सहयोगी अनुशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे एक से एक को शिक्षण या अधिगम किया जाता है। यह प्रक्रिया विद्यालयों में समावेशन को प्रोत्साहित करती है। इसमें एक व्यक्ति जो वरिष्ठ या पुराना विद्यार्थी या विशेषज्ञ अध्यापक अनुशिक्षक की भूमिका में होता है और अधिगमकर्ता वह होता है जो निर्देशन ग्रहण करता है। अनुशिक्षण बालक को विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयोग में लिया जाता है जिसमें बालक का निदानात्मक एवं सहयोगात्मक निर्देशन किया जाता है। समावेशी शिक्षा में सहयोगी / अनुशिक्षण सर्वाधिक प्रभावशाली प्रकार है।
सहयोगी अनुशिक्षण
यह एक ऐसा विषय है जिसकी और भारत में बहुत कम ध्यान गया है। इसमें निर्देश देने वाले बालक का ही कोई सहयोगी होता है। इसका अर्थ है कि बालक दूसरे बालकों को एक एक कर पढ़ाते है। यह आयु-भेद या समआयु प्रकार का अनुशिक्षण होता है। समआयु अनुशिक्षण यह निर्देशन होता है जिसमें अनुशिक्षण प्रक्रिया में समान आय के या स्तर के बालकों का शिक्षण शामिल होता है। जिस किसी प्रकार का भी सहयोगी अनुशिक्षण अपनाया जाता है, यह सप्ताह में दो बार वर्तनी, हस्तलेखन, अंकगणित या फिर सामाजिक व्यवहार सिखाने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
सहयोगी अनुशिक्षण के उद्देश्य
सहयोगी अनुशिक्षण के उद्देश्यों में सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों के ज्ञानात्मक पहलू शामिल हो सकते हैं।
- ज्ञानात्मक क्षेत्र – ज्ञानात्मक कौशल सिखाना जैसे वर्तनी, हस्तलेखन आदि।
- सामाजिक क्षेत्र – बालक के सामाजिक व्यवहार को सुधारना जैसे भाईचारा, सहयोग, परस्पर सम्मान आदि।
इसके उद्देश्य भले जो भी हों परन्तु इसे कक्षा शिक्षण का प्रतिस्थापक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। सहयोग अनुशिक्षक को भी नियमित अध्यापक का प्रतिस्थापक नहीं समझना चाहिए। अनुशिक्षक को निदानात्मक निर्देशन कर सहभागी की भूमिका निभानी चाहिए।



सहयोगी अनुशिक्षण की प्रक्रियाएँ
सहयोगी अनुशिक्षक को अपने अनुशिक्षण सम्बन्धी गतिविधियों को आरम्भ करने से पहले अनुशिक्षण की विभिन्न प्रक्रियाओं के बारे में जान लेना चाहिए मुख्य रूप से इस विषय में तीन प्रक्रियाओं को अपनाया जा सकता है-
- देखकर करने की प्रक्रिया।
- परीक्षण – शिक्षण परीक्षण प्रक्रिया।
- युग्म – शिक्षण प्रक्रिया ।
देखकर करने की गतिविधि एक नियमित प्रक्रिया है जो कार्य के प्रदर्शन से जुड़ी है जिसके उपरान्त बालक को वह कार्य स्वयं करना होता है। यह पूर्णतया स्पष्ट मॉडलिंग प्रक्रिया है जिसके द्वारा लगभग सभी विद्यार्थियों को सीखने में कोई परेशानी नहीं होती। अनुशिक्षक को पहला सिद्धान्त जो लागू करना चाहिए वह है कि उन्हें छोटे चरणों में पढ़ाना चाहिए और प्रदर्शन कुछ इस प्रकार से करना चाहिए जिससे कि वह बालक सभी चरणों को आपस में जोड़ सके। दूसरा महत्वपूर्ण कार्य अनुशिक्षक द्वारा यह सुनिश्चित करना है कि बालक हर चरण के पूरा होते ही कार्य करे। विद्यार्थी यह दिखाये कि हर चरण के आवश्यक कार्य को सही श्रृंखला में वह पूर्ण कर सकता है।
परीक्षण शिक्षण प्रक्रिया में तीन चरण शामिल हैं। सर्वप्रथम अनुशिक्षक यह परीक्षण करता है कि क्या विद्यार्थी आवश्यक कार्य को कर सकता है या नहीं। अगर विद्यार्थी असफल होता है तब कार्य का विश्लेषण कर यह जानने का प्रयास किया जा सकता है कि उस कार्य को कौन-सा पहलू विद्यार्थी के लिए कठिनाई का कारण है। दूसरा कदम निर्देशनात्मक चरण होता है। यह ठीक वैसा हो चरण होता है जो देखकर करने वाली क्रिया में होता है।
तृतीय चरण के दौरान अनुशिक्षित का परीक्षण किया जाता है कि क्या समस्या का निदान हो गया है। अगर नहीं तो विद्यार्थियों की समस्या को फिर आंका जाता है और उसे परीक्षण से गुजरना पड़ता है और उसे फिर से निर्देशनात्मक चरण से होना पड़ता है। कई बार विद्यार्थी कार्य का कुछ हिस्सा करने में सक्षम हो पाता है, पर निपुणता के दायरे से फिर भी बाहर रहता है ।
