सहकारी अधिगम के उद्देश्य व दिशा निर्देश

सहकारी अधिगम – भारतीय विद्यालय प्रणाली में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जहाँ बालक समूह में कार्य करते हों। समावेशी कक्षा में जहाँ असंख्य बालक होते हैं, वहाँ बच्चों को सहकारी अधिगम विधि से पढ़ाया जा सकता है। इस तरह से बच्चे सीखने में एक-दूसरे की मदद करते हैं। वे समस्याओं के समाधान एवं कार्य पूरा करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं।

सहकारी अधिगम

सहकारी अधिगम एक ऐसी अधिगम प्रक्रिया है जिसमें एक जैसी योग्यता के बालक समूह बनाकर एक ही उद्देश्य को पाने का प्रयास करते हैं। ऐसे में वे एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। सहकारी शिक्षा बालकों को शैक्षिक योग्यता एवं निपुणता हासिल करने .में मदद करती है; जैसे-सुनना, प्रश्न पूछना, मदद लेना, सुझाव देना, उत्तर देना आदि। अध्यापक योजनाकर्ता एवं मूल्यांकनकर्ता का कार्य करता है। उसको सुनिश्चित करना पड़ता है कि-

  1. समूह का प्रत्येक सदस्य सीखने में एक-दूसरे की मदद करे।
  2. बालक अपने अधिगम का उत्तरदायित्व खुद ले।
  3. प्रत्येक सदस्य अच्छी सामाजिक निपुणता हासिल करे।
  4. उनका ध्यान समूह के सदस्यों के मध्य बातचीत पर बना रहे।

सहकारी अधिगम के उद्देश्य

समावेशी अवस्था में सहकारी अधिगम को निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. सहकारी समूह के सदस्यों के मध्य सामाजिक वातावरण को प्रोत्साहित करना।
  2. परस्पर सहयोग और मदद के माध्यम से समस्या निदान की निपुणताओं को विकसित करना।
  3. विशिष्ट आवश्यकताओं वाले बालकों के लिए सीखने के लिए उपर्युक्त वातावरण तैयार करना।
  4. बालक को सहकारी अधिगम की अवस्था में विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने का अवसर मिले।
  5. बालक को अपना उत्तरदायित्व समझने के लिए प्रोत्साहित करना।
  6. सक्षम और अक्षम बालकों के मध्य दोस्ताना वातावरण सुनिश्चित करना।

सहकारी अधिगम के लिए दिशा-निर्देश

एक अध्यापक को सहकारी अधिगम सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित पालन करना चाहिए-

  1. उसे बालकों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए ताकि एक-दूसरे के ज्यादा नजदीक दूर ना रहें।
  2. अध्यापक को पाठ के उद्देश्यों को स्पष्ट करना चाहिए।
  3. वह व्यक्तिगत जवाबदेही सुनिश्चित करें।
  4. उसे बालकों को समूह में बाँटना चाहिए।
  5. वह समूहों एवं समूह के बालकों के मध्य परस्पर वार्तालाप सुनिश्चित करे।
  6. उसको समूह के हर सदस्य को भूमिका प्रदान करनी चाहिए जैसे नेता एवं सदस्य आदि।
  7. हर समूह को छोटे आकार का होना चाहिए।
  8. वह समूह को कार्य दे एवं इसके साथ ही सामग्री भी वितरित करे।
  9. उसको इनकी भूमिकाओं को बदलते भी रहना चाहिए।

सहकारी अधिगम के तत्व

सहकारी अधिगम को प्रभावशाली तथा उत्पादक बनाने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करना आवश्यक है। ये दशाएँ हैं-

  1. व्यक्तिगत कौशल – छात्रों के प्रयासों में, उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आपसी तालमेल पैदा करने के लिए छात्र को निम्नांकित कार्य करने चाहिए-
    • उन्हें एक-दूसरे को जानना तथा समझना चाहिए और एक दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।
    • उन्हें एक-दूसरे के साथ सही व उचित तरीके से बातचीत करनी चाहिए।
    • उन्हें एक-दूसरे को और विशेषतः विशिष्ट बच्चों को स्वीकार करना चाहिए तथा उनके साथ सहयोग करना चाहिए।

परन्तु अंत:व्यक्तिगत कौशल किसी जादू से तुरन्त ही नहीं आ जाते। सभी छात्रों को बचपन से ही यह नहीं पता होता कि वे दूसरों से कैसे व्यवहार करें। छात्रों में सहकारी अधिगम की उपलब्धि बढ़ाने के लिए छात्रों को सप्ताह में चार सामाजिक कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। लिऊ तथा मैश ने इस कार्य का अपने अध्ययन के दौरान सफलतापूर्वक प्रयोग किया। इसमें उन्होंने सामाजिक कौशलों के उपयोग द्वारा पुरस्कारों के प्रभावों का अध्ययन किया था। उन्होंने सहकारी अधिगम समूहों में अकादमिक उपलब्धि के लिए सकारात्मक पारस्परिक निर्भरता तथा पारितोषकों की भूमिका का भी अध्ययन किया था ।

