन्धित प्रदत्तों के आधार पर की जाती है। उदाहरण- हम एक कार्यालय में कार्यरत व्यक्तियों के नाम, आयु, शिक्षा, लिंग, पद, नियुक्ति की तारीख एवं अवधि आदि प्रदत्तों को संकलित करते हैं तथा उन प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर सम्पूर्ण कार्यालय की सामान्य रूप-रेखा का परिचय प्राप्त करते हैं।



सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के घटक
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के मुख्य रूप से तीन घटक हैं-
- सूचनाओं का संग्रहण
- सूचनाओं का सम्प्रेषण / हस्तांतरण
- सूचनाओं की ‘प्रोसेसिंग एवं पुनरुत्पादन
- सूचनाओं का संग्रहण- इस हेतु मुद्रण क्रान्ति के रूप में उभर कर आती है। आज विश्वभर में समस्त सूचनाएँ किताबों / सिनेमा/कम्प्यूटर आदि में संगृहीत हैं। जिन्हें हम सरलता से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करते रहते हैं। यहाँ यह बात समझने वाली है कि इस कार्य के बिना सूचनाओं का सम्प्रेषण सम्भव नहीं, क्योंकि मौखिक रूप से सूचना हस्तांतरण में अधिकांश सूचनाएँ विस्मृत हो जाती हैं और उनका भाग नष्ट होता जाता है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि यदि हम किताबों को हटा दें और मौखिक ज्ञान प्रदान करें तो ज्ञान का अधिकांश भाग तो नष्ट हो जायेगा और ग्राही तक नहीं पहुँच पायेगा। ICT की नवीनतम तकनीकों के कारण अब किताबों के साथ-साथ कम्प्यूटर, सिनेमा आदि अनेकों ऐसे उदाहरण – हमारे पास हैं जो हमें ज्ञान (सूचना) को संगृहीत करने में मदद करते हैं।
- सूचनाओं का सम्प्रेषण / हस्तांतरण – ICT का दूसरा घटक सूचनाओं का सम्प्रेषण है। इसके लिए नवीनतम तकनीकों माइक, लाउडस्पीकर, सिनेमा, LCD, LED, Video Display आदि का प्रयोग किया जाता है। यह नवीनतम तकनीकें ही हैं जो एक साथ हजारों / लाखों लोगों तक सूचना पहुँचा सकती हैं। उपग्रह की सहायता से एक देश की सूचना सुदूर दूसरे देश तक पहुँच जाती है।”
उपग्रह द्वारा सम्प्रेषण- सैटेलाइट की मदद से दूरवर्ती शिक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित होता है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक दूरदर्शन भी विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ सम्प्रेषिण करता है। आज की तकनीकों की सहायता से त्वरित सूचनाएँ पहुँचाना सम्भव है। इसके कारण विश्व एक कुटुम्ब की भाँति होता जा रहा है।
- सूचना की प्रोसेसिंग / पुनरुत्पादन करना-ICT का तीसरा एवं महत्त्वपूर्ण घटक संगृहीत सूचनाओं की पोसेसिंग करना भी है जिससे नवीन अनुसंधानों को दिशा मिलती है। इस कार्य में नवीनतम तकनीकें, जैसे- कम्प्यूटर अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रो. पीटर्स (Peters) ने कहा है कि सूचना तकनीकी ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्ति प्रदान करने की एक नवीन तथा उभरती हुई विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली एक शैक्षिक प्रक्रिया है जिसमें समय और स्थान के आयामों का शिक्षण एवं अधिगम में कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस तकनीकी के माध्यम से दूरस्थ छात्रों को भी उत्तम गति से शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के लक्ष्य
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में निम्नलिखित लक्ष्य हैं-
- शिक्षा एवं अनुसंधान जनित विषय सामग्री का अधिकाधिक संचार करना, हस्तांतरण करना एवं समाज के प्रत्येक मानव तक प्रभावी ढंग से पहुँचाना।
