सार्जेण्ट रिपोर्ट 1944 भारतीय शिक्षा के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। इस रिपोर्ट को अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे सार्जेण्ट रिपोर्ट, भारत में युद्धोत्तर शिक्षा विकास योजना एवं केंद्रीय शिक्षा सलाहकार योजना की रिपोर्ट आदि। दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद भारत सरकार का ध्यान भारतीयों की दशा सुधारने के लिए और उनके विकास के लिए प्रभावशाली योजना बनाने की ओर गया।
इस कार्य के लिए सरकार के शिक्षा सलाहकार ‘जांन सार्जेण्ट’ को वायसराय की प्रबंधकारिणी काउंसिल के पुनर्निर्माण आयोग ने युद्ध उपरांत पुनर्निर्माण काल में भारतीय शिक्षा के विकास के लिए एक विवरण पत्र तैयार करने का कार्यभार सौंपा।

इस कार्य के लिए 1944 में एक सर्वेक्षण दल का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष सर जांन सार्जेण्ट थे। इन्होंने भारतीय शिक्षा के लिए अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया और भारत सरकार से उन्हें लागू करने की सिफारिश की क्योंकि यह रिपोर्ट सर जान सार्जेण्ट द्वारा तैयार की गई थी इसलिए इसका नाम सार्जेण्ट रिपोर्ट रखा गया।
सार्जेण्ट रिपोर्ट का कार्यक्षेत्र
सरकार ने केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड से अपेक्षा की थी कि
- वह संपूर्ण देश की प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सरकारी तथा गैर सरकारी शिक्षा की स्थिति का गहराई से अध्ययन करें।
- वह यह भी देखें कि देश में सभी शिक्षा जैसे जन शिक्षा, विकलांगों की शिक्षा, औद्योगिक एवं प्रौद्योगिक शिक्षा, अध्यापक शिक्षा, स्त्री शिक्षा की क्या स्थिति है?
- बोर्ड यह भी देखें कि सरकार ने अब तक नियुक्ति शिक्षा समितियों और आयोग के सुझाव का क्रियान्वयन किया है और भारतीय शिक्षा के संख्यात्मक एवं गुणात्मक विकास में उनका क्या प्रभाव पड़ा।
- बोर्ड शिक्षा की भावी योजना में सरकार की सलाह अवश्य लें।
- बोर्ड को यह भी बताना पड़ेगा कि उसके द्वारा बनाई गई योजना में कितना समय लगेगा और उस पर अनुमानित कितना व्यय होगा।
सार्जेण्ट रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें
सार्जेण्ट रिपोर्ट 1944 की सिफारिशें निम्न प्रकार हैं-
- पूर्व प्राथमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- प्राथमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- माध्यमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- विश्वविद्यालय शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- तकनीकी, औद्योगिक तथा व्यवसायिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- प्रौढ़ शिक्षा संबंधी सिफारिशें
- शिक्षण प्रशिक्षण संबंधी सिफारिशें
- मनोरंजनात्मक एवं सामाजिक क्रियाओं से संबंधित सिफारिशें
- विकलांगों की शिक्षा के संबंध में सिफारिशें
- विद्यार्थियों की स्वास्थ्य संबंधी सिफारिशें
- शैक्षिक प्रशासन से संबंधित सिफारिशें

1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- नर्सरी विद्यालय – सार्जेण्ट रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि राष्ट्रीय शिक्षा को सफल बनाना है तो विभिन्न नर्सरी स्कूलों की स्थापना करनी चाहिए जिसमें 3 से 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को दाखिला मिलना चाहिए।
- निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था – समिति ने यह भी कहा है कि इन बच्चों की शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए जिससे कि गरीब बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें।
- शिक्षा के उद्देश्य – समिति द्वारा रिपोर्ट में यह स्पष्ट दर्शाया गया है कि छोटे बच्चों पर शिक्षा का भार नहीं डालना चाहिए। उन्हें सामाजिक अनुभव तथा व्यवहार की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
2. प्राथमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- सार्वभौमिक, अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा – समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में प्राथमिक शिक्षा की सफलता के लिए 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए सार्वभौमिक अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- शिल्प कला पर आधारित शिक्षा – इस रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक शिक्षा किसी मौलिक सिल पर आधारित होनी चाहिए और यह सिखाई गई शिल्प कला स्थानी परिस्थिति के अनुकूल होनी चाहिए। किंतु समिति विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं से शिक्षा का खर्च उठाने के बिल्कुल पक्ष में नहीं थी।
- शिक्षा का माध्यम – शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए तथा अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए।
