सुमित्रानंदन पंत कविताए और व्याख्या

सुमित्रानंदन पंत कविताए और व्याख्या से सम्बंधित प्रश्न BA में पूछे जाते है। पंत की काव्य कृति चिदंबरा पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। पंत ने अपनी कविता नौका विहार में जिस चांदनी रात का वर्णन किया है। वह शुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि की उदित चांदनी का वर्णन है। कभी चांदनी रात के प्रथम प्रहर में कालाकांकर के राजभवन से लगी हुई नदी में अपने मित्रों के साथ नौका विहार कर रहा है।चंद्रमा की ज्योत्सना के प्रभाव से नदी के धवलता मैं रजत के कांति का आभास सर्वत्र होता है। उसी का अलंकारता भाषा में प्रस्तुत कविता में वर्णन किया गया है।

भाषा के रूप, मातृभाषा ही शिक्षा का माध्यम क्यों?
सुमित्रानंदन पंत कविताए

सुमित्रानंदन पंत जीवन परिचय

 
सुमित्रानंदन पंत
कवि

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।

जन्म

20 मई 1900

जन्म स्थान

कौसानी बागेश्वर उत्तराखंड

मृत्यू

28 दिसम्बर 1977

पिता

गंगादत्त पंत

माता

सरस्वती देवी

सम्मान

हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।

“चिदम्बरा” नामक रचना के लिये 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। “कला और बूढ़ा चांद” के लिये 1960 का साहित्य अकादमी पुरस्कार। इसके अलावा अनेकों प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किया गया

आधुनिक हिन्दी काव्य

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जगत के जीवन पत्र कविता में कवि ने पतझड़ में डाल से टूटकर झड़ते हुए पत्तों के बहाने समाज में परिवर्तन के आकांक्षा व्यक्त की है। इस कविता में कवि ने जीवन जगत में नई चेतना एवं नवोद साह के संचार की कामना को बादल के माध्यम से व्यक्त किया है।

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सुमित्रानंदन पंत कविताए

दर्शन अनुभूति के बाद की उस गंभीर ज्ञानात्मक अवस्था को कहा जाता है। जिसमें व्यक्ति भावना के क्षेत्र में उधर्वोमुख होकर जीवन और जगत के प्रति विश्लेषण की प्रवृत्ति अपनाता है। दर्शन के रूप में सामाजिक तथा आध्यात्मिक दर्शन में संकरी होने के कारण अंत में दार्शनिक बाद विवादों से मुक्त खंडन मंडात्मक प्रवत्ति नहीं पाई जाती।

अपितु उन्होंने अपने प्रत्येक सिद्धांत को जीवन की उपयोगिता की कसौटी पर परख कर स्वीकार है। पंत के काव्य पर उपनिषदों की विचारधारा के साथ ही अद्वैतवाद, मार्क्सवाद तथा गांधीवाद का प्रभाव भी देखा जा सकता है। उपनिषदों का मूल तत्व है। जिज्ञासा भाव पंत के इस भाव के मौन नियंत्रण कविता में देखा जा सकता है।

वह प्रारंभ से ही प्रकृति और उसके पीछे अव्यक्त सत्ता के प्रति जिज्ञासु है। ‘ना जाने तपक तड़ित में मौन निमंत्रण देता मुझको मौन’ सोनजुही कविता के रचयिता पंत ने सोनजुही लता के सौंदर्य का वर्णन प्रस्तुत कविता में किया है। सुमित्रानंदन पंत कविताए जो

  • पंत जी ने अपनी कविता नौका विहार में प्रतापगढ़ जनपद में स्थित कालाकाकर नामक स्थान पर नौका विहार करते हुए चांदनी रात में गंगा की अपूर्व शोभा का वर्णन किया है।
  • पंत जी को प्रकृति का सुकोमल कवि कहा जाता है।
  • पंत जी के पिता जमींदार थे।
  • छायावादी युग को पंत जी ने सृजन का सुंदर युग कहा है।
  • पंत जी प्रगतिवादी विचारधारा से भी प्रभावित थे।
शिक्षा - दीक्षा
  1. 1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रनंदन पंत रख लिया।
  2. 1918 में मँझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कालेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए।
  3. 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। इलाहाबाद में ही उनकी काव्यचेतना का विकास हुआ। कुछ वर्षों के बाद उन्हें घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। कर्ज से जूझते हुए पिता का निधन हो गया। कर्ज चुकाने के लिए जमीन और घर भी बेचना पड़ा। इन्हीं परिस्थितियों में वह मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुये।
  4. 1931 में कुँवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर, प्रतापगढ़ चले गये और अनेक वर्षों तक वहीं रहे। महात्मा गाँधी के सान्निध्य में उन्हें आत्मा के प्रकाश का अनुभव हुआ।
  5. 1938 में प्रगतिशील मासिक पत्रिका ‘रूपाभ’ का सम्पादन किया। श्री अरविन्द आश्रम की यात्रा से आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ।
  6. 1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे।
  7. 1958 में ‘युगवाणी’ से ‘वाणी’ काव्य संग्रहों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘चिदम्बरा’ प्रकाशित हुआ, जिसपर 1968 में उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  8. 1960 में ‘कला और बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
  9. 1961 में ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित हुये।
  10. 1964 में विशाल महाकाव्य ‘लोकायतन’ का प्रकाशन हुआ।
  11. कालान्तर में उनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। वह जीवन-पर्यन्त रचनारत रहे। अविवाहित पंत जी के अंतस्थल में नारी और प्रकृति के प्रति आजीवन सौन्दर्यपरक भावना रही।


रचनाएँ
कृतियाँ
  1. अतिमा
  2. ग्राम्‍या
  3. मुक्ति यज्ञ
  4. मेघनाद वध
  5. युगांत
  6. स्वच्छंद


श्रद्धा सर्ग
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