- वर्तमान पीढ़ी को प्रभावी ‘साइबर शिक्षा एज में भली-भाँति प्रतिस्थापित करना। जिससे छात्र अपने कम्प्यूटर्स पर ऑन लाइन शिक्षा प्राप्त कर सकें।
- राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे इसरो, एन. सी. ई. आर. टी. तथा IGNOU आदि के शैक्षिक कार्यक्रमों का जनसंचार करना ।
- पारम्परिक पुस्तकालयों के स्थान पर डिजीटल पुस्तकालयों की नींव रखना ।
- सूचनाओं का मूल्य पहचानकर उन्हें जन-संसाधन के लिये उपयोगी बनाना ।
- राष्ट्र के आर्थिक विकास में सहायता देना, जैसे- ई-कॉमर्स, ई-मेल, ई-इन्क. ए. टी. एम. तथा क्रेडिट कार्ड आदि को अधिकाधिक प्रचलित करके आर्थिक नींव मजबूत करना ।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य संसाधनों में उन्नति एवं विकास करना है जैसे-स्कैनिंग, सी. टी. स्कैनिंग, पेसमेकर, अल्ट्रासाउण्ड आदि उपयोगी उपकरणों का निर्माण एवं प्रयोग करके राष्ट्र के तकनीकी विकास में सहायता देना।
- राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी पहचान को सुदृढ़ बनाने में सहायता देना।
- रक्षा विभाग की अनुसन्धान इकाई को समुचित सहायता प्रदान करना ।
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की आवश्यकता एवं महत्त्व
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की प्रमुख आवश्यकताओं एवं उसके महत्त्व सम्बन्धी बिन्दु निम्नवत् हैं-
- दिनों-दिन शिक्षा की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए तथा छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सूचना-सम्प्रेषण तकनीकी का अत्यधिक महत्त्व है।
- सूचना सम्प्रेषण तकनीकी छात्रों की योग्यतानुसार पाठ्य सामग्री को बोधगम्य बनाने का एक अच्छा उपकरण है।
- सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का व्यापक प्रयोग शिक्षा अधिगम प्रक्रिया को सरल, सुबोध एवं सुगम बनाने में किया जाता है।
- सूचना सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षा के सभी माध्यमों में प्रमुख भूमिका का निर्वाह करती है। जैसे- औपचारिक, अनौपचारिक तथा निरौपचारिक सभी प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में इसका केन्द्रीय महत्त्व है।
- ICT ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र को सर्वाधिक सशक्त किया है।
- सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का बहुधा प्रयोग सभी प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षणों में एक लोकप्रिय साधन के रूप में किया जा रहा है, जो कि इसके महत्त्व की परिचायक है।
- ICT, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को रोचक बनाती है तथा छात्रों को अभिप्रेरणा प्रदान करती है।
- इसके द्वारा छात्रों के अधिगम को स्थायी बनाने में मदद मिलती है।
- ICT का महत्त्व जनसाधारण को सामान्य शिक्षा प्रदान करने में अत्यधिक है।
- यह छात्रों के ध्यान के केन्द्रीकरण में भी उपयोगी है।
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का शिक्षा में प्रयोग
शैक्षिक प्रयोगों को निम्न भागों में देखा जा सकता है-
- शिक्षण में विभिन्न उपकरणों के रूप में इसका प्रयोग होता है; जैसे- कम्प्यूटर, OHP, प्रोजेक्टर, सिनेमा आदि ।
- संसाधनों की सहभागिता में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग।
- शिक्षकों की व्यावसायिक प्रगति में प्रयोग। इसकी सहायता से पत्राचार, रिफ्रेशर कोर्सेस आदि को प्रभावी बनाया जा सकता है।
- शिक्षा को जन-सामान्य तक पहुँचाने में सूचना सम्प्रेषण की विभिन्न तकनीकें अत्यन्त मददगार सिद्ध होती है।.
