सहयोग अर्थ परिभाषा विशेषताएं 4 लाभ व महत्व

सहयोग के अर्थ को भली-भाँति समझने के लिए इसकी कुछ परिभाषाओं पर विचार करना आवश्यक है। सहयोग का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रो. ग्रीन ने लिखा है सहयोग दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी कार्य को करने या किसी समान इच्छित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला निरन्तर एवं सामूहिक प्रयत्न है।

सहयोग की परिभाषा

एक सहयोगी समूह वह है जो एक ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिल-जुलकर कार्य करता है जिसको सभी चाहते हैं।

प्रो. डेविस के अनुसार

किसी समान लक्ष्य के लिए विभिन्न व्यक्तियों या समूहों का परस्पर मिलकर कार्य करना ही सहयोग है।

सदरलैण्ड तथा वुडवर्ड के अनुसार

सहयोग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह कम या अधिक संगठित रूप से सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अपने प्रयत्नों को संयुक्त करते हैं।

फेयरचाइल्ड के अनुसार

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सहयोग सामाजिक अन्तःक्रिया का वह स्वरूप है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा समूह किसी सामान्य रूप से इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठित रूप से मिलकर प्रयत्न करते हैं।

सहयोग की विशेषताएं

परिभाषाओं के आधार पर सहयोग की कुछ विशेषताएँ भी उभरकर सामने आती हैं जो निम्नवत् हैं

  1. दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा समूहों का होना।
  2. एक सामान्य उद्देश्य का होना।
  3. हम की भावना का पाया जाना।
  4. सहयोग करने वालों का एक-दूसरे के प्रति जागरूक होना।
  5. पारस्परिक सहायता एवं साथ-साथ मिलकर काम करने की भावना का पाया जाना।
  6. लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरन्तर और संगठित प्रयत्न करना।

सहयोग के प्रकार्य लाभ एवं महत्व

सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में सहयोग का काफी महत्व है। आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक, आदि क्षेत्रों में सहयोग का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है, सहयोग सामाजिक जीवन का स्थायी आधार है। सहयोग के बिना समाज की कल्पना तक नहीं की जा सकती है।

  1. अन्य सामाजिक प्रक्रियाएँ जैसे प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, आदि की सफलता के लिए भी सहयोग आवश्यक है। वास्तव में, समाज के किसी भी कार्य को सहयोग के अभाव में पूर्ण नहीं किया जा सकता है। व्यवसाय में व्यापार, दफ्तर, शिक्षण संस्था, कारखाने, बाजार, परिवार, धार्मिक संगठन, राजनीतिक दल, आदि में सहयोग का महत्व सर्वत्र दिखाई देता है। सहयोग के अभाव में किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं रह सकती। यही कारण है कि आदिम से आधुनिक समाजों तक में किसी न किसी रूप में सहयोग अवश्य देखने को मिलता है।
  2. मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास, प्रसार एवं प्रचार, आदि के दृष्टिकोण से भी सहयोग काफी महत्वपूर्ण है। विभिन्न व्यक्तियों के बीच सहयोग के परिणामस्वरूप ही अनेक आविष्कार हो पाते हैं जो मानव जीवन को सुखी बनाने में योग देते हैं। आज ज्ञान, कला, साहित्य और संगीत के क्षेत्र में जो कुछ प्रगति हुई है। वह किसी एक या कुछ व्यक्तियों के प्रयत्नों कापरिणाम नहीं होकर कई पीढ़ियों के अनेक लोगों के लगातार प्रयत्नों और उनके बीच पाये जाने वाले सहयोग का परिणाम है।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी शान्ति की स्थापना में सहयोग का विशेष योगदान रहा है। विभिन्न राष्ट्रों के बीच पाये जाने वाले सहयोग के फलस्वरूप ही संयुक्त राष्ट्र संघ एक विश्व संगठन के रूप में शान्ति स्थापना और मानव-भाग के कल्याण की दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज विभिन्न राष्ट्रों के बीच आर्थिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ता जा रहा है। एक राष्ट्र की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य राष्ट्रों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  4. आर्थिक क्षेत्र में सहयोग का महत्व स्पष्टतः दिखायी पड़ता है। श्रम विभाजन और विशेषीकरण का आधार सहयोग ही है। आज के जटिल आर्थिक संगठनों में प्रमुखतः द्वितीयक प्रकार का या अप्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है। एक ही वस्तु के निर्माण में विभिन्न व्यक्तियों के श्रम का योग आवश्यक है। कारखाने में श्रमिकों और अधिकारियों के बीच सहयोग अनिवार्य है जिसके अभाव में उत्पादन को नहीं बढ़ाया जा सकता। कम लागत पर अच्छी वस्तुएँ नहीं बनायी जा सकती और देश को आर्थिक दृष्टि से सशक्त नहीं बनाया जा सकता। आज भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ निर्धनता और बेकारी पायी जाती है विभिन्न विकास योजनाओं के माध्यम से देश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ाने के लिए जनता और विकास कार्यों मे लगे लोगों के बीच सहयोगात्मक सम्बन्ध का होना नितान्त आवश्यक है।
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