युग्म शिक्षण प्रक्रिया में अनुशिक्षक एवं विद्यार्थी शामिल होते हैं। अनुशिक्षक सर्वप्रथम दिये गये कार्य को करता है और फिर अनुशिक्षित उस कार्य को करता है। इसके बाद अनुशिक्षक तीसरे कार्य को और फिर यही सिलसिला आगे भी तब तक चलता रहता है जब तक कि कार्य पूर्ण नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए मौखिक अभ्यास में दिये गये पाठ्य से पहले पैरे को अनुशिक्षक पढ़ता है, तदुपरान्त दूसरे पैरा को विद्यार्थी और यह तब तक चलता रहता है जब तक पाठ पूर्ण नहीं हो जाता है।
विद्यार्थी अनुशिक्षक के अनुसार अपने व्यवहार को ढालता है। यह नियमितता सफल कार्य करती है। यह तभी हो पाता है जब पाठ्यक्रम अच्छे स्तर का हो और विद्यार्थी की योग्यता से मेल खाता हो। अनुशिक्षक विद्यार्थी को चार प्रकार से कार्य कर निर्देशित कर पाता है-
- निरीक्षण – सहयोगी अनुशिक्षक बालक के व्यवहार एवं ज्ञान का निरीक्षण करता है।
- पुनर्बलन – सहयागी अनुशिक्षक बालक की खामियों की ओर संकेत कर ध्यान करता है।
- नमूना विधि – यह विशिष्ट त्रुटि को ध्यान में रखते हुए उसे दूर करने का ढंग बताता है।
- व्याख्या – सम्पूर्ण मद का खुलासा कर उदाहरणों सहित उनकी व्याख्या करता है।
सहयोगी अनुशिक्षण की सफलता समकक्षों के मध्य आन्तरिक एवं संचरित सम्बन्धों पर निर्भर करती है। सहयोगी अनुशिक्षण में, हालांकि अनुशिक्षक निर्देशात्मक कार्यवाही में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, यह स्पष्ट है कि एक अध्यापक जो आवश्यक रूप से सम्पूर्ण उत्तरदायित्व को वहन करता है, वह विषय एवं विद्यार्थी का चयन कर उसके लिए सामग्री को एकत्रित, निर्देशित एवं व्याख्या करता है।
सहयोगी अनुशिक्षण के लाभ एवं सीमाएँ
सहयोगी अनुशिक्षण इसके सक्षम लाभों के कारण सम्मिलित शिक्षा में अहम् स्थान रखती है। इस प्रकार का अनुशिक्षण न केवल विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बालक के लिए हितकारी होता है बल्कि सभी बालकों के लिए फायदेमंद होता है। इसमें अनुशिक्षण से जुड़े सभी पक्षों को लाभ पहुँचाने की क्षमता होती है। अगर अध्यापक सामग्री या विषय-वस्तु से सम्बन्धित कोई कार्यक्रम या योजना आयोजित करता है तो अनुशिक्षण उसकी हर गतिविधि में बहुत मदद करता है।
वे दोनों मिलकर अनुशिक्षित को उसकी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने में सहयोग सुनिश्चित करते हैं। वे मिलकर व्यक्तिगत मार्गदर्शन एवं देखभाल प्रदान करते हैं। विषय सामग्री को समय रहते पूर्ण करना तो लगभग निश्चित होता है। ऐसी स्थिति में अनुशिक्षक विद्यार्थी पर पूर्ण ध्यान केन्द्रित करता है और विद्यार्थी उपयुक्त नियमितता के साथ अपनी अधिगम प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है। अनुशिक्षक प्रभावशाली ढंग से विद्यार्थी की अधिगम गतिविधियों की देखरेख करता है। इस दौरान हर गलती को पहचाना एवं ठीक किया जा सकता है। एक को एक कर किये गये शिक्षण में असंगत एवं गलत अधिगम को समय रहते सुधारने की संभावना बनी रहती है।
अनुशिक्षण विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बालक एवं अनुशिक्षकों के मध्य स्वस्थ सम्बन्ध सुनिश्चित करता है। यह नियमित विद्यार्थियों एवं विशिष्ट बालकों के मध्य सकारात्मक संचार को प्रोत्साहित करता है और इसके साथ ही यह सहयोगात्मक वातावरण में एकत्रित होकर कार्य करने को बढ़ावा देता है। सहयोगी अनुशिक्षण निकट व्यक्तिगत सम्बन्धों, व्यक्तिगत अन्तर्निर्भरता और परिणामों के प्रति सांझा उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करता है क्योंकि सहयोगी शिक्षण सभी खामियों को हटाने की पहल करता है, ये सभी बालक दिन-प्रतिदिन की नियमित गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगते हैं। यह ‘अधिगम वातावरण को प्रतिस्पर्धात्मक बनाता है।