3. माध्यमिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- माध्यमिक शिक्षा की अवधि 6 वर्ष की होनी चाहिए और 11 से 17 वर्ष के मध्य की उम्र के बच्चों का दाखिला लिया जाए।
- माध्यमिक शिक्षा में प्रवेश के लिए केवल उन्हीं छात्रों को लेना चाहिए जिनके अंदर उच्च अध्ययन के लिए असाधारण योग्यता, अभिवृत्तियों, रुचि तथा अन्य योग्यताएं हैं।
- समिति के अनुसार विद्यार्थियों को कम से कम 14 वर्ष तक माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए और इससे पहले उसे स्कूल छोड़ने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।
- हाई स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्राप्त होनी चाहिए। जो उन्हें सीधे व्यवसाय तथा रोजगार में मिलाने के अनुकूल बना दें, ताकि वे आत्मनिर्भर हो सके तथा अपने पैरों पर स्वयं खड़े होने के योग्य बने।
4. विश्वविद्यालय शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
- 3 वर्षीय डिग्री कोर्स– शिक्षा की सार्जेण्ट योजना ने एक 3 वर्षीय डिग्री कोर्स का सुझाव दिया है। इंटरमीडिएट कक्षा को समाप्त कर देना चाहिए 11वीं कक्षा को हाई स्कूल से जोड़ देना चाहिए, जबकि 12वीं कक्षा विश्वविद्यालय शिक्षा से जोड़नी चाहिए।
- प्रवेश के नियम – प्रवेश के नियम सख्त होने चाहिए ताकि सिर्फ योग्य बच्चे ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने वाले 15 विद्यार्थियों में से केवल एक विद्यार्थी को विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त करने का निबंध देनी चाहिए जो शिक्षा प्राप्त करने योग्य हो।
- योग्य शिक्षक – सार्जेण्ट रिपोर्ट में विश्वविद्यालयों में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए योग्य शिक्षकों के चुनाव पर बल दिया है।
- शिक्षक शिक्षार्थी संबंध – शिक्षकों और विद्यार्थियों के मध्य पारस्परिक संबंध मधुर होने चाहिए तथा उनका आपस में संपर्क होते रहना चाहिए।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग – सार्जेण्ट रिपोर्टर ने देश में एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना का निर्देश भी दिया था। इसकी स्थापना 1945 में की गई थी। इसका काम अलीगढ़, बनारस और दिल्ली तीनों केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कार्यों की निगरानी करना था।

5. तकनीकि, औद्योगिक तथा व्यवसायिक शिक्षा से संबंधित सिफारिशें
सार्जेण्ट रिपोर्ट में तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा पर बहुत बल दिया है। समिति ने कारीगरों की चार श्रेणियां बताई हैं जो निम्न है-
- कारीगरों की उच्च श्रेणी
- कारीगरों की निम्न श्रेणी
- कुशल कारीगर
- अर्धकुशल एवं अकुशल कारीगर
6. प्रौढ़ शिक्षा संबंधी सिफारिशें
समिति के अनुसार कोई भी लोकतांत्रिक जीवन तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक कि पूर्ण रूप से निरक्षरता को समाप्त नहीं कर दिया जाता।
- इस योजना में पौधों के लिए दो प्रकार सामान्य शिक्षा व व्यवसायिक शिक्षा पर सुझाव दिया गया है।
- सार्जेण्ट योजना के अनुसार प्रौढ़ पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए अलग-अलग संस्थाओं की स्थापना करनी चाहिए।
- इसे लोकप्रिय बनाने के लिए चलते-फिरते पुस्तकालय की व्यवस्था करनी चाहिए।
- एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र पर 25 से अधिक प्रौढ़ ना रखे जाएं।
- प्रौढ़ शिक्षा के पाठ्यक्रम के बारे में सुझाव दिया गया है कि 3R के साथ इनमें अर्थशास्त्र नागरिक शास्त्र इतिहास भूगोल तथा स्वास्थ्य विज्ञान को भी शामिल किया जाना चाहिए।
7. शिक्षण प्रशिक्षण संबंधी सिफारिशें
- रिपोर्ट में निर्देश दिए गए हैं कि भारत देश में शिक्षकों का अभाव है और छात्र ज्यादा हैं। अत: अध्यापकों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
- प्रशिक्षण महाविद्यालयों में निशुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
- यदि कोई योग एवं कर्मठ अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में कोई शोध करना चाहे तो उसे इस प्रकार के शोध करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
- निर्धन प्रशिक्षणार्थियों को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए।
- योग्य व्यक्तियों को शिक्षण व्यवसाय की ओर आकर्षित करने के लिए सभी स्तरों के शिक्षकों के वेतनमान में वृद्धि की जाए।
8. मनोरंजनात्मक एवं सामाजिक क्रियाओं से संबंधित सिफारिशें
- रिपोर्ट में युवा शक्ति के संचालन पर बल दिया गया है। युवाओं को सभी प्रकार के सामाजिक कार्यों के लिए उचित सुविधाएं मिलनी चाहिए।
- रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि 11 वर्ष की आयु छात्रों के लिए विद्यार्थियों में तरह-तरह की क्रियाओं की व्यवस्था करनी चाहिए।
- बड़ी कक्षाओं में विद्यार्थियों के लिए सामूहिक खेलो रचनात्मक कार्यों वाद-विवाद प्रतियोगिताओं आदि का प्रबंध होना चाहिए।
9. विकलांगों की शिक्षा के संबंध में सिफारिशें
रिपोर्ट में असमर्थ व्यक्तियों के प्रशिक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया है। मानसिक व शारीरिक विकलांग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग विशेषताएं होनी चाहिए। नेत्रहीन तथा बाद हीरो के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों सहित विशेष शैक्षिक प्रबंधन व्यवस्था होनी चाहिए।
जहां तक संभव हो विकलांगों को लाभकारी रोजगार के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।
10. विद्यार्थियों की स्वास्थ्य संबंधी सिफारिशें
रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी भी शिक्षा योजना में बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा और उनके विकास की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं
- विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा अनिवार्य हो
- विद्यालयों का पर्यावरण स्वच्छ हो कमरे बड़े हो तथा बैठने का फर्नीचर उपयुक्त हो।
- छात्रों की जांच 6, 11 और 14 वर्ष की आयु पर की जाए।
- विद्यालय में मध्याहन भोजन की व्यवस्था हो।

सार्जेण्ट रिपोर्ट के गुण
राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति के विकास की दृष्टि से सार्जेण्ट योजना का एक ऐतिहासिक महत्व है। यह एक ऐसी योजना की जो भारत में शिक्षा का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करती थी। इस योजना के निम्नलिखित गुण कहे जा सकते हैं-
- इस रिपोर्ट में शिक्षा की राष्ट्रीय योजना बनाते समय बहुत गहरा अध्ययन किया गया है।
- रिपोर्ट में शिक्षा को आम मानस तक पहुंचाने की अनेक योजनाओं के बारे में बताया गया।
- इस रिपोर्ट में मंदबुद्धि वालों को एवं विकलांग बच्चों को शिक्षा देने हेतु अनेक सराहनीय उपाय बताए गए हैं।
- रिपोर्टर ने शिक्षा को सफल बनाने के लिए शिक्षक के महत्व को अच्छी तरह से पहचाना है। रिपोर्ट में शिक्षकों के वेतनमान में वृद्धि करने, उन्हें उपयुक्त प्रशिक्षण देने व उनका स्तर सुधारने के बारे में योजना बनाने को कहा गया है।
- रिपोर्ट में विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर भी बल दिया है, विद्यार्थियों की चिकित्सीय जांच और निशुल्क इलाज के बारे में निर्देश दिया गया है।
सार्जेण्ट रिपोर्ट के दोष
सार्जेण्ट रिपोर्ट के प्रमुख दोष निम्न है-
- सार्जेण्ट रिपोर्ट को शिक्षा की राष्ट्रीय पद्धति कहना गलत होगा, क्योंकि यह इंग्लैंड में प्रचलित प्रतिरूप की एक नकल है। इंग्लैंड एक विकसित देश है जबकि भारत नहीं है। इसीलिए इंग्लैंड में शैक्षिक स्तर को भारत के लिए शैक्षिक स्तर मानना बिल्कुल भी उचित तथा वांछनीय नहीं है।
- यह रिपोर्ट प्राप्त करने वाले केवल आदर्शों को निर्धारित करती है। परंतु इन आदर्शों को प्राप्त करने वाले साधनों का निर्धारण करती है।
- यह मौलिक रिपोर्ट का नहीं है यह केवल समय-समय पर विभिन्न समितियों तथा आयोगों द्वारा शिक्षा पर प्रकाशित होने वाली सिफारिशों का टुकड़ों में बंटा काम है।
- रिपोर्ट के कार्यान्वयन के लिए करोड़ों रुपयों का अनुमान लगाया गया तथा खर्च का 75% भाग जनता द्वारा उठाना जोकि असंभव था। भारत की खराब आर्थिक स्थिति होने के बावजूद रिपोर्ट ने शिक्षा की एक बहुत महंगी योजना तैयार की।
- प्राथमिक योजना के संबंध में इसमें बेसिक शिक्षा योजना का केवल सारांश शामिल है।
सार्जेण्ट रिपोर्ट का प्रभाव
यह रिपोर्ट भारत के लिए बड़ी उत्साहवर्धक थी, केंद्रीय सरकार ने इसे प्राप्त करते ही इसके क्रियान्वयन हेतु पंचवर्षीय कार्यक्रम बनाने का आदेश दिया प्रथम पंचवर्षीय योजना को पूरा करने के लिए 10 करोड रुपए देना भी स्वीकार किया। इतना ही नहीं उसने 40 वर्ष की इस योजना को 16 वर्ष में पूरा करने की योजना बनाने के आदेश दिए।
प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुपालन में दिल्ली में 1945 में पॉलिटेक्निक शिक्षा ब्यूरो और 1946 में विश्व विद्यालय अनुदान समिति की स्थापना की गई। शिक्षा के हर स्तर पर योजनाबद्ध कार्य शुरू हुए परंतु यह बात दूसरी है कि किसी भी स्तर की शिक्षा को संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी। उसके बाद हमारा देश 1947 में स्वतंत्र हो गया हमने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई योजना को संदेह की दृष्टि से देखा और आजाद भारत के लिए नए सिरे से सच्ची योजना बनाने के लिए प्रयास शुरू किए। इस सब का वर्णन भारत में शिक्षा की प्रकृति के अनुसार किया गया।