  1. समूह प्रक्रियाकरण – समूह प्रक्रियाकरण का उद्देश्य समूह के सदस्यों के समूह के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले प्रयासों को स्पष्टता प्रदान करना तथा इसमें सुधार करना है। समूह प्रक्रियाकरण द्वारा विशिष्ट बालक भी आत्मविश्वासी बन जाते हैं क्योंकि अध्यापक सहकारी अधिगम समूहों का विधिवत अवलोकन करता है। अपने इसी कार्य के दौरान अध्यापक इस बात के बारे में जान पाता है कि छात्र क्या समझ रहा है और क्या नहीं। छात्रों द्वारा एक-दूसरे को दी गई संख्याएँ इसके बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करती है कि छात्र विभिन्न धारणाओं, शिक्षण-रणनीतियों, सहकारी अधिगम के तत्वों के बारे में कितनी अच्छी तरह समझाते हैं।

अध्यापक कक्षा को छोटे-छोटे समूहों में बाँट कर या सारी कक्षा को एक समान प्रक्रियाकरण प्रदान कर सकता है तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि सहकारी अधिगम सभी छात्रों के लिए सफल है या नहीं। वह यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि सभी छात्रों में आपसी सहयोग से विषय-वस्तु में निपुणता प्राप्त करने की भावना विकसित हुई या नहीं।

  1. सकारात्मक अंत: निर्भरता – समावेशी स्कूल में छात्रों को यह सोचना तथा मानना चाहिए कि वह समूह सहयोगियों से जुड़े हुए हैं तथा यह तय सफल नहीं हो सकते जब तक समूह के अन्य सहयोगी सफल नहीं होते। सकारात्मक अंत: निर्भरता ऐसी स्थितियों को प्रोत्साहित करती है जिनमें छात्र यह समझ जाते हैं कि उनके कार्य समूह के कार्यों में सहायक होते हैं। वे यह भी समझते हैं कि अधिगम में समूह के सभी सदस्य संसाधनों को मिलजुल कर बाँट कर कार्य बैरते हैं तथा एक दूसरे को पारस्परिक सहयोग तथा प्रोत्साहन देते हैं और अपनी सामूहिक सफलता के जश्न मनाते हैं।

सकारात्मक अंतः:निर्भरता से इस बात को सुनिश्चित किया जा सकता है कि छात्रों को यह बताया जाए कि उनकी सफलता या असफलता दूसरों की सफलता या असफलता पर निर्भर करती है अर्थात् उन्हें सकारात्मक उद्देश्य अन्त:निर्भरता का ज्ञान दिया जाना चाहिए। समूह का उद्देश्य पाठ का एक अंग होना चाहिए। समूह की सफलताओं के जश्न मनाने से छात्रों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है। छत्रों को यह सिखाया जाना चाहिए कि समूह की सुलता के लिए सदस्यों के संसाधनों का उपयोग मिल-जुलकर करना चाहिए अध्यापक को छात्रों में अन्तःनिर्भरता उत्पन्न करनी चाहिए, जब वह उन्हें पढ़ने, लिखने, समझने आदि का काम दे।

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  1. व्यक्तिगत उत्तरदायित्व – सहकारी अधिगम का तीसरा महत्वपूर्ण तत्व व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। छात्रों का मूल्यांकन करने पर हमें व्यक्तिगत जिम्मेदारी का ज्ञान होता है। परिणाम छात्र तथा समूह को बताए जाते हैं तथा समूह के अन्य सहयोगी छात्र को समूह की सफलता के लिए उसके उत्तरदायित्व के बारे में बताते हैं। इसे सुनिश्चित करने के लिए अध्यापक को इस बात का मूल्यांकन करना चाहिए कि समूह के कार्य में प्रत्येक छात्र कितना सहयोग या काम कर रहा है। अध्यापक को छात्र तथा समूह को प्रतिपुष्टि भी प्रदान करनी चाहिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी को सफल बनाने के लिए अध्यापक निम्नलिखित ढंग अपना सकता है-
    • समूह का आकार छोटा करना
    • समूह में विशिष्ट बालकों की पहचान करना तथा उन्हें अपने व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के प्रति प्रोत्साहित करना।
    • प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत परीक्षाएँ लेना।
    • छात्रों को एक-एक करके बुलाना तथा परीक्षा देना।
    • बच्चों को देखकर समूह के प्रत्येक सदस्य द्वारा समूह के कार्य में की गई भागीदारी तथा सहयोग का रिकार्ड करना।
    • प्रत्येक समूह में किसी एक छात्र को निरीक्षक का कार्य सौंपना।
    • छात्र को यह बताना कि उन्होंने क्या तथा कैसा सीखा है।
  2. साक्षात्कार / साक्षात अन्तः क्रिया – उत्साहवर्धक अन्तःक्रिया ऐसे व्यक्तियों में देखने को मिलती है जो एक-दूसरे को अच्छी तथा प्रभावशाली सहायता प्रदान करते हैं वे के निष्पति में सुधार के लिए प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं, अच्छी गुणवत्ता वाले निर्णय लेने तथा समस्याओं एक-दूसरे के साधनों का आदान-प्रदान करते हैं, सूचनाओं का अच्छा प्रक्रियाकरण करते हैं, एक-दूसरे को सही ढंग से समझाने के लिए समूह निर्णयों को चुनौती देते तथा तर्क-वितर्क करते हैं, पारस्परिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयासों में बढ़ोत्तरी करते हैं, समूह के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे के प्रयासों को प्रभावित करते हैं, विश्वसनीय एवं जिम्मेदारी से कार्य करते हैं। विशिष्ट बालकों को सामान्य छात्रों की अपेक्षा उत्साहित अंतःक्रिया की अधिक आवश्यकता होती है।
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