- शैक्षिक विकास एवं अनुसंधानों में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। कम्प्यूटर की सहायता से हम शिक्षा एवं विभिन्न क्षेत्रों के अनुसन्धानों को संगृहीत करके भी रख सकते हैं और नवीनतम खोजों में मदद कर सकते हैं।
- आभासी विश्वविद्यालय की स्थापना में सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का प्रभाव महत्त्वपूर्ण होता है। यह विश्वविद्यालय तो पूरी तरह से नवीनतम तकनीकों कम्प्यूटर, इण्टरनेट, ई-मेल आदि पर निर्भर है। अतः दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के बिना इनकी संकल्पना भी सम्भव नहीं।
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की प्रकृति
संचार प्रौद्योगिकी जैसा इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह समग्र ‘सूचनाओं को प्रभावित करने वाली प्रक्रिया है। सूचना सम्प्रेषण तकनीकी प्रारूपिक रूप में सूचनाओं का संकलन, प्रोसेसिंग एवं सम्प्रेषण सम्बन्धी सभी कार्य करती है। इस आधार पर इसकी प्रकृति तार्किक एवं क्रमबद्ध प्रतीत होती है। वास्तव में यह तकनीकी सम्पूर्णता के साथ सूचनाओं के संचार को क्रियान्वित करती है अतः यह समग्र प्रकृति की भी है।
यह आधुनिक युग में दुर्लभ वरदान बनकर उभरी है तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है। संक्षेप में इसने शिक्षा, वाणिज्य, चिकित्सा, अभियांत्रिकी एवं युद्ध आदि सभी क्षेत्रों में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है। भारत सरकार ने वर्ष 2008-2009 में राष्ट्रीय शिक्षा मिशन सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के अन्तर्गत 502 करोड़ रुपये का आबंटन किया है, जो कि प्रत्येक वर्ष के साथ बढ़ता जा रहा है।



सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की प्रक्रिया
सूचना सम्प्रेषण तकनीकी की प्रक्रिया को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
- सम्प्रेषण स्रोत – सम्प्रेषण प्रक्रिया का स्रोत उस व्यक्ति को माना जाता है जिसके द्वारा विचारों तथा भावों के आदान-प्रदान का प्रारम्भ किया जाता है। जब तक कोई व्यक्ति अपने विचारों या भावों को किसी व्यक्ति को प्रेषित करने के लिए तैयार नहीं होता तब तक सम्प्रेषण प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकती। अतः सोत सम्प्रेषण प्रक्रिया का वह प्रारम्भिक बिन्दु है जिसके द्वारा विचारों व भावों को दूसरे व्यक्ति या व्यक्ति समूहों तक पहुँचाया जाता है।
- सम्प्रेषण सामग्री – सोत या द्वारा अपने विचारों, भावों तथा अनुभवों को जिस रूप में प्रेषित किया जाता है, उसे ही सम्प्रेषण सामग्री कहा जाता है। सोत द्वारा सामग्री का प्रस्तुतीकरण जितना अच्छा होता है, उसके प्राप्तकर्त्ता पर प्रभाव उतना ही अधिक होता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया को प्राप्तकर्त्ता का सहयोग अभिप्रेरणा, सामग्री की गुणवत्ता प्रभावित करती है।
- सम्प्रेषण माध्यम – अपने विचारों तथा भावों को दूसरों तक पहुँचाने एवं दूसरों की भावनाओं एवं विचारों को ग्रहण करने तथा उनके प्रति अपनी अनुक्रिया व्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों या साधनों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें सम्प्रेषण माध्यम कहते हैं। ये माध्यन शाब्दिक, अशाब्दिक, लिखित व मौखिक किसी भी रूप में हो सकते हैं।
- प्राप्तकर्त्ता – स्रोत द्वारा प्रेषित भाव विचार व संदेश को जिस व्यक्ति विशेष या समूह द्वारा ग्रहण किया जाता है, उसे प्राप्तकर्ता कहते हैं। सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी सम्प्रेषणकर्त्ता या स्रोत की सम्प्रेषण प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर सम्प्रेषण प्राप्तकर्त्ता की रुचि, योग्यता, दक्षता इत्यादि का प्रभाव पड़ता है। अतः संदेह सम्प्रेषण व विचार ग्रहण करने हेतु प्राप्तकर्त्ता का पूर्ण सक्षम, क्रियाशील एवं अभिप्रेरित रहना आवश्यक है।
- अनुक्रियात्मक व्यवहार या पृष्ठपोषण – सम्प्रेषण माध्यम द्वारा सम्प्रेषित सामग्री को प्राप्तकर्त्ता द्वारा किस रूप में ग्रहण किया गया या समझा गया है तथा उसके प्रति उसने क्या अनुक्रिया अभिव्यक्त की है, इसी को अनुक्रियात्मक व्यवहार या पृष्ठपोषण कहते हैं। इसी अनुक्रियात्मक व्यवहार या सामग्री को उचित सम्प्रेषण माध्यम द्वारा स्रोत तक पहुँचाने की प्रभावशीलता पर सम्प्रेषणकर्त्ता और प्राप्तकर्त्ता के मध्य सम्प्रेषण की निरन्तरता निर्भर करती है।
- सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाले तत्व – सम्प्रेषण प्रक्रिया को दोनों ही प्रकार के कारक प्रभावित करते हैं अर्थात इसकी सफलता और असफलता सहायक एवं बाधक तत्वों पर निर्भर करती है। संप्रेषित सूचना या विचार को सम्प्रेषणकर्त्ता से प्राप्तकर्ता और प्राप्तकर्ता से सम्प्रेषणकर्त्ता तक पहुँचाने में सम्प्रेषण माध्यमों को भी ये तत्व प्रभावित करते हैं।